छत्तीसगढ़ के मत्स्य पालकों को मिली सौगात, सरकार ने मछली पालन को दिया खेती का दर्जा

दो लाख से ज्यादा मछली पालकों और मछुआरों को जीरो प्रतिशत ब्याज पर मिलेगा लोन, किसान क्रेडिट कार्ड की होगी पात्रता, बिजली, पानी मिलेगा मुफ्त, राज्य के कुल जल क्षेत्र के 94 प्रतिशत में होता है मछली पालन

Updated: Jul 23, 2021, 10:33 AM IST

Photo Courtesy: twitter
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रायपुर। भूपेश बघेल सरकार ने एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए मछली पालन को कृषि का दर्जा दे दिया है। इस फैसले से प्रदेश के मछली पालकों को कई लाभ मिलने का रास्ता आसान हो गया है। प्रदेश के करीब दो लाख से ज्यादा मत्स्य कृषकों और मछुआरों को मछली पालन के लिए बैंकों से लोन मिल सकेगा। वहीं किसान क्रेडिट कार्ड की पात्रता होगी। मछली पालकों को मत्स्य पालन के लिए मुफ्त में पानी उपलब्ध करवाया जाएगा। वहीं जीरो इंट्रेस्ट पर लोन मिल सकेगा।

दरअसल छत्तीसगढ़ में मत्स्य बीजों का उत्पादन बहुतायात में होता है। बीज के मामले में आत्मनिर्भर इस प्रदेश से ही अन्य दूसरे राज्यों में सप्लाई की जाती है। प्रदेश सरकार यहां केज कल्चर को बढ़ावा दे रही है जिससे ज्यादा से ज्यादा मछली का उत्पादन किया जा सके। जिस तरह किसानों को ब्याज रहित लोन दिया जाता है, साथ ही उनसे बिजली और पानी का टैक्स नहीं लिया जाता इसी तरह मछली पालकों से भी जल और विद्युत शुल्क में भी छूट दी जाएगी।

 

छत्तीसगढ़ में ढ़ाई साल में 9 प्रतिशत मत्य पालन बढ़ा

छत्तीसगढ़ मत्य उत्पादन में अव्वल है, यहां मत्स्य बीज उत्पादन में सराहनीय वृद्धि हुई है। बीते महज ढाई सालों में मत्स्य बीज उत्पादन का आंकड़ा 13 फीसदी से बढ़कर 22 हो गया है। 9 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। मछली पालन को कृषि का दर्जा मिलने से पहले मछुआरों को 1 फीसदी ब्याज पर एक लाख का लोन मिलता था। वहीं इन्हें अधिकतम 3 लाख का लोन लेने की पात्रता थी। अब मछली पालन को कृषि का दर्जा मिलने से अब इससे जुड़े लोगों को सहकारी समितियों से जीरो इंट्रेस्ट पर आसानी से लोन मिल जाएगा।

मछली उत्पादन की लागत में 10 रु प्रति किलो की कमी

मछली पालन को खेती का दर्जा मिलने से पहले किसानों को 10 हजार क्यूबिक फीट पानी के बदले 4 रूपए चुकाने पड़ते थे। वहीं 4.40 रुपए की दर से बिजली का बिल वसूला जाता था। अब प्रदेश सरकार के निर्णय के बाद मछली के उत्पादन की लागत कम हो सकेगी। माना जा रहा है कि मत्स्य उत्पादन की लागत करीब 10 रुपए तक कम हो सकेगी। राज्य में मछली पालन के लिए 30 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई बांधों और जलाशयों से नहर जरिए पानी पहुंचाया जाता है।

प्रदेश में अब तक 2386 केजों का हो चुका है निर्माण

छत्तीसगढ़ में केज कल्चर को बढ़ावा दिया जा रहा है। 2386 केज स्थापित हो चुके हैं। इसके तहत 6 बाई 4 बाई 4 मीटर के केज में जल्दी तैयार होने वाली मछलियां पाली जाती हैं। हर केज में करीब 3 मिट्रिक टन से अधिक मत्स्य उत्पादन किया जाता है।

मत्स्य बीज उत्पादन में आत्मनिर्भर है छत्तीसगढ़

मछली पालन को खेती का दर्जा देने से इससे जुड़े लोगों को लाभ होने की पूरी संभावना है। प्रदेश में मछली उत्पादन की लागत कम होगी जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ सकेंगे। मत्य बीजों के उत्पादन में छत्तीसगढ़ पहले से ही आत्मनिर्भर है। अपने कई पड़ोसी राज्यों को बड़ी मात्रा में मत्स्य बीजों की आपूर्ति करता है। इन राज्यों में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और बिहार समेत कई राज्य शामिल हैं।

प्रदेश के 94 फीसदी जल क्षेत्र में होता है मत्स्य उत्पादन

छत्तीसगढ़ में जल संपदा भरपूर है। यहां 93 हजार 698 जलाशय और तालाब हैं। जिनका जल क्षेत्र एक लाख 92 हजार हेक्टेयर है। कुल जल क्षेत्र के 94 प्रतिशत में मछली पालन का काम किया जाता है। याने करीब 81 हजार 616 जलाशयों एवं तालाबों के एक लाख 81 हजार 200 हेक्टेयर वाटर एरिया में मछली पालन किया जाता है।

मत्स्य पालकों के लिए सरकार की है खास योजना

मत्स्य पालकों को सरकार की ओर से पहले से ही कई सुविधाएं दी जाती रही हैं, इसके तहत सामान्य वर्ग के मछली पालकों को अधिकतम 4.40 लाख रुपए, SC,ST, महिला वर्ग के हितग्राहियों को 6.60 लाख रुपए की अनुदान सहायता दी जाती है, जिससे वे तालाब निर्माण और मत्स्य आहार की व्यवस्था कर सकें। वहीं छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से मछुआरों को मछुआ दुर्घटना बीमा करवाया जात है, दुर्घटना की स्थिति में बीमित मछली पालक की मौत पर 5 लाख रूपए की दावा राशि दी जाती है। बीमारी के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होने पर 25 हजार का इलाज मिलता है।