MP: नवंबर में भी खाद के लिए ठोकरें खाएंगे किसान, डिमांड से 50 फीसदी कम हुई सप्लाई

नवंबर माह में 200 रैक यूरिया और 70 रैक DAP मंगवा रही है मध्य प्रदेश सरकार, एक्सपर्ट्स के मुताबिक अनुमानित डिमांड लगभग इसका दोगुना

Updated: Nov 03, 2021, 04:40 AM IST

Photo Courtesy : The Indian Express
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भोपाल। मध्य प्रदेश खाद की भयंकर किल्लत से जूझ रहा है। राज्य सरकार का नवंबर माह का उर्वरक प्लान जारी हो गया। इसके मुताबिक नवंबर महीने में 6 लाख टन (200 रैक) यूरिया और 2 लाख 14 हजार टन (70 रैक) DAP मंगाया जा रहा है। साथ ही एनपीके महज 75 हजार टन (25 रैक) आएगा। कृषि एक्सपर्ट्स के मुताबिक खाद की सप्लाई कुल डिमांड से तकरीबन आधी है।

जानकार बता रहे हैं कि अगर यही हाल रहा तो नवंबर माह में भी किसान खाद के लिए दर-दर की ठोकरें खाएंगे। नवंबर माह में 10 लाख टन यूरिया की आवश्यकता है, लेकिन कुल सप्लाई 6 लाख टन ही है। जबकि DAP की आवश्यकता 6 लाख टन है और सप्लाई 2 लाख 14 हजार टन ही हो रही है। इसी तरह एनपीके डेढ़ लाख टन आना चाहिए था लेकिन सरकार 75 हजार टन की ही बंदोबस्त कर पाई है। किसान कांग्रेस के केदार सिरोही कहते हैं अगर ये आंकड़े सही हैं तो मध्य प्रदेश के किसानों को खाद के लिए और ठोकरें खानी तय है।

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एग्रो इनपुट डीलर एसोसिएशन के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय कुमार रघुवंशी के मुताबिक 15 नवंबर के बाद यूरिया की भयंकर किल्लत होने वाली है। रघुवंशी ने बताया कि चूंकि अभी बुआई हुई है और बुआई के 20 दिन बाद यूरिया की आवश्यकता होती है। ऐसे में नवंबर मध्य से किसान यूरिया के लिए भागदौड़ करेंगे। मौजूदा परिस्थितियों को देखकर यह तय हो गया है कि 50 फीसदी किसानों को यूरिया नहीं मिल पाएगा। तब एक-एक बोरी के लिए मारामारी होगी और किसान परेशान होंगे। रघुवंशी बताते हैं कि खुद केंद्र सरकार ने ही पिछले साल के मुकाबले 46 फीसदी कम खाद का आयात किया है, ऐसे में शॉर्टेज न केवल मध्य प्रदेश में बल्कि पूरे भारत में होना तय है।

बता दें कि पिछले हफ्ते ही मध्य प्रदेश के अशोकनगर में एक किसान ने खाद न मिलने के कारण आत्महत्या कर ली थी। परिजनों के मुताबिक रबी फसल की बुआई को लेकर वे बेहद परेशान थे। मृतक किसान खाद के लिए 15 दिनों तक भागदौड़ करते रहे, लेकिन एक भी बोरी जुटा पाने में असफल होने के बाद उन्होंने सल्फास जहर खाकर आत्महत्या कर ली। 

वर्तमान में प्रदेश DAP की संकट से जूझ रहा है। सरकार ने किसानों को उसकी जगह सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP) का इस्तेमाल करने के लिए कहा है। लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह किसानों की फसल चौपट कर देगी, क्योंकि प्रदेश में सरकार और कॉरपोरेट के गठजोड़ से अमानक खाद बेचा जा रहा है।

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खाद की गिरती गुणवत्ता का आलम ये है कि खाद की बोरियों में छल बेचा जा रहा है। कृषि के जानकारों के मुताबिक DAP में 46% फॉस्फोरस रसायन होता है जो फसलों के पोषण के लिए जरूरी तत्व है। सरकार का कहना है कि किसान 1 बोरी डीएपी की जगह 3 बोरी एसएसपी का इस्तेमाल कर सकते हैं। क्योंकि एसएसपी में 16 फीसदी फॉस्फोरस होता है, जिससे फॉस्फोरस की मात्रा 48 फीसदी तक पहुंच जाएगी और लागत भी लगभग बराबर ही पड़ेगा। लेकिन खाद विक्रेता संजय रघुवंशी बताते हैं कि एसएसपी का 50 फीसदी सैंपल फेल है। रघुवंशी के मुताबिक एसएसपी की बोरी में 16 की बजाए 3 से 5 फीसदी ही फॉस्फोरस है जो नाकाफी है। 

रघुवंशी ने इस बात पर हैरानी जताई है कि अमानक होने के बावजूद राज्य सरकार क्यों एसएसपी की बिक्री कराने में जुटी हुई है। बता दें कि एसएसपी का प्रोडक्शन प्रदेश में ही होता है और इसका शॉर्टेज भी नहीं है। प्रदेश में एसएसपी खाद निर्माता करीब 22 कंपनियां हैं। किसान नेता व कृषि एक्सपर्ट केदार सिरोही का आरोप है कि 'कॉरपोरेट को फायदा पहुंचाने के किए सरकार ने गुणवत्ता से समझौता कर लिया है। खाद की कमी जानबूझ कर इसीलिए जतायी जा रही है ताकि नेताओं के करीबी कॉरपोरेट घराने धड़ल्ले से अमानक खाद बेचकर करोडों रुपए कमा सकें।'

एक आंकड़े के मुताबिक सरकार ने इस साल 17.38 लाख टन कम खाद का आयात किया है। यह आंकड़ा 2018-19 के आंकड़ों से बदतर है। इस वजह से भी कालाबाज़ारी को बढ़ावा मिल रहा है और किसान कतार में धैर्य खो रहा है।