दर्द से तड़पती प्रसूता, ऑपरेशन थिएटर में लटका ताला, ऐसा है शिव-राज में स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल

शहडोल ज़िले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का बुरा हाल, दर्द से तड़पती रही प्रसूता, ऑपेरशन थिएटर में ताला बंद कर चली गई ओटी इंचार्ज

Updated: Dec 06, 2020, 09:04 PM IST

शहडोल। मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्था लगता है भगवान भरोसे ही चल रही है। राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की बदहाली की गवाही आज प्रदेश के तमाम जिला अस्पताल और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र दे रहे हैं। ताज़ा मामला उसी शहडोल का है जहां एक हफ्ते में दर्जनों नवजात शिशुओं ने दम तोड़ दिया है। भास्कर में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एक प्रसूता दर्द से बुरी तरह तड़पती रही, लेकिन वहां उसका इलाज़ तो दूर खबर लेने भी वाला कोई नहीं था।

बताया जा रहा है कि मामला शहडोल के जिला अस्पताल से महज़ 22 किलोमीटर दूर गोहपारू सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का है। यहां के लेबर रूम में शनिवार को एक प्रसूता दर्द से तड़पती रही थी, लेकिन उसे देखने वाला वहां कोई नहीं था। अस्पताल में कोई महिला डॉक्टर मौजूद नहीं थी और ऑपेरशन थिएटर में तो ताला जड़ा हुआ था। हैरान करने वाली बात यह है कि वहां ताला इसलिए लगा था, क्योंकि उसकी चाबी ओटी इंचार्ज राजकली पटेल के पास रहती है और वह अपने घर चली गई थीं।

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इस दौरान दर्द से तड़पती प्रसूता रानी के पति संतोष प्रजापति हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना करते रहे कि उनकी पत्नी की डिलीवरी किसी तरह नॉर्मल हो जाए। संतोष के पास इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था। अस्पताल में मौजूद एक नर्स दिलासा दे रही थी कि हिम्मत रखो सब ठीक हो जाएगा। बताया जा रहा है कि यह स्थिति सिर्फ गोहपारू की नहीं है, बल्कि जिले के आसपास के किसी भी अस्पताल में प्रसूति रोग विशेषज्ञ है ही नहीं।

हैरान करने वाली बात यह है कि जिले में ऑपेरशन की कोई व्यवस्था नहीं है। अगर जच्चा-बच्चा में से किसी की भी सेहत बिगड़ी, तो उसे जिला अस्पताल में रेफर करना ही आखिरी विकल्प रह जाता है। जिला अस्पताल पर भी आस-पास के 250 गांव के लोगों के इलाज जिम्मेदारी है। वहां भी इलाज ठीक से नहीं मिल पाता, जिससे कई बार मरीज़ की जान खतरे में पड़ जाती है। यह वही ज़िला अस्पताल है जो इस हफ्ते राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में था, क्योंकि 48 घंटे में 6 नवजात शिशु कुव्यवस्था की भेंट चढ़ गए थे। खबर लिखे जाने तक इस अस्पताल की लचर व्यवस्था की वजह से एक दर्जन से ज्यादा नवजात शिशुओं की जान जा चुकी है।

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शहडोल से 36 किमी दूर 40 खन्नौदी गांव में भी एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है, जहां पुरवा, बरहा, सलदा गांव के मरीज आते हैं। यहां प्रसूता की डिलीवरी होना तो दूर उसकी नब्ज मापने के लिए पल्स ऑक्सीमीटर तक नहीं है। चौंकाने वाली बात यह है कि अगर प्रसूता या बच्चे को ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत पड़ जाए तो उसे रैफर करना ही एकमात्र विकल्प रह जाता है। रेफर करने के बाद एंबुलेंस के लिए भी एकमात्र जननी एक्सप्रेस का ही सहारा है।

जिस प्रदेश में सामान्य स्वास्थ्य सुविधाओं का यह हाल हो, वहां अगर सरकार दावा करे कि उसने कोरोना महामारी से निपटने के लिए पर्याप्त इंतज़ाम किए हैं, तो उस पर कितना भरोसा किया जा सकता है? सवाल तो सरकार के उस दावे पर भी उठ रहे हैं जिनमें कोरोना का टीका आते ही उसे राज्य के तमाम ज़रूरतमंदों तक पहुंचाने की पूरी तैयारी भी युद्धस्तर पर कर लिए जाने की बात कही जा रही है। और बड़ा सवाल ये है कि अगर कोरोना वैक्सीन मध्य प्रदेश में आ भी गई तो उसे स्टोर करने के लिए ज़रूरी फ्रीज़र उन सरकारी अस्पतालों में कैसे मिल पाएंगे, जहां आज ऑक्सीमीटर तक आसानी से उपलब्ध नहीं हैं?