बिना श्री राधा की कृपा के श्री कृष्ण तत्व अबूझ

जब तक आपने राधा रानी के युगल चरण कमलों की आराधना नहीं की, उनके चरणांकित श्री वृंदावन धाम का सेवन नहीं किया, तब तक श्याम सिंधु रस में अवगाहन कैसे सम्भव

Updated: Aug 26, 2020, 08:00 PM IST

आज श्री राधाष्टमी है।आज ही के दिन बरसाना में श्री वृषभानु जी के महल में माता कीर्ति की गोद में अखिल ब्रह्मांड नायक की आह्लादिनी शक्ति का भगवती श्री राधा रानी के रूप में प्राकट्य हुआ  था। श्री राधा माधव एक ही हैं। केवल दिखते दो स्वरूप में है।

एक स्वरूप सदा द्वै नाम, आनंद की आह्लादिनि श्यामा, आह्लादिनि के आनंद श्याम

ब्रह्म की आह्लादिनी शक्ति का नाम श्यामा है, और आह्लादिनी शक्ति के जो आनंद हैं उनका नाम श्याम है। इसीलिए ब्रज मंडल की एक लोकोक्ति है कि राधा के बिना श्याम आधा। परंतु धर्म सम्राट पूज्य पाद स्वामी श्री करपात्री जी महाराज कहते थे कि आधा नहीं आधा से भी कम। वस्तुतः शक्ति संपन्न हो करके ही ब्रह्म पूर्ण होता है। अन्यथा शक्ति के बिना ब्रह्म अधूरा ही है। अपने अप्रतिम सौंदर्य माधुर्य का आस्वादन करने के लिए ही भगवान श्री कृष्ण राधा के रूप में अपने आप को प्रकट करते हैं।

एक बार बृजेंद्र गेहिनी श्री नंदरानी यशोदा मैया अपने मणिमय प्रांगण के मणिस्तम्भ में रेशम की रस्सी से दधिभाण्ड को बांधकर मंथन कर रही थी। मंथन के अनंतर नवनीत निकालकर नवनीत भांड में रख दिया और स्वयं किसी कार्य में व्यस्त हो गई। इतने में चंचल चपल श्री श्यामसुंदर वहां आए और नवनीत भांड में हाथ छोड़ दिया। किंतु यह क्या सामने के मणि स्तंभ में एक अति सुकुमार, सांवला, सलोना बालक दृष्टिगोचर हुआ जो उनका प्रतिबिंब था। अब तो श्रीकृष्ण को ऐसा प्रतीत हुआ कि शायद मैया ने मक्खन के निगरानी करने के लिए इस खंभे में किसी को छुपा के रखा है।और बड़े भोलेपन से उस प्रतिबंध से पूछा कि तू कौन है? तो उसने भी कहा कि तू कौन है? अब तो श्यामसुंदर जो जो बोले उस प्रतिबिंब की भी वैसी ही सब क्रिया होने लगी। यह देखकर श्यामसुंदर मैया से बोले इस खंभे में तू किसको छुपा कर के रखी है? जो मेरी हर क्रिया का अनुकरण कर रहा है। यशोदा मैया वहां आई और मुस्कुराती हुई अपने लाड़ले को गोद में लेकर बोलीं-मेरे लाल! यह और कोई नहीं, यह तू ही है। विस्मय, विस्फारित नेत्रों से श्यामसुंदर मैया की ओर देखकर बोले- मैया! क्या मैं इतना सुंदर हूं? मइया ने कहा- मो सम नहिं पुण्य पुंज बालक है तोरे लाला! मेरे समान तुम्हारे भी पुण्य नहीं हैं। क्योंकि तुझे तू नहीं देख सकता, तुझे तो मैं देख सकती हूं। अद्भुत सौंदर्य है प्रभु का-

यन्मर्त्यलीलौपयिकं स्वयोग- मायाबलं दर्शयता गृहीतम्।

विस्मापनं स्वस्य च सौभगर्द्धे:, परं पदं भूषणभूषणाङ्गम्।। (भागवत)

रूप रासि नृप अजिर बिहारी, नाचहिं निज प्रतिबिम्ब निहारी।।(मानस)

अपने इस अप्रतिम सौंदर्य का आस्वादन करने के लिए ही श्री कृष्ण राधा के रूप में परिणत हो गए। श्री कृष्ण को देखने के लिए राधा की आंख होनी चाहिए।

दक्षिण भारत के एक बहुत ही सुप्रसिद्ध विद्वान श्री गदाधर भट्ट जी हो गए। एक बार प्रातः काल का समय था गदाधर जी स्नान के लिए जा रहे थे। मार्ग में एक व्यक्ति मिला उसने उन्हें प्रणाम किया और निवेदन किया कि मैं वृंदावन जा रहा हूं। फिर तो गदाधर जी के नेत्र बरसने लगे और वे उस पथिक से बोले कि मेरा संदेश श्री जीव गोस्वामी जी तक पहुंचा देना सखि हौं श्याम रंग रंगी वह व्यक्ति श्री धाम वृंदावन में श्री जीव गोस्वामी जी के सम्मुख गदाधर भट्ट जी का भाव निवेदन किया। तब श्री  जीव गोस्वामी जी ने कहा-

अनाराध्य राधा पदाम्भोजयुग्मं, अनासेव्यवृन्दाटवीं तत्पदाङ्काम्।

असम्भाष्य तद्भावगम्भीरचित्तान्, कथं श्यामसिंधोर्रसस्यावगाह:।।

अर्थात जब तक आपने राधा रानी के युगल चरण कमलों की आराधना नहीं की, उनके चरणांकित श्री वृंदावन धाम का सेवन नहीं किया, और संत महात्माओं के बीच में बैठकर उनके गंभीर भाव की चर्चा नहीं की, तब तक आप ने श्याम सिंधु रस में अवगाहन कैसे कर लिया? यह सुनते ही श्री गदाधर भट्ट जी ने श्री धाम वृंदावन की यात्रा की और श्री राधारानी की उपासना कर श्रीकृष्ण की प्राप्ति की। 

अभिप्राय यह है कि बिना श्री राधा रानी की कृपा के श्री कृष्ण तत्व को कोई समझ ही नहीं सकता।

ना आदि ना अंत बिहार करें दोउ, लाल प्रिया में भई न चिन्हारी

ऐसी हमारी श्री स्वामी जी के पदारविंदं में प्रणिपात होती हुई देन बधाई चलो आली भानु घर प्रगटि है लाली

श्री राधाष्टमी की बधाई।