शहडोल जिला अस्पताल में दो और बच्चों की मौत, 4 दिनों में 8 नवजात गंवा चुके हैं जान

अस्पताल में बच्चों के लिए कुल 20 बेड हैं, जिन पर 32 बच्चे भर्ती होना स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी का प्रमाण, सवाल यह भी है कि ज़्यादा बच्चे भर्ती नहीं किए जाते तो क्या उन्हें कहीं और इलाज मिल पाता

Updated: Dec 02, 2020, 03:38 PM IST

Photo Courtesy: Bhaskar
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शहडोल। मध्य प्रदेश के शहडोल जिला अस्पताल में दो और बच्चों के मौत की खबर ने सबको हैरान कर दिया है। इसी के साथ इस अस्पताल में चार दिनों के अंदर दम तोड़ने वाले नवजात शिशुओं की संख्या आठ हो गई है। जिला अस्पताल में नवजात बच्चों की मौत के लिए सुविधाओं की कमी और अस्पताल प्रशासन की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। बच्चों की मौत से शहर के लोगों में काफी गुस्सा है। विपक्ष भी इस मुद्दे पर जमकर हंगामा कर रहा है।

बताया जा रहा है कि मंगलवार को जिले के कुशाभाऊ ठाकरे जिला चिकित्सालय के पीआईसीयू (PICU) में दो बच्चों की मौत हुई। इसके पहले सोमवार तक तीन दिनों में 6 नवजात मासूमों की मौत हो चुकी है। बताया जा रहा है कि इस अस्पताल में बच्चों के लिए कुल 20 ही बेड हैं, लेकिन यहां 32 बच्चों को भर्ती किया गया था। इससे पता चलता है कि प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं की कितनी भारी कमी है। बेड से ज़्यादा बच्चों को भर्ती करने पर तो सवाल उठ ही रहे हैं, लेकिन एक सवाल यह भी है कि अगर डॉक्टर बीस से ज्यादा बच्चों को भर्ती करने से इनकार कर देते तो क्या बाकी 12 बच्चों को कहीं और इलाज़ मिल पाता? या फिर वे बिना इलाज़ के ही रह जाते? जाहिर है कि असली मुद्दा सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी है।

इसके पहले सोमवार तक छः बच्चों की मौत के बाद बवाल बढ़ता देखकर शिवराज सरकार हरकत में आई और आनन-फानन में आपात बैठक बुलाई। इसके बाद सीएम ने जांच के आदेश दिए।इसके बाद जांच करने पहुंची सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज जबलपुर के सीनियर डॉक्टरों डॉ. पवन घनघोरिया (पीडियाट्रिशनय विभाग के एचओडी) और सहायक प्राध्यापक डॉ. अखिलेंद्र सिंह परिहार की दो सदस्यीय टीम ने डॉक्टरों को क्लीन चिट दे दी।

जांच दल ने कहा कि डॉक्टर सही उपचार दे रहे हैं। स्टाफ नर्स की कमी जरूर है, जगह भी कम है, जिसे बढ़ाना होगा। सीएमएचओ डॉ. राजेश पांडे का कहना है कि हर साल इस तरह का सीजनल वेरीएशन (मौसमी परिवर्तन) होता है। इसलिए ऐसी स्थिति बनती है।

बता दें कि शहडोल के जिला अस्पताल में पहले भी इस तरह की स्थिति देखने को मिल चुकी है। पिछले साल भी इसी अस्पताल में एक दिन में 6 बच्चों ने दम तोड़ा था। हालांकि, तत्कालीन कमलनाथ सरकार में तत्काल एक्शन लेते हुए सिविल सर्जन और सीएमओ को उनके पद से हटा दिया था, वहीं स्वास्थ्य मंत्री को खुद जाकर स्थिति का जायजा लेने का निर्देश दिया था।