MP हाईकोर्ट ने शहडोल कलेक्टर पर लगाया 2 लाख का जुर्माना, अदालत को गुमराह करने का है आरोप
ChatGPT said: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शहडोल कलेक्टर डॉ. केदार सिंह पर झूठा हलफनामा देकर अदालत को गुमराह करने के आरोप में 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। यह मामला एनएसए के तहत निर्दोष युवक सुशांत बैस पर गलत कार्रवाई से जुड़ा है। कोर्ट ने इसे गंभीर प्रशासनिक लापरवाही मानते हुए अवमानना नोटिस भी जारी किया।
शहडोल। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए शहडोल कलेक्टर डॉ. केदार सिंह पर 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। अदालत ने पाया कि कलेक्टर ने झूठा हलफनामा दायर कर न्यायालय को गुमराह किया था। हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह राशि उन्हें अपने व्यक्तिगत खाते से जमा करनी होगी न कि सरकारी खजाने से। साथ ही अदालत ने डॉ. केदार सिंह के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी करने के भी निर्देश दिए हैं। यह पूरा मामला राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत एक निर्दोष युवक पर की गई गलत कार्रवाई से जुड़ा है।
शहडोल जिले की ब्यौहारी तहसील के ग्राम समन निवासी हीरामणि बैस ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बताया कि उनके पुत्र सुशांत बैस को जिला प्रशासन ने गलत तरीके से एनएसए के तहत हिरासत में ले लिया था। याचिका के अनुसार, पुलिस अधीक्षक ने नीरजकांत द्विवेदी नामक व्यक्ति पर एनएसए लगाने की सिफारिश की थी लेकिन कलेक्टर डॉ. केदार सिंह ने गलती से सुशांत बैस के नाम पर आदेश जारी कर दिया। इस गलती के चलते एक निर्दोष युवक की आज़ादी छिन गई और उसके मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन हुआ।
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मामले की सुनवाई के दौरान 24 सितंबर को कलेक्टर डॉ. केदार सिंह और एसपी रामजी श्रीवास्तव अदालत में उपस्थित हुए थे। अदालत ने दोनों की दलीलें सुनने के बाद गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव (एसीएस) एस.एस. शुक्ला को भी शपथपत्र पेश करने के निर्देश दिए। एसीएस ने अदालत में बताया कि कलेक्टर कार्यालय के एक बाबू से टाइपिंग में गलती हो गई थी जिसके लिए संबंधित कर्मचारी को नोटिस जारी किया गया है।
हालांकि, हाईकोर्ट इस सफाई से संतुष्ट नहीं हुआ। अदालत ने पाया कि कलेक्टर द्वारा दिए गए हलफनामे में झूठी जानकारी दी गई थी। हलफनामे में जिस अपराध क्रमांक 44/22 का हवाला दिया गया था वह मामला पहले ही समाप्त हो चुका था। इसके अलावा जिन गवाहों के बयान कलेक्टर ने पेश किए थे वे 2022 में दर्ज हुए थे और मौजूदा मामले से उनका कोई संबंध नहीं था। अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट रूप से न्यायालय को गुमराह करने का प्रयास था।
याचिकाकर्ता के वकील ब्रह्मेन्द्र प्रसाद पाठक ने बताया कि इस प्रशासनिक लापरवाही ने सुशांत बैस और उसके परिवार को गहरा मानसिक आघात दिया। सुशांत की शादी फरवरी में हुई थी और सितंबर में उस पर एनएसए लगाया गया था। उस दौरान उसकी पत्नी गर्भवती थी। मार्च में उसकी बेटी का जन्म हुआ लेकिन वह हिरासत में होने के कारण अपनी नवजात बच्ची को देख तक नहीं सका था। अदालत ने इस पहलू को बेहद गंभीर मानते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ इस तरह का खिलवाड़ अस्वीकार्य है।
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सुशांत बैस के वकील रामेंद्र पाठक ने आरोप लगाया कि यह कार्रवाई रेत ठेकेदारों के दबाव में की गई थी। उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन ने मनमाना व्यवहार करते हुए एनएसए लगाया जबकि इसका कोई वैधानिक आधार नहीं था। इस आदेश के कारण सुशांत को निर्दोष होने के बावजूद लगभग एक वर्ष तक जेल में रहना पड़ा था।
हाईकोर्ट की जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस अवनीन्द्र कुमार सिंह की डिवीजन बेंच ने अपने आदेश में कहा कि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ इस तरह का खिलवाड़ न केवल कानून के विरुद्ध है बल्कि प्रशासनिक नैतिकता पर भी सवाल खड़ा करता है। अदालत ने इसे गंभीर प्रशासनिक लापरवाही और न्यायिक प्रक्रिया के साथ खिलवाड़ करार दिया है।
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कोर्ट ने कहा कि जब कोई अधिकारी अदालत के सामने झूठी जानकारी देता है तो वह न्याय व्यवस्था की नींव को कमजोर करता है। इसलिए डॉ. केदार सिंह को व्यक्तिगत रूप से जुर्माना भरने का आदेश दिया गया और उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने के निर्देश दिए गए हैं। अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि प्रशासनिक अधिकारियों को यह याद रखना चाहिए कि कानून से ऊपर कोई नहीं है। किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता से खिलवाड़ या अदालत को गुमराह करने का प्रयास बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।




