Bultoo Radio : बस्तर में बुल्टू बना टीचर, घर बैठे पढ़ाई

Chattisgarh Government : मोबाइल नेटवर्क की पहुंच से दूर इलाकों में बच्चों को पढ़ाने के लिए लिया जाएगा बुल्टू मोबाइल का सहारा, Bluetooth के जरिए पहुंचाई जाएगी शिक्षण सामग्री

Publish: Jul 19, 2020, 07:07 AM IST

बस्तर जिले के सुदूरवर्ती गांवों में मोबाइल नेटवर्क की समस्या है। जिससे इलाके में इंटरनेट नहीं चलता है। इसलिए ग्रामीण इलाकों के ज्यादातर छात्रों को 'पढ़ई तुंहर दुआर' ऑनलाइन पढ़ाई योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इसलिए सरकार ने नवाचार यानी नई तकनीक का इस्तेमाल करते हुए ऐसे इलाकों में ब्लू टूथ के जरिए छात्रों को पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाने की तैयारी की है।

स्थानीय लोग जिसे बुल्टू मोबाइल कहते हैं। वह कुछ और नहीं बल्कि ऐसा मोबाइल है जिसमें डाटा ट्रांसफर ब्लूटूथ के माध्यम से किया जाता है। बस्तर अंचल के रिमोट एरिया के जंगलों में नेटवर्क नहीं होने के कारण बच्चों की पढ़ाई बाधित है। बिना नेटवर्क वाले इलाकों में छात्रों को ब्लू टूथ के जरिए पढ़ाया जाएगा।  

छत्तीसगढ़ शिक्षा विभाग ने ‘सीजीनेट स्वर’ स्व-सहायता समूह के सहयोग से इसे लॉन्च करने की तैयारी कर ली है। फिलहाल यह योजना बस्तर, नारायणपुर औऱ कोंडागांव में पायलट प्रोजेक्ट के रुप में शुरु की जा रही है। अगले 10-15 दिनों में बस्तर के सुदूर जंगलों में शिक्षक ब्लूटूथ तकनीक के जरिए छात्रों की क्लास ले सकेंगे। स्कूल के टीचर अपनी क्लास के छात्रों के लिए लेक्चर तैयार कर उसकी डिजिटल फाइल बनाएंगे और उसे ब्लूटूथ के जरिए एक मोबाइल से दूसरे मोबाइल में भेजेंगे।

कई बोलियों में तैयार किया जा रहा पाठ्यक्रम

‘सीजीनेट स्वर’ के संस्थापक शुभ्रांशु चौधरी ने बताया है कि स्कूल शिक्षा विभाग ने शिक्षकों की लिस्ट दी है, जिसमें इसमें ऐसे शिक्षक शामिल हैं जो हिन्दी के अलावा गोंड़ी, हल्बी, भतरी, धुरवी समेत दूसरी अन्य स्थानीय बोलियों में पढ़ा सकते हैं। शिक्षक व्हाट्सएप के जरिए पाठ्य सामग्री का आडियो भेजते हैं। जिसे संस्था के द्वारा जोड़कर आडियो फार्म में तैयार किया जाता है। छात्रों के मोबाइल में ब्लू टूथ के जरिए भेजा जाएगा। शिक्षकों के लेक्चर तैयार होने पर उनका रिकॉर्ड रखा जाएगा। फिर जरूरत के हिसाब से वह पाठ्य सामग्री ब्लू टूथ के जरिए नेटवर्क विहीन गांवों में भेजी जाएगी।

छात्र रिकॉर्डिंग डाउनलोड कर सुन सकेंगे पाठ

बस्तर के ग्रामीण इलाकों में हाट का प्रचलन है। एक हाट में आए अलग-अलग गांवों के ग्रामीणों के मोबाइल में छात्रों के लिए पाठ्य सामग्री शिक्षकों द्वारा दे दी जाएगी है। जिसे ग्रामीण गांव जाकर छात्रों के मोबाइल में ब्लू टूथ के माध्यम से शेयर कर देंगे। जिसके बाद छात्र उस पाठ्य सामग्री को डाउनलोड कर पाठ याद कर सकेंगे। छात्रों को इसके लिए किसी तरह का पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा। छात्र चाहे तो अकेले या फिर समूह में इस पाठ को बार बार दोहरा सकेंगे। इसके तहत प्राइमरी, मिडिल स्कूल के छात्रों के लिए पाठ्य सामग्री तैयार की जा रही है। छात्रों के लिए तैयार किए जाने वाले कामन लेसन होंगे। जो सभी कक्षाओं के छात्रों के काम आएंगे, इस पाठय सामग्री को हिन्दी के साथ गोंड़ी, हल्बी, भतरी जैसी भाषाओं में तैयार करने की भी योजना है।

सर्वे का काम जारी, बनाई जा रही लिस्ट

दक्षिण बस्तर के ज्यादातर गांवों में नेटवर्क एक बड़ी समस्या है। ‘सीजीनेट स्वर’ के वॉलेंटियर्स बस्तर के हाट बाजार का सर्वे कर रहे हैं। आमतौर पर एक बाजार में 4-5 गांवों के लोग आते हैं। ग्रामीणों की लिस्ट तैयार की जा रही है। यहां आने वाले ग्रामीण बच्चों के लिए तैयार पाठ्य सामग्री अपने मोबाइल पर लेकर जाएंगे और गांव के सभी बच्चों को ब्लू टूथ के जरिए बांट देंगे। ऐसे ही बिना डाटा और नेटवर्क के छात्रों के मोबाइल में उनकी पाठ्य सामग्री पहुंच जाएगी। सीजीनेट स्वरा के पास व्हाट्सए की एपीएन तकनीक भी है। इस तकनीक के माध्यम से एक साथ लाखों लोगों को मैसेज भेजा जा सकता है।

एक पखवाड़े के भीतर शुरु हो जाएगी योजना

छात्रों के लिए चलाई जाने वाली बुल्टू पढ़ाई योजना के बारे में छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आलोक शुक्ला का कहना है कि सीजीनेट स्वर के पास तकनीक है जिसका उपयोग किया जाएगा। उन्होंने कहा कि कोरोना के कारण बच्चों की पढ़ाई का नुकसान कम करने का प्रयास किया जा रहा है। अगले एक पखवाड़े में बस्तर के सुदूर गांवों के लिए बुल्टू योजना लॉन्च कर दी जाएगी। जिससे बिना नेटवर्क के भी छात्रों के पास उनके क्लास का सिलेबस औऱ लेसन पहुंचने लगेगा।

महाराष्ट्र के गढ़चिरौली से मिली प्ररेणा

मोबाइल रेडियो सर्विस चलाने वाले शुभ्रांशु चौधरी के अनुसार बुल्टू मोबाइल का प्रयोग महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के भामरगढ़ ब्लाक में सफलता पूर्व किया जा रहा है। गौरतलब है कि भामरगढ़ ब्लॉक का एक हिस्सा बस्तर के अबूझमाड़ से जुड़ा हुआ है। इस इलाके में केवल 10 प्रतिशत गांवों में ही इंटरनेट का कनेक्शन है। इस इलाके के ग्रामीणों के पास एंड्राइड फोन हैं, जिनका प्रयोग ग्रामीण केवल टेपरिकॉर्डर की तरह गाना सुनने के लिए ही करते हैं। वहीं गढ़चिरौली से सटे अबूझमाड़ इलाके में भी नेटवर्क की कमोबेश यही स्थिति है। इस तकनीक के माध्यम से छात्रों को कोरोना काल में होने वाली पढ़ाई के नुकसान को कम किया जा सकेगा।