RBI MPC: देश की आर्थिक हालत खस्ता, RBI ने मान तो लिया लेकिन खुलकर कहने में गुरेज

लॉकडाउन के बाद पहली बार जारी RBI के अनुमान में GDP विकास दर माइनस 9.5% रहने की आशंका, क्या अब फिस्कल उपाय आजमाएगी सरकार

Updated: Oct 10, 2020, 01:17 AM IST

Photo Courtsey : Amar Ujala
Photo Courtsey : Amar Ujala

भारतीय रिज़र्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के दौरान देश की जीडीपी विकास दर में 9.5 फीसदी की भारी गिरावट आने का अनुमान जाहिर किया है। आरबीआई ने यह भी कहा है कि आने वाले दिनों में ग्रोथ रेट में गिरावट का यह अनुमान और भी नीचे जा सकता है। यानी रिजर्व बैंक अब मान रहा है कि देश की आर्थिक हालत आने वाले दिनों में और खराब होने जा रही है।

लेकिन रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने आज प्रेस क़ॉन्फ्रेंस में खुलकर यह बात नहीं कही। बल्कि वे ज्यादातर समय इससे ठीक उलट अर्थव्यवस्था में रिकवरी की बातें करते रहे। बहुत से आर्थिक अखबारों की वेबसाइट ने भी रिकवरी की उम्मीदों को ही हेडलाइन बना लिया है, लेकिन असली कहानी गवर्नर के बयानों और इन हेडलाइनों में नहीं, विकास दर में भारी गिरावट के उन अनुमानों में छिपी है, जिन्हें रिजर्व बैंक के एक्सपर्ट ठोस आंकड़ों की बुनियाद पर तैयार करते हैं।

लॉकडाउन के बाद RBI ने पहली बार रखा GDP विकास दर का अनुमान

खास बात ये भी है कि कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन के बाद रिजर्व बैंक ने पहली बार जीडीपी विकास दर का अनुमान सामने रखा है। इससे पहले अगस्त में जारी मौद्रिक नीति की समीक्षा में रिजर्व बैंक ने जीडीपी ग्रोथ रेट का कोई आंकड़ा नहीं दिया था। सिर्फ इतना कहा था कि चालू कारोबारी साल में ग्रोथ रेट निगेटिव रहने की आशंका है। हालांकि 4 जून 2020 को रिजर्व बैंक ने आर्थिक विशेषज्ञों और एजेंसियों के अनुमानों का औसत अपनी रिपोर्ट में जारी किया था, जिसमें 2020-21 के दौरान देश की जीडीपी विकास दर माइनस 1.5 फीसदी रहने की आशंका जाहिर की गयी थी। अगर उस औसत से तुलना करें तो आज जारी माइनस 9.5 फीसदी गिरावट का अनुमान देश की माली हालत की बेहद भयावह तस्वीर पेश करता है।

यह हालत तब है, जब मोदी सरकार के राज में आंकड़ों के जरिए जितनी सच्चाई सामने आती है, उससे ज्यादा छिपाई जाती है, यह हम नहीं खुद मोदी सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम कह चुके हैं। पिछली तिमाही में करीब 24 फीसदी की गिरावट के आंकड़े सामने आने के बाद पूरे साल के लिए 9.5 फीसदी गिरावट के अनुमान को भी कुछ जानकार अगर इसी नज़रिए से देखें तो उसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए।

जिस मॉनिटरी पॉलिसी ने आज जीडीपी विकास दर के अनुमान जारी किए हैं, उसकी बैठक को लेकर पिछले दिनों हुआ विवाद भी यही बताता है कि देश की आर्थिक व्यवस्था को चलाने वाले संस्थानों के बारे में मोदी सरकार कितनी गंभीर है। हम आपको याद दिला दें कि एमपीसी यानी मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी में वक्त पर सदस्यों की नियुक्ति न हो पाने की वजह से कमेटी की बैठक अंतिम वक्त में टालनी पड़ी थी। जिसे लेकर पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने सरकार के कामकाज के तरीके और समझदारी पर गंभीर सवाल खड़े किए थे। इसके बाद ताबड़तोड़ तरीके से नियुक्तियां करके एमपीसी का कोरम पूरा किया गया और तब जाकर एमपीसी की बैठक 7 अक्टूबर को शुरू हो पाई, जबकि पहले यह बैठक सितंबर से 1 अक्टूबर तक होनी थी।

ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं

एमपीसी ने आज जो ऐलान किए हैं, उनमें ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं करने की घोषणा भी शामिल है। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता वाली 6 सदस्यों की मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी यानी MPC ने एकमत से फैसला किया कि रेपो रेट को 4% पर बरकरार रखा जाए। MPC ने रिवर्स रेपो रेट को 3.35 फीसदी पर बरकरार रखने का ऐलान भी किया है।

एमपीसी की अगस्त में हुई पिछली बैठक में भी ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया था। हालांकि इसके पहले मई में ब्याज दरों में 40 बेसिस प्वॉइंट और मार्च में 75 बेसिस प्वॉइंट की कटौती की गई थी। इस साल अब तक रिजर्व बैंक ब्याज़ दरों में 115 बेसिस प्वॉइंट की कटौती कर चुका है। जबकि फरवरी 2019 से अब तक रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में 2.50 फीसदी की बड़ी कटौती की है। इसके बावजूद आर्थिक विकास दर का रसातल में चला जाना इस बात का सबूत है कि ब्याज दरों में कटौती का रास्ता अब बेअसर हो चला है।

हमें याद रखना चाहिए कि देश में आर्थिक तबाही का जो मंजर आज दिखाई दे रहा है, उसमें कोरोना और लॉकडाउन का बड़ा हाथ है। लेकिन यह उसकी एक मात्र वजह नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट का दौर पिछले तब शुरू हो चुका था, जब कोरोना महामारी का नाम भी किसी ने नहीं सुना था। फरवरी 2019 से लगातार ब्याज दरों में कटौती करके रिजर्व बैंक उस आर्थिक सुस्ती से ही निपटने की कोशिश कर रहा था, जो आज महामंदी में बदल चुकी है।

ब्याज सहायता योजना अब 31 मार्च 2012 तक

एमएसएमई के लिए नवंबर 2018 में उस ब्याज सहायता योजना की घोषणा भी आर्थिक सुस्ती से निपटने के इरादे से ही की गई थी, जिसे अब 31 मार्च 2021 तक के लिए बढ़ा दिया गया है। 3 मार्च 2020 से इस योजना के तहत ऋण देने वाले पात्र संस्थानों में सहकारी बैंकों को भी शामिल कर लिया गया है। योजना के तहत एमएसएमई को उनके कर्ज पर सालाना दो प्रतिशत की ब्याज राहत दी जाती है। हालांकि पिछले दो साल के अनुभव से तो यही पता चलता है कि इस तरह की कर्ज को बढ़ावा देने वाली योजनाएं बुनियादी अर्थव्यवस्था में सुधार के अभाव में बेअसर साबित हो रही हैं।

LTRO के जरिए 1 लाख करोड़ का क्रेडिट

रिजर्व बैंक ने आज बैंकों को LTRO यानी लॉन्ग टर्म रेपो ऑपरेशन्स के जरिये 1 लाख करोड़ रुपये के सस्ते कर्ज मुहैया कराने का जो एलान किया है, उसकी कामयाबी भी इसीलिए संदिग्ध है। LTRO सुविधा के तहत बैंक 4 फीसदी की रेपो रेट पर कर्ज ले सकेंगे। लेकिन असल समस्या यह है कि जब लोगों की जेब में पैसे नहीं हैं तो देश की इकॉनमी में मांग कहां से पैदा होगी? और जब मांग नहीं होगी तो कर्ज कितना भी सस्ता हो, उसे निवेश करके कोई मुनाफा कैसे कमाएगा? जानकारों का मानना है कि मौजूदा आर्थिक माहौल में सस्ते कर्ज का इस्तेमाल सिर्फ कुछ लोग शेयर बाज़ार में पैसा लगाने के लिए कर रहे हैं। जिसमें बड़ी रकम लगाने से एक तरह की हवाई तेज़ी लाई जा सकती है और पैसे बनाए जा सकते हैं। लेकिन रियल इकॉनमी को इससे कोई फायदा नहीं होने वाला।

क्या फिस्कल उपायों के बारे में सोचेगी सरकार

अच्छी बात है कि रिजर्व बैंक ने इस बार महामंदी का इलाज़ करने के चक्कर में घबराकर ब्याज दरें और घटाई नहीं हैं। शायद शायद उसे कुछ हद तक समझ आ गया है कि देश जिस आर्थिक संकट से गुज़र रहा है, उसका सही इलाज़ ब्याज दरों में कटौती नहीं, बल्कि फिस्कल यानी सरकारी खजाने से सही मदों में खर्च बढ़ाए जाने में छिपा है। देखना यह है कि क्या मोदी सरकार अब उन उपायों पर अमल के बारे में गंभीरता से कुछ सोचेगी जिनकी सलाह देश-दुनिया के बड़े आर्थिक जानकारी पिछले कुछ महीनों में बार-बार देते आ रहे हैं।