नहीं रहे आयुर्वेद के पितामाह डॉक्टर पी के वारियर
100 साल की उम्र में डॉक्टर पी के वारियर का निधन, देशभर विदेश में आयुर्वेद की ख्याती पहुंचाने और लाखों मरीजों के इलाज के लिए जाने जाते हैं, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति समेत देश विदेश की हस्तियों ने दी श्रद्धांजलि
मलप्पुरम। केरल के कोट्टक्कल स्थित आर्य वैद्य शाला के मैनेजिंग ट्रस्टी और विश्व प्रसिद्ध आयुर्वेद डॉक्टर पी के वारियर का निधन हो गया। उन्होंने 100 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। उन्होंने शनिवार दोपहर इस दुनिया को अलविदा कहा। उन्होंने आयुर्वेद को जन-जन तक पहुंचाने का काम किया। वे देश में आयुर्वेद के पितामह के तौर पर जाने जाते थे। 5 जून को ही उनका 100वां जन्मदिन मनाया गया था।
डॉक्टर पी के वारियर ने आयुर्वेद के जरिए कई वैज्ञानिक शोध किए और उसके माध्यम से दवाओं का निर्माण कर मरीजों का इलाज किया। उन्हें आयुर्वेद के मार्डनाइजेशन के लिए हमेशा याद किया जाएगा। आयुर्वेद को लोगों तक पहुंचाने में उनका अतुलनीय योगदान रहा है। उनसे इलाज करवाने वालों में देश विदेश के राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री भी शामिल रहे हैं।
Saddened by the passing away of Dr. PK Warrier. His contributions to popularise Ayurveda will always be remembered. Condolences to his family and friends. Om Shanti.
— Narendra Modi (@narendramodi) July 10, 2021
अपने करीब 75 साल के करियर में उन्होंने देश और दुनिया के लाखों मरीजों को रोग मुक्त किया है। वे आयुर्वेद के माध्यम से असाध्य रोगों का इलाज करने में माहिर थे। भारत के अलावा विश्व के कई देशों से लोग उनसे इलाज करवाने आर्य वैद्य शाला आते थे। डॉक्टर पी के वारियर के निधन पर देश-विदेश की जानी मानी हस्तियों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि डॉक्टर वारियर का योगदान आयुर्वेद को लोकप्रिय बनाने में हमेशा याद किया जाएगा। आयुर्वेदिक उपचार में महान योगदान दिया और आयुर्वेद को चिकित्सीय विषय बनाने और इसे आधुनिक शिक्षा में एक मजबूत स्थान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
डॉक्टर पीके वारियर का पूरा नाम पन्नियमपल्ली कृष्णनकुट्टी वारियर था। उनका जन्म केरल के मालाबार में 5 जून 1921 में हुआ था। उन्होंने आयुर्वेद की शिक्षा कोट्टक्कल गांव के आर्यन मेडिकल स्कूल से ली थी। डॉक्टर वारियर भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान आजादी की लड़ाई में भी शामिल रहे हैं। स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी। जिसे उन्होंने बाद में शुरू किया, वे कोटक्कल आर्य वैद्य शाला के न्यासी 24 साल की उम्र में 1954 में कोट्टाकल जिले में आर्य वैद्य शाला के प्रबंध ट्रस्टी बने। उन्होंने आयुर्वेद के क्षेत्र में अतुलनीय काम किया है। आयुर्वेद के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए 1999 में पद्मश्री और 2010 में पद्म भूषण से नवाजा गया था। साल 1981 और 2003 में वे अखिल भारतीय आयुर्वेद कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे।