संचार साथी ऐप मामले में बैकफुट पर सरकार, प्री-इंस्टॉलेशन का आदेश लिया वापस
टेलीकॉम डिपार्टमेंट ने कहा कि संचार साथी एप की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए, सरकार ने मोबाइल बनाने वाली कंपनी के लिए प्री-इंस्टॉलेशन की अनिवार्यता खत्म कर दी है।
नई दिल्ली। संचार साथी ऐप मामले में केंद्र की मोदी सरकार बैकफुट पर आ गई है। विपक्ष के विरोध के बीच सरकार ने मोबाइल फोन पर संचार साथी ऐप के प्री-इंस्टॉलेशन के फैसले को वापस ले लिया है। सरकार की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि यह आदेश सभी मोबाइल निर्माताओं, जिनमें Apple जैसी कंपनियां भी शामिल हैं, से वापस लिया जा रहा है।
सरकार ने इस फैसले का कारण यह बताया कि पिछले 24 घंटों में इस ऐप को डाउनलोड करने वाले उपयोगकर्ताओं की संख्या तेजी से बढ़ी है। टेलीकॉम डिपार्टमेंट ने कहा कि सिर्फ एक दिन में अपनी मर्जी से एप डाउनलोड करने वालों की संख्या में 10 गुना बढ़ोतरी हुई है। संचार साथी एप की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए, सरकार ने मोबाइल बनाने वाली कंपनी के लिए प्री-इंस्टॉलेशन की अनिवार्यता खत्म कर दी।
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सरकार ने कहा कि पहले से इंस्टॉल करने का आदेश "इस प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए" दिया गया था। यह आदेश विपक्षी नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा दो दिनों तक किए गए विरोध प्रदर्शनों के बाद वापस लिया गया है। विपक्ष का कहना था कि पहले से इंस्टॉल करने का निर्देश निजता के अधिकारों का उल्लंघन करता है और इस ऐप का इस्तेमाल लोगों की जासूसी करने के लिए किया जा सकता है, जो 2021 के पेगासस स्पाइवेयर कांड की याद दिलाता है।
इससे पहले केंद्र सरकार ने बुधवार को लोकसभा में भी कहा कि संचार साथी एप से जासूसी करना न तो संभव है, न ही जासूसी होगी। केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एप को लेकर कांग्रेस नेता दीपेंद्र सिंह हुड्डा के सवालों के जवाब पर कहा- फीडबैक के आधार पर मंत्रालय एप इंस्टॉल करने के आदेश में बदलाव करने को तैयार हैं।
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बता दें कि संचार साथी एप को लेकर पूरा विवाद 28 नवंबर को शुरू हुआ, जब दूरसंचार विभाग (DoT) ने सभी मोबाइल फोन निर्माताओं को एक आदेश जारी किया था। इसमें कंपनियों को भारत में बेचे जाने वाले सभी नए मोबाइल फोन के साथ-साथ मौजूदा हैंडसेटों में सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए एप इंस्टॉल करना कंपलसरी कर दिया था। विपक्ष ने इसे नागरिकों की ‘जासूसी’ का प्रयास बताते हुए केंद्र सरकार पर ‘तानाशाही’ थोपने का आरोप लगाया। विरोध बढ़ता देख सरकार को यह फैसला वापस लेना पड़ा।
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