दुनियाभर में भारतीय किसानों के संघर्ष की चर्चा, देखें वर्ल्ड मीडिया द्वारा किसानों के सत्याग्रह का कवरेज
प्रमुख अमेरिकी मीडिया संस्थान न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि आखिरकार पीएम मोदी नरम पड़ गए, ब्रिटिश अखबार द गार्डियन ने लिखा है कि किसानों की मांग बिल्कुल जायज थी, पाकिस्तानी मीडिया ने इसे मोदी की हार बताई है
                                        नई दिल्ली। कृषि कानूनों की वापसी के बीच देशभर में किसानों के संघर्षों की चर्चा होना लाजमी है। साल 2020 के नवंबर की कड़कड़ाती ठंड, फिर जून के लू के थपेड़े और मॉनसून का मूसलाधार बारिश सबकुछ सहन करते हुए दिल्ली बॉर्डर पर किसानों ने अपने सत्याग्रह को जारी रखा। इसी दौरान देश सबसे भीषण कोरोना आपदा का भी गवाह बना लेकिन जान की परवाह किए बगैर किसान अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए डटे थे। यह कल्पना कर पाना भी बेहद मुश्किल है कि एक-एक दिन किसानों ने कितने दुःख और तकलीफ से काटे होंगे। लेकिन सत्याग्रह की ताकत ने सरकार को इन विवादित कानूनों को रद्द करने पर मजबूर कर दिया।
दुनियाभर में हाल के वर्षों में इस तरह का यह पहला मामला है जहां किसी मुद्दे पर इतनी लंबी लड़ाई हो और संघर्ष करने वाले किसान हों। ऐसे में दुनिया के देश भी इस आंदोलन पर नजर बनाए हुए थे। आज जब कृषि कानूनों को रद्द कर दिया गया तो दुनियाभर के सभी प्रमुख मीडिया संस्थानों ने इस खबर को प्रमुखता से छापा है और किसानों के संघर्ष को बताया है। चाहे वह अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा हो या पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान हों। दुनियाभर में भारतीय किसानों के धैर्य, उनके संघर्ष और आत्मविश्वास की चर्चा हो रही है।
आखिरकार नरम पड़े मोदी: न्यूयॉर्क टाइम्स 
अमेरिका की प्रमुख अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी खबर में लिखा है कि आखिरकार भारतीय प्रधानमंत्री मोदी नरम पड़ गए। न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि किसान आंदोलन के सामने मोदी को अपना रुख आखिर बदलना ही पड़ा और उन्होंने विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया। अखबार ने यह भी लिखा है कि आंदोलनकारियों में सिखों की तादाद ज्यादा थी शायद इस वजह से उन्होंने प्रकाश पर्व पर इस फैसले का ऐलान किया।
यह किसानों के संघर्ष की जीत: ब्रिटिश अखबार 
ब्रिटिश अखबार द गार्डियन ने लिखा है कि साल 2020 में जब कृषि संबंधी अध्यादेश लाए गए थे तब ऐसा लगा कि भारत सरकार कृषि का ढांचा बदलना चाहती है। लेकिन सरकार ने जिन किसानों के लिए कानून बनाए खुद उनसे ही बातचीत नहीं की। सरकार का यह कदम किसानों को नागवार गुजरा और उनकी मांगें बिल्कुल वाजिब थी। उनकी रोजी रोटी खतरे में पड़ गई थी। कृषि कानूनों की वापसी उन किसानों के लिए बड़ी जीत है जिन्होंने सालभर तक कठिन संघर्ष किया।
मोदी ने मांगी माफी: कनाडाई मीडिया 
कनाडा की मशहूर मीडिया संस्थान द ग्लोबल बैंड मेल ने अपनी खबर में लिखा है की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देशवासियों से माफी मांगनी पड़ी। कनाडाई अखबार ने इसे चौंकाने वाला फैसला करार देते हुए लिखा कि पांच राज्यों में चुनाव के पहले बीजेपी सरकार ने फैसला बदला है। अखबार के मुताबिक किसान आंदोलन से सरकार की परेशानियां बढ़ने लगी थी। कनाडा की एक और महत्वपूर्ण न्यूज़ वेबसाइट thestar.com ने भी लगभग यही नजरिया रखा है।
CNN ने बताया सियासी मजबूरी 
इंटरनेशनल मीडिया हाउस सीएनएन ने पीएम मोदी के इस फैसले को स्पष्ट रूप से सियासी मजबूरी करार दिया है। सीएनएन ने अपनी खबर में लिखा है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और मोदी सरकार किसानों को नाराज करने का जोखिम नहीं ले सकती। अगले साल सात राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। मोदी को यदि सत्ता में रहना है तो इन चुनावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
भारत सरकार झुक गई: पाकिस्तानी मीडिया 
पड़ोसी देश पाकिस्तान की मीडिया ने अपनी रिपोर्ट्स में लिखा है कि मोदी सरकार को किसानों के आगे झुकना पड़ा है। वहां की मशहूर मीडिया समूह DAWN ने लिखा है कि पीएम मोदी को कदम खींचने पड़े। पाकिस्तान की Geotv और tribune.com.pk ने भी इसी लाइन पर इसे कवरेज दिया है।




                            
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
        
                                    
                                
                                    
                                    
                                    
								
								
								
								
								
								
								
								
								