उपराष्ट्रपति से हमारी कोई निजी दुश्मनी नहीं, संविधान बचाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाए: खड़गे
आमतौर पर विपक्ष चेयर से प्रोटेक्शन मांगता है, सभापति ही संरक्षक होता है। लेकिन उनके व्यवहार के कारण हम अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए मजबूर हुए हैं: मल्लिकार्जुन खड़गे

नई दिल्ली। संसद के शीतकालीन सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जमकर टकराव देखने को मिल रहा है। इस गतिरोध के कारण भारत के संसदीय इतिहास में पहली बार उपराष्ट्रपति यानी राज्यसभा के सभापति के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है। इसे लेकर इंडिया गठबंधन के नेताओं ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस की।
इस दौरान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि सभापति राज्यसभा में स्कूल के हेडमास्टर की तरह व्यवहार करते हैं। विपक्ष का सांसद 5 मिनट भाषण दे तो वे उस पर 10 मिनट तक टिप्पणी करते हैं। सभापति सदन के अंदर प्रतिपक्ष के नेताओं को अपने विरोधी के तौर पर देखते हैं। सीनियर-जूनियर कोई भी हो, विपक्षी नेताओं पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर अपमानित करते हैं।
खड़गे ने आगे कहा कि सदन में एक्सपीरियंस नेता हैं, जर्नलिस्ट हैं, लेखक हैं, प्रोफेसर हैं। कई फील्ड में काम कर सदन में आए हैं। 40-40 साल का अनुभव रहा है, ऐसे नेताओं को भी सभापति प्रवचन सुनाते हैं। आमतौर पर विपक्ष चेयर से प्रोटेक्शन मांगता है, सभापति ही संरक्षक होता है। लेकिन उनके व्यवहार के कारण हम अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए मजबूर हुए हैं। अगर वही प्रधानमंत्री और सत्तापक्ष का गुणगान कर रहा हो तो विपक्ष की कौन सुनेगा।
कांग्रेस अध्यक्ष ने आगे कहा कि धनखड़ के खिलाफ हमारी कोई निजी दुश्मनी, द्वेष या राजनीतिक लड़ाई नहीं है। देश के नागरिकों को हम विनम्रता से बताना चाहते हैं कि हमने सोच-विचारकर संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए मजबूरी में ये कदम उठाया है। 3 साल में उनका आचरण पद की गरिमा के विपरीत रहा है। कभी सरकार की तारीफ के कसीदे पढ़ते हैं, कभी खुद को आरएसएस का एकलव्य बताते हैं। ऐसी बयानबाजी उनके पद को शोभा नहीं देती।
राज्यसभा में नेता विपक्ष खड़गे ने कहा कि जब भी विपक्ष सवाल पूछता है तो मंत्रियों से पहले चेयरमैन खुद सरकार की ढाल बनकर खड़े होते हैं। उनके आचरण ने देश की गरिमा को बहुत नुकसान पहुंचाया है। देश के संसदीय इतिहास में ऐसी स्थिति ला दी है कि हमें उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस लाना पड़ा।
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कांग्रेस अध्यक्ष ने आगे कहा कि सभापति राजनीति से परे होते हैं। आज सभापति नियमों को छोड़कर राजनीति ज्यादा कर रहे हैं। अंबेडकरजी ने संविधान में लिखा है कि भारत के उप-राष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होंगे। पहले राज्यसभा सभापति राधाकृष्णन ने 1952 को सांसदों से कहा था कि मैं किसी भी पार्टी से नहीं हूं। इसका मतलब है कि मैं सदन में हर पार्टी से जुड़ा हूं। ये निष्पक्षता को बताता है। सदन में मैं हर पार्टी का आदमी हूं।