नर्मदा में जलस्तर नापने के लिए लगेगा टेलीमीटरिंग सिस्टम, पर्यावरणविदों ने घटते वनक्षेत्र पर जताई चिंता

केंद्रीय जल आयोग के निर्णय पर पर्यावरणविदों की सकारात्मक प्रतिक्रिया सामने आई है। इनके अनुसार इससे बाढ़ नियंत्रण में मदद मिलेगी इसके साथ ही नर्मदा में जलस्तर की सटीक गणना हो सकेगी। वहीं पर्यावरणविदों ने नर्मदा के घटते जल स्तर, सूखती सहायक नदियों और घटते वन क्षेत्र को लेकर चिंता जताई है।

Updated: Jun 20, 2022, 06:51 AM IST

Photo Courtesy: The Indian Express
Photo Courtesy: The Indian Express

भोपाल। केंद्रीय जल आयोग नर्मदा नदी और उसकी सहायक नदियों में जलस्तर नापने के लिए 75 जगहों पर टेलीमीटरिंग सिस्टम लगाएंगे। इस सिस्टम से चंद मिनटों में यह पता लगेगा कि इन नदियों में जल स्तर कितना है और इन नदियों में बाढ़ कब आएगी, इसकी भी सटीक जानकारी देगा। इस निर्णय की पर्यावरणविदों ने सराहना की है इसके साथ ही घटते वन क्षेत्र, नर्मदा नदी के जल स्तर में कमी पर चिंता व्यक्त की है। 

इस टेलीमीटरिंग सिस्टम से यह भी पता लगेगा कि बारिश के दौरान राज्य के प्रमुख बांध में कितना पानी पहुंचेगा, जल स्तर बढ़ने पर सिस्टम अलर्ट जारी करेगा ताकि बांध से पानी नियमित अंतराल पर छोड़ा जा सके जिससे बाढ़ की स्थिति रोकी जा सके। अभी तक नर्मदा नदी और उसकी सहायक नदियों में जलस्तर मैनुअली रूप से जाँचा जाता है जिसमें काफी समय और श्रम शक्ति लगती है। यह सिस्टम बताएगा कि हर तीन घंटे में मंडला और होशंगाबाद में नर्मदा के प्रवाह और जलस्तर क्या होगा।

केंद्रीय जल आयोग के सीई आदित्य शर्मा ने बताया कि इस सिस्टम में रैन गेज सेंसर भी लगाए गए हैं। यह सिस्टम यह भी अनुमान लगाएगा कि बारिश के दौरान राज्य के प्रमुख पांच बांध इंदिरा सागर, बरगी, ओंकारेश्वर, बरना और तवा में कितना पानी पहुंचेगा। यदि बांधों में निर्धारित मात्रा से अधिक पानी पहुंचने की संभावना रहती है तो सिस्टम अलर्ट जारी करेगा। इससे एक साथ पानी छोड़ने की स्थिति से बचा जा सकेगा और बाढ़ की स्थिति निर्मित होने से पहले ही रोका जा सकेगा। बांध तक पहुंचने वाले पानी की मात्रा तय कर ली गई है। बारिश में भी यह सिस्टम 24 घंटे काम करेगा।

केंद्रीय जल आयोग के निर्णय पर पर्यावरणविदों की सकारात्मक प्रतिक्रिया सामने आई है। इनके अनुसार इससे बाढ़ नियंत्रण में मदद मिलेगी इसके साथ ही नर्मदा में जलस्तर की सटीक गणना हो सकेगी। वहीं पर्यावरणविदों ने नर्मदा के घटते जल स्तर, सूखती सहायक नदियों और घटते वन क्षेत्र को लेकर चिंता जताई है। पर्यावरणविद राज कुमार सिन्हा ने बताया कि सरकार को नर्मदा नदी में घटते जल स्तर, कम होती जल की मात्रा और खत्म होती सहायक नदियों पर ध्यान देना चाहिए। नर्मदा की कुल 41 सहायक नदियां है। इस सहायक नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र में जंगलों की बेतहाशा कटाई के चलते,  ये नदियां नर्मदा में मिलने की बजाए बीच रास्ते में ही दम तोङ रही है। नर्मदा का कैचमेंट एरिया घटता जा रहा है। राज्य सरकार द्वारा मंडला में प्रस्तावित बसनिया बांध से 2160 हेक्टेयर जंगल डूबेगा जबकि पहले ही विभिन्न बांध परियोजनाओं में 56000 हेक्टेयर जंगल डूब चुका है। नर्मदा नदी का जीवन वनक्षेत्र से है अगर वनक्षेत्र खत्म होते जाएंगे तो नर्मदा का अस्तित्व ही खतरे में आ जाएगा।

यह भी पढ़ें: भोपाल में जलसंकट: 40 फीसदी हिस्सों में नर्मदा सप्लाई बाधित, टैंकरों की व्यवस्था करने में जुटे रहवासी

वर्ष 2017 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने नर्मदा नदी के किनारे 6.6 करोड़ वृक्ष लगाने का विश्व रिकॉर्ड बनाया था। जिसमें राज्य सरकार द्वारा 100 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए गए थे। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी अपनी नर्मदा परिक्रमा के उपरांत अनेक अवसरों पर घटते जल स्तर, अवैध रेत उत्खनन को लेकर भाजपा शासित प्रदेश सरकार पर घोटाले के गंभीर आरोप लगा चुके हैं। दिग्विजय सिंह ने ही नर्मदा के किनारे वृक्षारोपण में हुए घोटाले को सबसे पहले उजागर किया था।