PM ने रैलियों सांप्रदायिक बातें कहीं, लोगों ने नफरत की राजनीति को रिजेक्ट किया: सोनिया गांधी
कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी जो अपनी 'परीक्षा पे चर्चा' करते हैं, वे देश भर में इतने सारे परिवारों को तबाह करने वाली लीक पर स्पष्ट रूप से चुप हैं।
नई दिल्ली। कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार पर जोरदार हमला बोला है। द हिंदू में लिखे अपने लेख में सोनिया गांधी ने NEET परीक्षा में धांधली को लेकर कहा कि परीक्षा पर चर्चा करने वाले पीएम पेपर लीक पर चुप्पी साधे हुए हैं। उन्होंने लिखा कि PM ने रैलियों सांप्रदायिक बातें कहीं लेकिन लोगों ने नफरत की राजनीति को रिजेक्ट किया है।
सोनिया गांधी ने अपने लेख में लिखती हैं, ‘2024 के चुनाव में पीएम की व्यक्तिगत, राजनीतिक और नैतिक हार हुई। खुद को ईश्वरीय शक्ति घोषित करने वाले पीएम मोदी के लिए ये चुनाव परिणाम उनकी घृणा की राजनीति का अस्वीकरण था। प्रधानमंत्री ने चुनाव के दौरान अपने पद की मर्यादा का ख्याल न रखते हुए झूठ बोला और सांप्रदायिक बातें कहीं। मणिपुर जलता रहा लेकिन प्रधानमंत्री वहां जाने का समय नहीं निकाल पाए। प्रधानमंत्री के 400 पार के नारे को जनता ने रिजेक्ट किया इस पर उनको आत्म विश्लेषण करना चाहिए।
सोनिया गांधी ने लिखा कि पीएम मोदी सहमति की बात करते हैं लेकिन टकराव का रास्ता अख्तियार करते हैं। उन्होंने लेख में आगे लिखा, 'भारत के अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और धमकी का अभियान एक बार फिर तेज हो गया है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) शासित राज्यों में, बुलडोजर फिर से अल्पसंख्यकों के घरों को महज आरोपों के आधार पर ध्वस्त कर रहे हैं, उचित प्रक्रिया का उल्लंघन कर रहे हैं और सामूहिक दंड दे रहे हैं।'
कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष ने अपने लेख में आगे लिखा कि NEET घोटाले पर, जिसने हमारे लाखों युवाओं के जीवन पर कहर बरपाया है, शिक्षा मंत्री की तत्काल प्रतिक्रिया यह थी कि जो कुछ हुआ है, उसकी गंभीरता को नकार दिया जाए। प्रधानमंत्री मोदी जो अपनी ‘परीक्षा पे चर्चा’ करते हैं, वे देश भर में इतने सारे परिवारों को तबाह करने वाली लीक पर स्पष्ट रूप से चुप हैं।
सोनिया गांधी ने लेख में इमरजेंसी को लेकर भी बात की है। वह आगे लिखती हैं कि सरकार की तरफ से जब हमसे स्पीकर चुनाव में समर्थन की मांग की गई तो हमने कहा कि परंपरा के मुताबिक उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को मिलना चाहिए, लेकिन सरकार ने हमारी मांग नहीं मानी। बल्कि प्रधानमंत्री ने इमरजेंसी का जिक्र किया और आश्चर्यजनक रूप से स्पीकर ने भी ध्यान भटकने के लिए वही किया। मार्च 1977 में देश के लोगों ने इमरजेंसी लगाई जाने पर अपना फैसला सुनाया जिसे स्वीकार किया गया था।