दिल्ली दंगा केस में पुलिस ने आंखों पर पट्टी बांधने की कोशिशें की, टैक्सपेयर्स का पैसा भी बर्बाद किया: कोर्ट

दिल्ली दंगों पर कोर्ट की टिप्पणी पुलिस के लिए शर्म का विषय, इतिहास यदि विभाजन के बाद के सबसे बड़े दंगों को देखेगा तो जांच एजेंसियों की नाकामी लोकतंत्र के रखवालों को पीड़ा देगी

Updated: Sep 03, 2021, 09:45 AM IST

Photo Courtesy : Outlook
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नई दिल्ली। दिल्ली दंगों को लेकर पुलिसिया जांच के तौर तरीकों पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। आम लोग तो दिल्ली पुलिस के कार्यप्रणाली से वाकिफ हैं हीं लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि अब कोर्ट ने भी कहा दिया है कि ये लोग सिर्फ टैक्सपेयर्स के पैसे बर्बाद कर रहे हैं। दिल्ली दंगा से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान स्पेशल कोर्ट की टिप्पणी दिल्ली पुलिस के लिए शर्म का विषय है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों में पुलिस ने आंखों पर पट्टी बांधने की कोशिशें की है।

दरअसल, दिल्ली में हो रहे दंगों के दौरान एक दुकान की लूटपाट के मामले में कड़कड़डूमा कोर्ट ने तीन आरोपियों को बरी कर दिया है। अतिरिक्त सत्र न्यायालय के जज विनोद यादव ने शाह आलम, राशिद सैफी और शादाब को बरी कर दिया है। कोर्ट ने इन्हें इसलिए बरी कर दिया क्योंकि दिल्ली पुलिस के पास इस बात के कोई सुबूत नहीं थे कि इन लोगों ने दुकान में आग लगाई थी। इस दौरान कोर्ट ने यह भी कहा कि दिल्ली दंगों से जुड़े कई आरोपी आज भी बेवजह जेलों में बंद हैं।

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कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस की जमकर फजीहत की है। कोर्ट ने पुलिस की कार्यशैली पर अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि इतिहास जब विभाजन के बाद के सबसे भीषण सांप्रदयिक दंगों को पलटकर देखेगा तो जांच एजेंसियों की नाकामी निश्चित रूप से लोकतंत्र के रखवालों को पीड़ा देगी। इतना ही नहीं कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को फटकारते हुए कहा कि उन्होंने सिर्फ न्यायालय की आंखों पर पट्टी बांधने की कोशिशें की उसके अलावा कुछ नहीं किया।

कोर्ट ने कहा कि दिल्ली पुलिस न सिर्फ टैक्सपेयर्स के पैसों को बर्बाद कर रही है बल्कि तारीख पर तारीख देकर अदालत का कीमती समय भी बर्बाद कर रही है। जांच के तौर तरीकों पर सवाल उठाते हुए कोर्ट ने कहा की, 'यह बात समझ से परे है कि किसी ने दंगाइयों की इतनी बड़ी भीड़ को नहीं देखा, जब वे बर्बरता, लूटपाट और आगजनी कर रहे थे। पुलिस की जांच से संवेदनशीलता गायब है।'