वर्षान्त पर प्राणी मात्र के कल्याण की कामना

बीते हुए वर्ष के सुखद और दुखद दोनों प्रकार के अनुभवों को स्मरण किया जाय तो हर्ष और विषाद दोनों का अनुभव होता है।

Updated: Dec 31, 2020, 12:35 AM IST

Photo Courtesy: Hindustan
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31 दिसंबर को अधिकांश लोग वर्ष के अंतिम दिन के रूप में मनाते हैं। यद्यपि हमारी भारतीय सनातन संस्कृति की परंपरा के अनुसार चैत्र कृष्ण अमावस्या को वर्षान्त होता है। तथापि विश्व के विभिन्न देशों और क्षेत्रों के अधिकांश लोग इसे मानते भी हैं।

जो लोग मानते हैं उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए इस (2020) के बीते हुए सुखद और दुखद दोनों प्रकार के अनुभवों को स्मरण किया जाय तो हर्ष और विषाद दोनों का अनुभव होता है। लेकिन हमारा भारतीय दर्शन हमें सुख, दुख,हानि,लाभ, जीवन, मरण,यश, अपयश इन सबसे ऊपर उठकर कुछ अलग से चिंतन करने की प्रेरणा देता है। श्रीमद्भगवद्गीता तो बीते हुए दुख को सदा के लिए भूल जाने का ही उपदेश देती है।

गतासूनगतासूंश्च

नानुशोचन्ति पंडिता:

वस्तुतः भगवद्गीता का महत्व केवल भगवान के मुख कमल से विनि:सृत होने के कारण ही नहीं, उपनिषदों का सार होने के कारण है। हमारे यहां ये माना जाता है कि वेद धर्म का मूल है। धर्म को जानना हो तो उसका एक मात्र प्रमाण वेद ही है। वेदों के दो भाग हैं। एक कर्म उपासना का और दूसरा ब्रह्म का। ब्रह्म का प्रतिपादन करने वाला जो वेद है उसे उपनिषद कहते हैं, और जो उसमें परिनिष्ठित करने का उपाय बताता है वह भी उपनिषद कहलाता है। तो श्रीमद्भगवद्गीता उपनिषद है, इसलिए उसकी पुष्पिका में प्रत्येक अध्याय में उपनिषद लिखा हुआ है।

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उपनिषद का अर्थ है समीप से निश्चय पूर्वक जो संसार का विसरण कर दे, विच्छेद कर दे और परमात्मा का बोध करा दे उस विद्या को उपनिषद कहते हैं। उन उपनिषदों का सार श्रीमद्भगवद्गीता है। इसलिए गीता के प्रत्येक शब्द हमारे जीवन में उपयोगी सिद्ध होते हैं। यह वर्ष आध्यात्मिक दृष्टि से सुखद भी रहा।

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हमारे बहुत से गुरु भाई बहनों ने कई अनुष्ठान कर लिए कुछ लोग पुरश्चरण कर रहे हैं। इस सुखद और दुखद वर्ष की परिसमाप्ति पर प्राणी मात्र के कल्याण की कामना करने वाले हमारे परम पूज्य गुरुदेव भगवान के कृपा की अजस्र धारा आप सभी को आप्लावित करती रहे यही मंगल कामना है।