जी भाई साहब जी: ज्योतिरादित्य सिंधिया को अब बीजेपी में ही क्यों कहा जा रहा है गद्दार
आपको याद होगा कांग्रेस सरकार गिरा कर बीजेपी में शामिल होने के बाद से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को गद्दार संबोधित किया जाने लगा है। उपुचनाव में कांग्रेस ने सिंधिया के गढ़ कहे जाने वाले ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में इतिहास के हवाले से सिंधिया गद्दार है कैम्पेन चलाया था। मगर बीजेपी में अब क्यों खुल कर सिंधिया को गद्दार कहा जा रहा है।
मालवा क्षेत्र के बीजेपी के वरिष्ठ नेता एवं प्रख्यात कवि पं. सत्यनारायण सत्तन गलत को गलत कहने में देरी नहीं करते हैं। बीते दिनों इंदौर दिवस आयोजन के लिए बुलाई गई समिति की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने वाले कवि सत्तन संगठन को मजबूत करने के लिए मंच और मंच से परे काम करते रहे हैं। इस बार कवि सत्तन ने खुले मंच से सिंधिया परिवार पर हमले कर बीजेपी की राजनीति में सिंधिया विरोधी मोर्चे को मजबूत कर दिया है।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर आयोजित कायर्क्रम में कवि सत्यनारायण सत्तन ने इतिहास को याद करते हुए वर्तमान राजनीति और बीजेपी में आ रहे बदलाव पर तीखे तंज किए। उन्होंने कहा कि सिंधिया परिवार ने जिस तरह उस समय अंग्रेजों के प्रति अपनी खानदानी भक्ति को प्रदर्शित किया और झांसी की रानी के साथ गद्दारी की ठीक उसी तरह अब यह खानदान बीजेपी में आकर राजनीति को दूषित और कंलकित कर रहा है!
चाल, चरित्र और चेहरे की पार्टी कहे जाने वाली बीजेपी में राजनीति का अवमूल्यन हो रहा है। इसे पार्टी के सेवाभावी वरिष्ठ नेता व कार्यकर्ता हजम नहीं कर पा रहे हैं। तभी तो बरसों से पार्टी की सेवा कर रहे कवि सत्तन ने कहा कि हर किसी को बीजेपी में प्रवेश मिल रहा है। यह देखते ही नहीं कि वह दलबदलू है, गद्दार है या क्या है। कांग्रेस में अब जितने भी नेता बचे हैं, वे न तो दलबदलू ,हैं न गद्दार हैं, वे समाज, देश और पार्टी के प्रति समर्पित नेता हैं। इंदिराजी के समय में जो हालत हमारी थी, अब वही हालत कांग्रेस की हो गई है।
सत्तन यहीं नहीं रूके। उन्होंने कहा कि सिंधिया परिवार ने तब झांसी की रानी के साथ गद्दारी की थी और अब वही काम उन्होंने कांग्रेस के साथ किया और मातृ संगठन को धोखा देकर सरकार गिराई। यह परिवार राजनीति को दूषित और कलंकित कर रहा है।
इंदौर में महापौर टिकट को लेकर मचे घमासान और सिंधिया खेमे के नेताओं को बीजेपी के मूल नेताओं से अधिक तवज्जो मिलने की शिकायतों के बाद सत्तन के सूर बीजेपी की राजनीति का गरमा रहा है। सिंधिया को अब तक कांग्रेस ही खुल कर गद्दार कह रही थी लेकिन सत्तन जैसा नेता खुल कर अपनी पार्टी को चेताने लगे हैं कि आने वालों पर भरोसा न करना, जो सत्ता के लालच में आज यहां है, वह कल दूसरी तरफ भी जा सकता है। ऐसा न हो कि बीजेपी में जी भाई साहब कल्चर इतना गहरा जाए कि जिन्हें बीजेपी देवतुल्य कहती हैं वे कार्यकर्ता स्वयं को अलग-थलग कर लें।
महाराज के नारों से काम न चलेगा, जो समझ गया वह सयाना
एमपी की राजनीति पर नजर रखने वाले जानते हैं कि कांग्रेस में सर्वोच्च प्रभाव वाले रहे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति का अपना अलग अंदाज है। उनके समर्थक उन्हें महाराज कह कर संबोधित करते हैं। वे भीड़ के साथ चलते हैं और जहां जाते हैं, एक खास तरह का शाही अंदाज दिखाई देता है। उनके समर्थक सिर्फ उनके होते हैं, संगठन या किसी ओर नेता के नहीं। जब कांग्रेस छोड़ी तब भी विधायकों व समर्थक नेताओं ने समर्पण दिखलाते हुए मातृ पार्टी छोड़ कर बीजेपी की सदस्यता ले ली।
इन समर्थकों के लिए सिंधिया जुझारुपन के साथ पेश आते हैं। उनके हक के लिए लड़ने वाले नेता के तौर पर उनकी छवि बनी है। तभी तो कोई समर्थक उनके लिए मरने तक को तैयार हो जाता है। हालांकि, इसे लोकतंत्र में राजशाही के तौर पर ही देखा गया है। मगर बीजेपी में जाने के बाद जैसे सिंधिया स्वयं को महाराज नहीं भाई साहब कहलाना पसंद कर रहे हैं, वैसे ही उनका जुझारू स्वभाव भी समय के साथ पिघलता जा रहा है।
सभी की निगाहें लगी थी कि ग्वालियर में महापौर का टिकट किसे मिलेगा क्यों यहां सिंधिया किसी ओर के लिए कोशिश कर रहे थे तो अन्य नेता अपने समर्थकों के लिए डटे हुए थे। आखिरकार, सिंधिया को अपने गढ ग्वालियर में अपना दावा छोड़ना पड़ा। कुछ ऐसे ही हालात उनके समर्थक कहे जाने वाले मंत्री तुलसी सिलावट, गोविंद सिंह राजपुत, प्रद्युम्न सिंह तोमर व महेंद्र सिंह सिसोदिया आदि की भी है। ये नेता अपने समर्थकों को टिकट नहीं दिलवा पाए। यही कारण रहा कि अब समर्थकों को अपने साथ बनाए रखने में मुश्किल पेश आ रही है।
सिंधिया समर्थक मंत्री समझ चुके हैं कि बीजेपी में अपना पाया मजबूत रखना होगा तो केवल महाराज का जयकारा लगाने से काम नहीं चलेगा। बीजेपी के नेताओं को भी साधना होगा। इस समझ के साथ मंत्री गोविंद सिंह राजपूत अपने साथी नेताओं से आगे निकल गए। उन्होंने न केवल क्षेत्र के कद्दावर नेताओं से पटरी बैठा ली बल्कि समझदारी दिखाते हुए एक कदम पीछे ले कर अपने भाई को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने का रास्ता साफ कर लिया।
अब अन्य सिंधिया समर्थक मंत्री भी इसी राह को अपनाने की तैयारी में हैं। यूं भी जिन्होंने अपनी ही अलग रेखा खींचनी चाही है बीजेपी ने उन्हें धरातल पर ला खड़ा किया है। तो क्या यह सिंधिया के लिए भी कोई संदेश है?
परिवारवाद के आरोप लगाती बीजेपी में भाई भतीजावाद
पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव की घोषणा और टिकट चयन प्रक्रिया शुरू होते ही बीजेपी ने घोषणा कर दी थी कि नेताओं के परिजनों व अपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को टिकट नहीं दिया जाएगा। प्रदेश संगठन ने केंद्रीय संगठन की इस गाइडलाइन को सख्ती ने अपनाने का दावा भी किया। इस सख्ती का इतना शोर किया गया कि कई नेता स्वयं को इस क्राइटेरिया में पा कर चुप्पी साध गए।
मगर, अब जैसे जैसे तस्वीर साफ हो रही है, यह उजागर हो चुका है कि परिवारवार की बात केवल राजनीतिक आरोप लगाने व सामान्य कार्यकर्ताओं के लिए है। बीजेपी के बड़े नेता इस दायरे में आए ही नहीं। उनके परिजनों को न केवल टिकट दिए गए बल्कि बचाव में तरह तरह के तर्क भी दिए गए। पार्टी ने विधायकों को टिकट देने से इंकार किया लेकिन नेता पति-पत्नियों और बेटों-बहुओं को खुल कर टिकट दिए।
16 नगर निगम में से तीन नगर निगम में नेताओं की पत्नियों को बतौर महापौर प्रत्याशी मैदान में उतारा है। खंडवा जिला पंचायत सदस्य के लिए वार्ड 14 से वन मंत्री विजय शाह के बेटे दिव्य शाह को भाजपा ने अधिकृत प्रत्याशी बनाया है। बेटे को टिकट देने पर मंत्री शाह का कहना है कि मेरा बेटा बीते 15 साल से राजनीति में सक्रिय है। बड़वानी में सामाजिक न्याय मंत्री प्रेम सिंह पटेल के बेटे बलवंत सिंह पटेल को जिला पंचायत सदस्य के लिए वार्ड 2 से और बहन गीता चौहान को वार्ड 4 से बीजेपी का अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया है।
इंदौर में पार्षद के 30 से अधिक टिकट नेताओं की पत्नियों, बेटों और रिश्तेदारों को दिए गए हैं। भोपाल में बीजेपी जिलाध्यक्ष सुमित पचौरी के चचेरे भाई सहित आधा दर्जन टिकट नेताओं के रिश्तेदारों को दिए गए हैं। ग्वालियर में 66 में से 33 वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। पार्टी ने 25 से ज्यादा सीटों पर पूर्व पार्षदों की पत्नियों को ही टिकट दिए हैं। सागर नगर निगम के 48 वार्ड में से 16 टिकट पूर्व पार्षद के रिश्तेदारों को दिए गए हैं।
आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति को टिकट ने देने को लेकर पार्टी पर चिन्ह चिन्ह कर कार्रवाई के आरोप हैं। वरिष्ठ कांग्रेस नेता व राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने बीजेपी द्वारा आपराधिक पृष्ठ भूमि के पार्षद प्रत्याशियों के टिकट काटे जाने की बात को कोरा स्वांग बताते हुए जमकर पलटवार किया है। उन्होंने कहा है कि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा पन्ना से सांसद है और पन्ना नगर पालिका के वार्ड 12 से प्रत्याशी कीर्ति त्रिवेदी बीजेपी के जिला उपाध्यक्ष अंकुर त्रिवेदी की पत्नी हैं। अंकुर त्रिवेदी व उनके पिता अवधेश त्रिवेदी ऊर्फ खुन्ना महाराज पर कई मामले दर्ज हैं।
कांग्रेस में बगावत कैसे थामेंगे कमलनाथ
ऐसा नहीं है कि बगावत और नाराजगी के स्वर बीजेपी में ही हैं, कांग्रेस भी इससे अछूती नहीं है। प्रत्याशियों के नामांकन जमा होने के बाद उनका अपनी ही पार्टी में विरोध तेज हो गया है। कई नेता बागी हो गए हैं और नामांकन पत्र दाखिल कर मैदान में उतर गए हैं। डर है कि यह बगावत राजनीतिक समीकरण बिगाड़ेगी। यही कारण है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने डैमेज कंट्रोल की तैयारी की है। बागियों को मनाने की जिम्मेदारी जिला प्रभारी और संभाग प्रभारियों को सौंपी गई है।
इस बार कांग्रेस ने तैयारी की है कि कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में गए ज्योतिरादित्य सिंधिया के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन किया जाए। मगर ग्वालियर-चंबल में टिकट वितरण से असंतोष पनपने व कई नेताओं के इस्तीफें की खबरों ने कांग्रेस संगठन को हिला दिया। विधायक जगदीश मावई के संगठन से त्यागपत्र की खबरों के बाद हालात और बिगड़ने लगे तो राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह को मोर्चा संभालना पड़ा है। अब वहां से ‘ऑल इज वेल’ की खबरें आ रही हैं।
हालांकि, यह एक क्षेत्र की खबर हैं। अन्य क्षेत्रों में भी बागियों को मनाने के प्रयास जारी हैं। पार्टी की कोशिश है कि किसी तरह एकता बनी रहे और चुनाव परिणाम में कांग्रेस अरमान के मुताबिक प्रदर्शन कर सके। देखना होगा कि टिकट वितरण से लेकर डैमेज कंट्रोल तक कमलनाथ की रणनीति इन चुनावों में कितनी कारगर होती है क्योंकि इस रणनीति की सफलता पर ही विधानसभा चुनाव की तैयारीं टिकी है।