कृषि कानूनों के पक्ष में थे अधिकांश किसान संगठन, SC की ओर से गठित पैनल की रिपोर्ट में दावा

कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट की ओर गठित कमेटी की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 86 फीसदी किसान केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कानूनों से सहमत थे, किसान नेता और समिति के मेंबर अनिल घनवत ने यह रिपोर्ट जारी की

Updated: Mar 21, 2022, 01:50 PM IST

नई दिल्ली। केंद्र सरकार द्वारा वापस लिए गए तीन कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पैनल ने बड़ा दावा किया है। तीन सदस्यीय पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अधिकांश किसान संगठन तीनों कृषि कानूनों से सहमत थे। SC की इस कमेटी ने इन संगठनों को लेकर कहा है कि वे करीब 3 करोड़ किसानों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने किसान संगठनों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए 12 जनवरी 2021 को लिए एक तीन सदस्यीय कमेटी गठित की थी। इस कमेटी में कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, शेतकारी संगठनों से जुड़े अनिल धनवत और प्रमोद कुमार जोशी को शामिल किया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक कमेटी ने मार्च 2021 में अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी जो सोमवार को सार्वजनिक की गई।

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किसान नेता और समिति के सदस्य अनिल घनवत ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि वापस ले लिए जाने के कारण कमेटी की टिप्पणियों का कृषि कानूनों पर प्रभाव के संदर्भ में महत्वहीन है। हालांकि, यह नीति निर्माताओं और किसानों के लिए महत्वपूर्ण है। समिति के दो अन्य सदस्य कृषि अर्थशास्त्री व कृषि लागत और मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक गुलाटी और इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक (साउथ एशिया) डॉ प्रमोद कुमार जोशी इस दौरान अनुपस्थित रहे।

रिपोर्ट में क्या है

कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि उन्होंने 266 कृषि संगठनों से संपर्क किया था, जिनमें आंदोलन में हिस्सा लेने वाले किसान भी शामिल थे। कमेटी की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 3.83 करोड़ किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले 73 कृषि संगठनों ने उनसे सीधे या वीडियो लिंक के माध्यम से बातचीत की थी। 73 में से 61 संगठनों जो 3.3 करोड़ किसानों का प्रतिनिधित्व करते थे उन्होंने कृषि कानूनों का समर्थन किया। 51 लाख किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले चार संगठनों ने इसका विरोध किया था और अन्य 8 संगठन जो 3.6 लाख किसानों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे वे इसमें संशोधन चाहते थे।

पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है फसल खरीदी और अन्य विवाद सुलझाने के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बनाने का सुझाव दिया है। कमेटी के मुताबिक इसके लिए किसान अदालत जैसा निकाय बनाया जा सकता है। कमेटी का सुझाव है कि सरकार की ओर से तय MSP का प्रचार-प्रसार अधिक किया जाए, ताकि किसान नई रेट से अपडेट रहें। साथ ही किसान और कंपनी के बीच एग्रीमेंट बने जिसमें गवाह किसान की ओर से हो और बाजार में वस्तुओं की कीमत कॉन्ट्रैक्ट प्राइस से अधिक होने की स्थिति में समीक्षा का प्रावधान हो।

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किसान नेता केदार सिरोही ने इस रिपोर्ट को तथ्यहीन करार दिया है। केदार सिरोही ने हम समवेत से बातचीत के दौरान कहा कि, 'किसान संगठनों ने तो पहले ही इस कमेटी को मानने से इनकार कर दिया है। इस कमेटी के तीनों सदस्य कॉरपोरेट लॉबी से जुड़े हुए हैं और बीजेपी से प्रभावित हैं। ये जो कहेंगे उसे जमीनी सच्चाई नहीं माना जा सकता।' सिरोही ने आशंका जताते हुए कहा कि इस तरह की रिपोर्ट लीक कर केंद्र सरकार एक बार फिर से किसानों के ऊपर काले कानून थोपने का षड्यंत्र रच रही है।

बता दें कि केंद्र की सरकार तमाम विरोधों के बावजूद शुरुआत में कृषि कानूनों को वापस लेने से इनकार करती रही। किसान संगठनों के मुताबिक करीब एक साल लंबे चले आंदोलन में 700 से ज्यादा किसानों की मौत हुई। पीएम नरेंद्र मोदी ने अचानक पिछले साल 19 नवंबर को गुरु नानक देव की जयंती के मौके पर इन कानूनों को रद्द करने का ऐलान किया था। उन्होंने तब देश हित में कृषि कानूनों को वापस लेने की बात कही थी।