नेहा गोयल, मुश्किलों में बीता जिंदगी का सफर, अब ओलंपिक में गोल्ड मेडल पर नजर

नेहा गोयल भारतीय हॉकी टीम की बेहतरीन मिड फील्डर हैं, विभिन्न प्रतियोगिताओं में टीम को गोल्ड और सिल्वर मेडल जिता चुकी हैं, जिंदगी के उतार चढ़ावों और गरीबी के बाद भी नहीं खोया हौसला, हर कदम पर खुद को किया साबित, मां और दो बहनों के साथ 4 रुपए प्रति घंटे की कर चुकी हैं मजदूरी

Updated: Jun 18, 2021, 07:12 AM IST

Photo Courtesy: Indian express
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नेहा गोयल आज किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं, वे टोक्यो ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम की खिलाड़ी के तौर शामिल हो रही हैं। हाल ही में उनके नाम की घोषणा हुई है। वे अपनी टीम में मिड फील्डर की अहम जिम्मेदारी निभाती हैं। उन्हें अटैक और डिफेंस दोनों में महारत हासिल है। आज नेहा जितनी सफल खिलाड़ी हैं, उनका जीवन उतने ही उतार चढ़ावों से भरा रहा है।

शराबी पिता और घर में गरीबी का दंश झेलने वाली नेहा ने अपनी दो बहनों और मां के साथ साइकिल फैक्ट्री में मजदूरी तक की है। मां की दूरदर्शी सोच और उनकी काबिलियत ने नेहा को हॉकी टीम का महत्वपूर्ण खिलाड़ी बना दिया। चार रुपये प्रति घंटे की मजदूरी से लेकर होनहार मिडफील्डर बनने की उनकी यात्रा किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है।  

नेहा आज 16 सदस्यीय भारतीय महिला हॉकी टीम का हिस्सा हैं, इनकी टीम जुलाई में टोक्यो में आयोजित ओलंपिक महाकुंभ में शामिल होने जा रही है। बेटी की इस उपलब्धि से मां भी फूले नहीं समा रही हैं।  

हरियाणा के सोनीपत की रहने वाली 24 साल की नेहा ने 13 साल पहले हाकी मैदान में कदम रखा था। बेटी को घर के माहौल से सुरक्षित रखने के लिए मां ने उसे मैदान खेलने भेजना शुरू किया। नेहा ने वहां कि हॉकी अकादमी दाखिला लिया, उस दौरान उनके पास ना ढंग के जूते थे और ना ही किट, ऐसे में उनकी कोच ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उसकी आर्थिक मदद भी की।

नेहा की मां ने एक बार एक इंटरव्यू में कहा था कि उनके पति नशे में धुत होकर घर में मारपीट करते थे, गाली गलौज करते थे। जब भी घर आते रोज ऐसा ही होता था, नेहा सबसे छोटी थी वह पिता की इन हरकतों से डर जाती थी, आंखें मींचकर उनके पीछे छिप जाती थी। बेटी को ऐसे माहौल से बचाने के लिए उन्होंने हॉकी अकादमी में दाखिला करवा दिया।

अब नेहा ओलंपिक के लिए चुनी गई हैं, वे अपनी इस सफलता का श्रेय अपनी मां और कोच को देती हैं। नेहा की मानें तो उनकी कोच प्रीतम रानी सिवाच ने हर कदम पर उनका साथ दिया चाहे खेल में मैदान में हो या घर की परेशानियों में। वे अक्सर उनकी मदद करती रही हैं। जब नेहा के पास जूते खरीदने के लिए पैसे नहीं थे तब प्रीतम ने उनकी आर्थिक मदद की। वे नेहा के जूते खराब होने पर पैसे देतीं ताकि जिससे वह नए जूते ख़रीद सके, और बिना किसी परेशानी के मैच खेल सके।

नेहा की कोच अर्जुन अवार्डी प्रीतम रानी सिवाच हैं, वे भारत की 2002 सीडब्ल्यूजी स्वर्ण पदक विजेता महिला टीम की सदस्य रही हैं। नेहा की कोच ने उनकी दोनों बहनों की शादी भी करवाई। नेहा ने गरीबी और घर के हालातों से समझौता नहीं किया, बल्कि हर मुश्किल का सामना डटकर किया। वे खेल में फोकस करती हैं, उनकी मेहनत रंग लाती है।

नेहा की नौकरी रेलवे में लग चुकी है, वे रेलवे की सीनियर नेशनल की प्रतियोगिताओं में भाग लेती हैं, हर बार नेहा की टीम गोल्ड मेडल जीतती रही है। अब नेहा गोयल भारतीय महिला हॉकी की ओर से पहली बार ओलंपिक में भाग लेने वाली हैं। साल 2017 में वे एशियन कप में गोल्ड मेडल विजेता टीम का हिस्सा थीं। वे हॉकी वर्ल्ड कप और कॉमनवेल्थ गेम्स में भी भाग ले चुकी हैं। एशियन गेम्स में भारतीय हॉकी टीम को सिल्वर मेडल जिताने में नेहा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। नेहा मिल फील्डर हैं, यही वजह है कि हॉकी के मैदान में वे स्ट्राइकर को ज्यादा से ज्यादा गेंदे देकर गोल करने में मदद करती हैं। वे जितनी आक्रामकता से अटैक करती हैं, उतनी खूबी से डिफेंस भी कर लेती हैं।