बंपर पैदावार के बाद भी खून के आंसू रो रहे लहसुन उपजाने वाले किसान, दिग्विजय सिंह ने सीएम चौहान को लिखा पत्र

सीएम को संबोधित पत्र में दिग्विजय सिंह ने लिखा कि आपके ही गृह जिले सीहोर में किसान खून के आंसू रो रहे है। उन्हें लहसुन-प्याज की लागत तक नहीं मिल पा रही है। यदि आपने किसानों का दुखदर्द नहीं सुना तो ये किसान आपको दिल से माफ नही कर पायेंगे।

Updated: Aug 23, 2022, 01:19 PM IST

भोपाल। अच्छी उपज होने के बावजूद मध्य प्रदेश के किसानों की परेशानियां खत्म नहीं हो रही है। यहां की मंडियों में लहसुन और प्याज का रेट लागत मूल्य से काफी कम मिल रहा है। मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने इस मामले में सीएम चौहान को पत्र लिखकर कहा है कि आपके जिले के किसान खून के आंसू रो रहे हैं। यदि आपने किसानों का दुखदर्द नहीं सुना तो ये आपको दिल माफ से माफ नहीं कर पाएंगे।

सीएम चौहान को संबोधित पत्र में दिग्विजय सिंह ने लिखा कि, 'बंपर पैदावार के बाद लहसुन की औनी-पौनी कीमतों ने मालवा-निमाड़ सहित मध्यप्रदेश के किसानों को रूला दिया है। प्रदेश के सबसे बड़े लहसुन उत्पादक जिले रतलाम, मंदसौर, नीमच, इन्दौर की मंडियों में किसान थोक में लहसुन 1 रूपये प्रति किलो की दर से बेच रहे है। प्रदेश में किसानों के साथ किये जा रहे अन्याय की फेहरिस्त में यह एक और अध्याय जुड़ रहा है और सरकार हाथ पर हाथ रखे बेखबर होकर बैंठी है।'

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राज्यसभा सांसद ने आगे लिखा कि, 'मालवा आंचल के किसानों का कहना है कि लहसुन का बंपर उत्पादन करना अब हमारे लिये दुख और कष्ट का विषय बन गया है। वहीं मालवा की पिपलिया की मंडी में 8 अगस्त को न्यूनतम भाव 51 रूपये क्विंटल रहा। प्रदेश के लहसुन-प्याज उत्पादक किसानों का कहना है कि यह पहली बार नहीं हुआ है प्याज की खरीदी के समय भी सरकार द्वारा उनसे औने-पौने दामों पर प्याज खरीदी गई थी जिसका किसानों द्वारा विरोध किया गया था, अब दौबारा किसानों की फसल को लागत मूल्य से बहुत ही कम दर पर खरीद कर अन्याय किया जा रहा है।'

सिंह ने लिखा कि, 'इसके विरोध में कई क्षेत्रों में किसानों द्वारा लहसुन और प्याज की शव यात्रा भी निकाली गई है। आपके ही गृह जिले सीहोर में किसान खून के आसू रो रहे है। उन्हें लहसुन-प्याज की लागत तक नहीं मिल पा रही है। यहा कुछ किसानों ने आक्रोश में अपनी सैकड़ों क्विंटल लहसुन पार्वती नदी के पुल पर जा कर नदी में बहा दी है। यह प्रदेश का दुर्भाग्य है कि मुख्यमंत्री के रूप में सर्वाधिक लंबा कार्यकाल व्यतीत करने के बाद भी आपके द्वारा किसानों को फसलों के वाजिब दाम दिलाये जाने के लिये अभी तक कोई ठोस पहल नहीं की गई है।'

कांग्रेस नेता ने आरोप लगाते हुए कहा कि, 'चुनाव के समय किसानों को भरमाने के लिये आपके द्वारा बनाई गई भावंतर योजना भी पता नहीं किस भंवर में जा फंसी है। रबी की फसल हो या खरीफ की फसल दोनों ही फसलों में आप किसानों को न तो समर्थन सही तरीके से दिला पाये है न ही सही कीमत दिलाने के लिये आपने 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से आज तक कोई प्रभावी कदम उठाया है। यह बात अलग है कि आप रोज किसानों को स्वतः के किसान पुत्र होने की बात करते रहते है। विगत कुछ वर्षों से प्रदेश के किसानों को गर्मी की मूंग समय पर  समर्थन मूल्य पर नहीं खरीदी गई। किसानों ने 4 से 5 हजार रूपयें क्विंटल में व्यापारियों को मजबूरी में अपनी फसल बेची।'

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राज्यसभा सांसद ने आगे लिखा कि, 'पिछले साल आपने सब्जियों का समर्थन मूल्य घोषित करने की घोषणा की थी जो अभी तक फाइलों से बाहर नही आ पायी है। इस वर्ष मालवांचल में लहसुन की पैदावार करने वाले किसानों को दो से पांच रूपये किलो तक के रेट नही मिल पा रहे है। किसान लहसुन की लागत तक नही निकाल पा रहे है। इस लागत ने उन्हें लाखों रूपये के कर्ज में डूबा दिया है। राज्य सरकार ने इन किसानों की लहसुन खरीदने और बेचने में अब तक किसी प्रकार की कोई पहल नहीं की है। आश्चर्यजनक यह है कि किसान लहसुन की फसल में आग लगा रहे है और नदी में फेंक रहे है पर सरकार की ओर से आज तक लहसुन उत्पादक किसानों के प्रति कोई हमदर्दी तक प्रदर्शित नही की है।'

उन्होंने पीएम मोदी के वादे को याद दिलाते हुए लिखा कि, 'पीएम मोदी ने 2017 में यह घोषणा की थी कि जब देश 2022 में आजादी की 75वीं सालगिरह मना रहा होगा, तब तक देश के किसानों की आमदनी दो गुनी कर दी जायेगी। यह किसानों का दुर्भाग्य है कि दो गुनी आमदनी करने का वादा भी ‘‘जुमला’’ साबित हुआ। आज की स्थिति में मध्यप्रदेश में शायद ही कोई माह जाता होगा जब सब्जी पालन करने वाले किसान मंडियों में आल, प्याज, टमाटर सहित अन्य सब्जियों को भाव नहीं मिलने पर मंडी में ही छोड़कर जाने मजबूर होते हैं।'

कांग्रेस नेता ने आगे लिखा कि, 'आप पिछले दरवाजे से सरकार में जरूर आ गये हैं पर प्रदेश के मुख्यमंत्री होने के नाते आपका यह राजधर्म है कि खून के आंसू रो रहे लहसुन और प्याज उत्पादक किसानों से चर्चा करें और उन्हें उनकी फसल का उचित मूल्य दिलाये जाने की पहल करें। यदि आपके द्वारा मालवा और निमाड़ अंचल के किसानों का दुखदर्द नहीं सुना गया तो ये किसान आपको दिल से माफ नही कर पायेंगे।'