लिव इन रिलेशनशिप पाश्चात्य अवधारणा, भारतीय संस्कृति के लिए कलंक है: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
कोर्ट ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप भारतीय संस्कृति अब भी एक "कलंक" के रूप में बना हुआ है क्योंकि ऐसा संबंध भारतीय सिद्धांतों की सामान्य अपेक्षाओं के विपरीत आयातित विचार है।
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को लेकर विवादित टिपण्णी की है। अदालत ने लिव इन रिलेशनशिप को भारतीय संस्कृति के लिए कलंक बताया है। हाई कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि यह वेस्टर्न कंट्री ने लाई गई सोच है, जो कि भारतीय रीति-रिवाजों की सामान्य अपेक्षाओं के विपरीत है।
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने यह फैसला दंतेवाड़ा से जुड़े एक मामले में दिया। जस्टिस गौतम भादुड़ी और संजय एस अग्रवाल की डबल बेंच ने लिव इन रिलेशनशिप में बने संबंध से पैदा हुए बच्चे की कस्टडी को लेकर सुनवाई कर रहे थे। कोर्ट ने इस दौरान तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि समाज के कुछ क्षेत्रों में अपनाए जाने वाली लिव इन रिलेशनशिप अभी भी भारतीय संस्कृति में कलंक के रूप में जारी है, क्योंकि लिव इन रिलेशनशिप आयातित धारणा है, जो कि भारतीय रीति की सामान्य अपेक्षाओं के विपरीत है।
अदालत ने कहा कि एक विवाहित व्यक्ति के लिए लिव इन रिलेशनशिप से बाहर आना बहुत आसान है। ऐसे मामलों में उक्त कष्टप्रद लिव इन रिलेशनशिप से बचे व्यक्ति की वेदनीय स्थिति और उस रिश्ते से जन्मी संतानों के संबंध में न्यायालय अपनी आंखें बंद नहीं कर सकती। अदालत ने इस रिश्ते को भारतीय मान्यताओं के खिलाफ बताया है।
दरअसल, दंतेवाड़ा निवासी शादीशुदा अब्दुल हमीद सिद्दिकी करीब तीन साल से एक हिंदू महिला के साथ लिव इन रिलेशनशिप में था। संबंध के चलते हिंदू महिला ने अगस्त 2021 में बच्चे को जन्म दिया और बाद में अब्दुल से अलग हो गई। अब्दुल ने न्यायालय में याचिका दायर कर कहा कि वह बच्चे की देखभाल करने में सक्षम है, लिहाजा बच्चा उसे सौंपा जाए। कोर्ट ने आवेदन खारिज कर दिया था। इस पर उसने हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी। महिला की तरफ से तर्क दिया गया कि हिंदु विवाह अधिनियम के तहत पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी वैध नहीं होती। लिव इन रिलेशनशिप से हुए बच्चे पर उसका हक नहीं बनता। हाई कोर्ट ने सुनवाई के बाद अब्दुल की याचिका खारिज कर दी।