जैविक खेती की अलख जगा रहीं 105 साल की कोयंबटूर की दादी

जैविक खेती और कृषि के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए कोयंबटूर के थेक्कमपट्टी गांव की एम. पप्पम्माल को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है

Updated: Feb 03, 2021, 08:27 AM IST

Photo Courtesy: twitter/thehindu
Photo Courtesy: twitter/thehindu

कोयंबटूर। दूध जैसे सफेद बाल, माथे पर चंदन और बॉर्डर वाली साड़ी एम. पप्पम्माल की पहचान है। ऊंचे कद और रौबदार आवाज़ वाली 105 साल की एम. पप्पम्माल सूरज उगने से पहले उठती हैं और तड़के ही तैयार होकर खेतों में पहुंच जाती हैं। उन्हें कोयंबटूर में दादी के नाम से पुकारा जाता है। इस उम्र में भी वे तमाम अड़चनों को मात देकर अपने लगभग 2.5 एकड़ खेत में जैविक खेती करती हैं। इतना ही नहीं, वे दूसरों को भी जैविक खेती के लिए प्रेरित करती हैं। कोयंबटूर की दादी का यह क्रम कई बरसों से जारी है।

पप्पम्माल ने दी उम्र को मात, उनकी मेहनत बनी मिसाल

पप्पम्माल की उम्र भले ही 105 साल हो, लेकिन उनका जज्बा किसी युवा से कम नहीं हैं। वे तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले के थेक्कमपट्टी गांव में रहती हैं। उनका 2.5 एकड़ के खेत भवानी नदी के किनारे हैं, जिससे उन्हें सिंचाई के लिए आसानी से पानी उपलब्ध हो जाता है। वे दशकों से जैविक खेती कर रही हैं। वे अपने खेतों में दाल, सब्ज़ियां, बाजरा, रागी की खेती तो करती ही हैं, इन दिनों केले की खेती में भी हाथ आजमा रही हैं। थेक्कमपट्टी गांव में उनकी एक दुकान भी है। जहां वे अपने खेतों की उगाई जैविक वस्तुएं बेचती हैं। जब भी कोई खरीदार आता है तो बड़े प्यार से पहले उसे पानी पीने के लिए पूछती हैं, फिर सामान की खरीदारी की बात होती है।

खेतों में ही नहीं जीवन में भी अपना रही जैविक उत्पाद

जीवन के 105 बसंत देख चुकी पप्पम्माल आज भी अपने खेतों में आसानी से काम कर लेती हैं। कई किलोमीटर पैदल चलती हैं। वे खेतों में पौधों से बातें करती हैं, उनकी देखभाल अपने बच्चों की तरह करती हैं। खेतों में जाने के लिए पप्पम्माल सुबह करीब 4 बजे उठ जाती हैं। वे खुद भी सभी प्राकृतिक चीजों का उपयोग करती हैं। मसलन, टूथपेस्ट की बजाय नीम की दातून, नहाने के लिए साबुन की जगह मिट्टी और हाथ साफ करने के लिए राख। 

कृषि कार्यों में उल्लेखनीय कार्य के लिए पद्मश्री

कृषि कार्यों में उनकी उपलब्धियों के लिए इस साल 26 जनवरी को एम.पप्पम्माल को पद्मश्री देने का ऐलान किया गया है। उनका कहना है कि वे अवार्ड के बारे में सुनकर गौरवान्वित महसूस कर रही हैं। उन्हें यह एक सपने जैसा लगता है। कई दिनों से उनके घर में मिलने वालों का तांता लगा है। अब तक वे 40 से ज्यादा बार इंटरव्यू दे चुकी हैं। वे चाहती हैं कि लोगों को ज्यादा से ज्यादा जैविक खेती के लिए प्रेरित करें। अगर पढ़े-लिखे लोग खेती करेंगे तो ज्यादा कमाई की जा सकती है। 

जैविक खेती की अलख जगाने के लिए कड़ी मेहनत

पप्पम्मल का कहना है कि एक बार उन्होंने किसी से 'जैविक खेती' शब्द सुना। फिर उन्होंने इसकी सारी जानकारी जुटाई और अपने खेतों में उसका उपयोग करने लगीं। उनका कहना है कि अब उन्हें पता चल चुका है कि फसलों पर उपयोग किए गए जहरीले केमिकल पौधों के साथ-साथ हमारे लिए भी नुकसानदायक हैं। इनका उपयोग मिट्टी, हवा, पानी के लिए भी हानिकारक है। हमारी सेहत भी खराब करता है। अब वे जैविक खाद बनाती हैं, जिसमें नीम मट्ठा, गौमूत्र का उपयोग होता है। धीरे-धीरे वे अपने आसपास के लोगों को भी जैविक खेती के लिए प्रेरित करने लगीं। धीरे-धीर यह कारवां बढ़ता गया और आसपास के इलाके में जैविक खेती की अलख जगाने में पप्पम्मल कामयाब रहीं। वे कई जगहों का दौरा भी कर चुकी हैं, ताकि लोगों को इसकी खूबियां बता सकें।

समाज सेवा के काम में भी बढ़-चढ़कर लेती हैं हिस्सा

एम.पप्पम्माल जितना खेती किसानी के काम में आगे रहती हैं, उतना ही वे कृषि से जुड़े दूसरे कार्यक्रमों में भी भाग लेती हैं। पप्पम्माल तमिलनाडु के कृषि विश्वविद्यालय की सलाहकार समिति की सदस्य भी हैं। थेक्कमपट्टी पंचायत की वार्ड मेंबर चुने जाने पर पप्पम्माल ने उस जिम्मेदारी को भी बखूबी निभाया। जिस उम्र में लोग कामकाज तो दूर अपनी छोटी-छोटी ज़रूरतों के लिए परिवार वालों की मदद पर निर्भर हो जाते हैं, उस उम्र में पप्पम्माल खेती जैसा मेहनत का काम बिना किसी कठिनाई के करती हैं।