MP के सिवनी में आदिवासी अधिकार महाआंदोलन आज, NCP सुप्रीमो शरद पवार और दिग्विजय सिंह करेंगे शिरकत

एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार, मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह करेंगे आदिवासी अधिकार महाआंदोलन को संबोधित, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल भी हो सकते हैं शामिल।

Updated: Apr 02, 2023, 11:20 AM IST

सिवनी। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में रविवार को आदिवासी अधिकार महाआंदोलन का आयोजन किया गया है। 11 सूत्री मांगों को लेकर आयोजित इस कार्यक्रम में देशभर के दिग्गज नेता हुंकार भरेंगे। रिपोर्ट्स के मुताबिक एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इस महाआंदोलन को संबोधित करेंगे। साथ ही झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन,  सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, महाराष्ट्र के पूर्व डिप्टी सीएम छग्गन भुजबल जैसे दिग्गज भी इस कार्यक्रम में शामिल हो सकते हैं।

बताया जा रहा है कि इस महाआंदोलन में अलग-अलग राज्यों के सभी आदिवासी समुदायों के प्रतिनिधी उपस्थित रहेंगे। कार्यक्रम में सांस्कृतिक आयोजन विशेष आकर्षण का केंद्र होगा। कार्यक्रम की शुरुआत आदिवासी समुदाय के महापुरुषों द्वारा दी गई सामाजिक शिक्षा की सामुहिक सामाजिक प्रतिज्ञा के साथ की जाएगी। यह कार्यक्रम आदिवासीयों के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अधिकारों को प्राप्त करने के लिए संयुक्त सामाजिक प्रयास के रूप में।आयोजित किया गया है। कार्यक्रम में आदिवासी समाज की समस्या और उनके संवेदनशील प्रश्नों को राष्ट्रीय सामाजिक प्रवाह व राजनैतिक प्रवाह में स्थापित करने के उद्देश से विभिन्न पार्टी के दिग्गज नेता और कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया गया है।

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कार्यक्रम के दौरान मध्य भारत में आदिवासीयों की सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक व राजनैतिक अधिकारों को लेकर चर्चा की जाएगी। दरअसल, मध्य भारत में 34 फीसदी से ज्यादा आदिवासी जनसंख्या होने के बावजूद भी उन्हें राजनीति की मुख्यधारा से दुर रखा गया है। ऐसे में यह आयोजन बेहद अहम माना जा रहा है। कार्यक्रम का लक्ष्य आदिवासियों को संगठित करना है। कार्यक्रम के आयोजकों द्वारा जारी पैंफलेट में कहा गया है मौजूदा दौर में में गैर-श्रमिक, गैर-कृषि प्रवृति के मानवसमुह द्वारा विदेशी आर्या के षडयंत्र के अंतर्गत भारत को धार्मिक राष्ट्र घोषित करने के संविधान विरोधी घोषणाओं का संचारण पुरे देश में किया जा रहा है। वास्तविकता में यह प्राचिन सिंधु संस्कृति पर आधारित भारतीय इतिहास को समाप्त करने के उद्देश से किया जा रहा है।

इसमें आगे लिखा गया है कि, 'भारत के वास्तविक मानवशास्त्रीय इतिहास की वास्तविकता को ही जड़ से समाप्त करने का यह आखरी षडयंत्र हैं। यह आदिवासी मुक्त भारत का छुपा हुआ ऐजेंडा है। यह आदिवासीयों को संपुर्ण देश में अपरिभाषीत करके उन्हें वनवासी घोषित करने का षडयंत्र है। जो भारत में आदिवासीयों की आदिवासीयत और उनके जल, जमीन और जंगल पर प्राचिन पारंपारिक अधिकारों से वंचित करता है। वह कौन है जो आदिवासीयों के मालकियत और उनके आदिवासीयत पहचान और अधिकार को समाप्त करना चाहते है? यह प्रश्न केवल आदिवासीयों का नहीं है, बल्की आदिवासीयों के वास्तविक वंशज ओबीसी, एससी, मराठा, क्षत्रीय और धर्मांतरीत अल्पसंख्यक समाज से भी जुड़ा है। क्यूंकि भविष्य में यही प्रश्न उनके भी पहचान और अधिकार को चुनौती देने वाला है।'

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आयोजकों द्वारा जारी पैंफलेट में आगे लिखा गया है कि, 'वर्तमान में हम बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा, उत्पीडन, अंधश्रद्धा और वैचारिक गरीबी के चक्रव्यूह में मनुवादीयों द्वारा बुरी तरह फंस गए हैं। केवल संविधान ही है जो हमें जिंदा रहने के आवश्यक संघर्ष के लिए प्रेरित करता है। संविधान ने ही हमारी नागरीकता व सामाजिकता को जिवीत रखा है। इसी संविधान की वजह से देश में भाईचारा, राष्ट्रीय एकता, धर्मनिरपेक्षता, सर्वधर्म समभाव है। यह हमें मुलभुत अधिकारों की गारंटी देता है। परंतु कुछ असमाजिक तत्वों द्वारा हमारे आरक्षण व स्वरक्षण के लिए धोखा निर्माण किया जा रहा है। उन्हीं के द्वारा धार्मिक राष्ट्र के नाम पर, निजिकरण के नाम पर, पूंजीवादी विकास के नाम पर अब संविधान को ही बदलने का अंतिम षडयंत्र रचा जा रहा है।'

इसमें आगे लिखा गया है कि, 'अगर हम चाहते हैं की हमारा संवैधानिक लोकतांत्रिक देश सुरक्षित रहे तो हमें निजी हित के बजाय सामाजिक हित के लिए काम से लगना पडेगा। यही "मिशन आदिवासी" और "मिशन भारत बचाओ" का मुख्य लक्ष्य है। इसी लक्ष्य की प्राप्ती के लिए हमारे पूर्वजों ने अपनी जान दे दी। और हंसते-हंसते देश और समाज के लिए फांसी के फंदे पर चढ़ गए। यह मिशन उन्हीं के अधुरे कार्यों को पूरा करने के उद्देश से चलाया जा रहा है।' इस महाआंदोलन के माध्यम से आदिवासियों की मांग है कि, 'भारतीय आदिवासीयों को संयुक्त राष्ट्रसंघ में मुलवासी (इंडिजिनियस पिपल्स) के रूप में मान्यता दी जाए, आदिवासियों की जमीन गैरआदिवासीयों द्वारा जबरन कब्जा किया गया उसके विरुद्ध जमीन वापसी की विशेष मुहिम चलाई जाए,.गरीबी रेखा के निचे वाले आदिवासी परिवार प्रति माह 6 हजार रुपये आर्थीक सहायता दी जाए। साथ ही पढ़े लिखे बेरोजगार आदिवासी युवाओं को 5 हजार रुपए प्रति महा आर्थीक अनुदान दिया जाए।'