MP में आठ वर्ष में 31 हजार 843 लोग हुए ज़िलाबदर, राजनीतिक दबाव में कार्रवाई पर हाईकोर्ट की तल्ख़ टिप्पणी
उच्च न्यायालय ने 35 वर्षीय आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता अंतराम अवासे के खिलाफ जिलाबदर आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह जिला मजिस्ट्रेट की अतिशयोक्ति थी, जिसने अदालत को गुमराह किया।

इंदौर। मध्य प्रदेश में सोशल एक्टिविस्ट्स के विरुद्ध जिलाबदर की कार्रवाई आम हो गई। पिछले कुछ वर्षों में राज्य में सैंकड़ों की संख्या में सामाजिक संगठनों से जुड़े लोगों को जिलाबदर किया गया है। आलम ये है कि प्रदेश में साल 2016 से 2023 के बीच 31 हजार 843 लोगों को ज़िलाबदर किया गया। अब उच्च न्यायालय ने राजनीतिक दबाव में किए जा रहे जिलाबदर कार्रवाई को लेकर तल्ख टिप्पणी की है।
जबलपुर हाईकोर्ट ने पिछले महीने, 35 वर्षीय आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता अंतराम अवासे के खिलाफ पारित ऐसे ही एक जिलाबदर आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह जिला मजिस्ट्रेट की अतिशयोक्ति थी, जिसने अदालत को गुमराह किया था। इतना ही नहीं न्यायालय ने राज्य शासन पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया और कहा कि इसे बुरहानपुर कलेक्टर से वसूला जा सकता है।
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हाइकोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव को निर्देश देते हुए कहा कि वे जिलाधिकारियों के साथ बैठक कर उन्हें निर्देशित करें कि वे राजनीतिक दबाव में आकर इस तरह के आदेश पारित न करें। दरअसल, बुरहानपुर जिला प्रशासन ने अंतराम आवासे को 23 जनवरी 2024 को जिलाबदर किया था। आवासे के विरुद्ध फॉरेस्ट एक्ट के तहत कुछ मामले दर्ज थे और आईपीसी के दो धाराओं में भी केस था। उनका आदेश तीन दिन में खत्म ही होने वाला था कि 20 जनवरी 2025 को कोर्ट ने इस कार्रवाई को नियमविरुद्ध करार दिया।
न्यायालय ने कहा कि फॉरेस्ट एक्ट के उल्लंघन संबंधी मामले जिलाबदर का एक्शन नहीं लिया जाता। जबकि IPC के तहत जो मुकदमे हैं उनमें अंतराम दोषी नहीं बल्कि विचाराधीन हैं। उन मामलों में चार्जशीट तक फाइल नहीं हुई है। इतना ही नहीं अंतराम आवासे के खिलाफ कार्रवाई के दौरान जिन 16 लोगों के हस्ताक्षर लिए गए थे उनकी गवाही तक नहीं हो पाई। ऐसे में कोर्ट ने राज्य शासन और जिला प्रशासन को फटकारते हुए इस तरह के कार्रवाई नहीं करने के निर्देश दिए हैं।
बता दें कि संगठित अपराध पर लगाम लगाने के लिए सरकार के पास आदतन अपराधियों को एक साल के लिए उसके गृह ज़िले से बाहर करने की शक्ति होती है। हाल के वर्षों में मध्य प्रदेश में इसका खूब दुरुपयोग देखने को मिला है। मध्य प्रदेश पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार राज्य में साल 2016 से 2023 के बीच 31,843 लोगों को ज़िलाबदर किया गया। जहाँ 2016 में 2,130 लोगों को ज़िला बदर किया गया था, वहीं 2023 में यह आंकड़ा बढ़कर 7,319 हो गया। JADS संगठन से जुड़े नितिन वर्गीस का कहना है कि राज्य में भाजपा सरकार उनकी नीतियों का विरोध करने वाले ट्राइबल राइट्स एक्टिविस्ट्स को निशाना बनाने के लिए इस कानून का लगातार दुरुपयोग कर रही है।