ईश्वर भजन से ही शान्त और निर्विकार हो सकता है मन

जब मनुष्य भगवदाराधन करता है तभी उसके मन में समता आती है, हृदय में दया आती है, विवेक आता है, और भगवत्कृपा से ही मनुष्य को प्राप्त होता है बल

Updated: Sep 15, 2020, 07:50 PM IST

जीवन में ईश्वर की आराधना बहुत आवश्यक है। क्यूंकि बुद्धि की शुद्धि तभी संभव है जब मनुष्य अपनी दिनचर्या में ईश्वर के भजन को स्थान देता है। हमारे गुरुदेव भगवान कहते हैं कि यदि आपको अपने जीवन में सफल होना है तो सफलता के लिए आपको उचित कर्म करने होंगे और आपके द्वारा उचित कर्म हो इसके लिए आवश्यक है कि आपका निर्णय सही हो, जब आप सही निर्णय करेंगे तो सही कर्म होंगे और सही कर्म होंगे तो आप जीवन में सफल होंगे।

लेकिन सही निर्णय आप तभी कर पायेंगे जब निर्णय करते समय आपका मन निर्विकार हो। जो निर्णय काम,क्रोध और लोभ के आवेग में लिया जाता है वह निर्णय दोषपूर्ण होता है। और कभी कभी तो अनुचित हो जाता है और उसके कारण हमारा कर्म भी खराब हो जाता है और कर्म खराब होने पर फल भी सही नहीं मिल पाता। और मन को निर्विकार बनाने के लिए भगवद् भजन के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं है।

ईश्वर के भजन से ही मन शान्त और निर्विकार हो सकता है। क्यूंकि भगवान निर्दोष और सम हैं। जब-तक हम अपने को निर्दोष और सम नहीं बना लेंगे तब-तक भगवान में मन लग ही नहीं सकता। कुछ लोग कहते हैं कि ईश्वर और भजन में हमारा मन नहीं लगता। लेकिन बात कुछ और है मन लगाने के लिए ईश्वर का भजन किया जाता है।मन लग जाए तब भजन हो ये बात सही नहीं है। मन आखिर लगाना किसमें है, कहां मन लगाना चाहिए? पहले तो मन लगाने के लिए विषय चाहिए और दूसरे अभ्यास चाहिए। जब आपका कोई लक्ष्य ही नहीं है तो अभ्यास ही क्यूं करेंगे।

भगवान के भजन में यदि मनुष्य की प्रवृत्ति हो जाती है, निष्ठा पूर्वक भजन करने लगे तो धीरे-धीरे मन भी लग ही जाता है। प्रारंभ में भले ही मनुष्य का मन उछल-कूद मचाए किन्तु धीरे-धीरे वह समाहित हो जाता है। लेकिन कोई ये सोचे कि पहले मन लग जाय तो ये संभव नहीं है।

किसी सेवक से उसके स्वामी ने कहा कि तुम यहां पर झाड़ू लगा दो, तो सेवक ने कहा कि मुझे तो झाड़ू लगाने आता ही नहीं। झाड़ू कैसे लगाया जाता है? तो उसके स्वामी ने कहा कि झाड़ू पकड़ कर घुमाओगे तो अपने आप झाड़ू लगाने आ जायेगा। न आप झाड़ू पकड़ते हैं, न फेरते हैं तो कैसे आएगा? इसी प्रकार भगवान के भजन में आप जब बैठेंगे और माला फेरेंगे, ध्यान लगाने का प्रयत्न करेंगे तो धीरे-धीरे मन लगने लगेगा। और जब भगवान के भजन में मन लगेगा तो हमारा रथ सही दिशा में जायेगा। क्यूंकि क्षमा,दया, और समता की रज्जु में बंधे हुए बल विवेक दम और परहित रूपी घोड़ों को ईश भजन रूपी सारथी ही नियंत्रित करेगा।

जब मनुष्य भगवदाराधन करता है तभी उसके मन में समता आती है, हृदय में दया आती है, विवेक आता है, और बल भी भगवत्कृपा से ही मनुष्य को प्राप्त होता है। क्षमा भी भगवान की कृपा से प्राप्त होती है, इसी प्रकार दूसरों का हित भी वही कर सकता है जो भगवद्भक्त हो, जो सभी प्राणियों को जो भगवत्स्वरूप देखता है वो जितना परहित कर सकता है उतना और कोई नहीं।

इसलिए ईश भजन मनुष्य के जीवन में परम आवश्यक है। यहां ईश भगवान शंकर को कहा गया है। परन्तु ये उपलक्षण है। भगवान के जिस स्वरूप के प्रति श्रद्धा और निष्ठा हो जाए, उसी में हम उनकी आराधना कर सकते हैं। वस्तुत: भगवान के स्वरूपों में परस्पर भेद नहीं है। जो लोग भेद करते हैं वो नासमझी करते हैं। भगवान विष्णु ने कहा है कि- 

ज्ञानं गणेशो मम चक्षुरर्क:, शिवो ममात्मा मम शक्तिराद्या।

विभेद बुद्ध्या मयि ये भजन्ति, मामंग हीनं कलयन्ति मन्दा।।

गणेश मेरा ज्ञान है, सूर्य मेरा नेत्र है, शिव मेरी आत्मा हैं, और आद्या भगवती मेरी शक्ति है। इनमें भेद बुद्धि करके जो मेरी उपासना करता है वो मंद बुद्धि मुझे अंगहीन बनाता है। इसलिए किसी भी रूप में मेरी आराधना करे।

 ईश भजन सारथी सुजाना