दो साल पहले हॉस्टल से उठा ले गई थी पुलिस, अब बताया वह जिंदा नहीं, BHU में पढ़ने गए MP के छात्र की मौत

काशी से कभी लौट नहीं पाए MP के शिव कुमार त्रिवेदी, दो साल पहले हॉस्टल से उठा ले गई थी पुलिस, परिजनों ने दो साल तक हर जगह ढूंढा, लेकिन दो साल बाद पुलिस ने बताया कि उसकी मौत हो चुकी है और अंतिम संस्कार भी कर दिया गया है

Updated: Apr 22, 2022, 12:40 PM IST

वाराणसी/पन्ना। मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के छात्र शिव कुमार त्रिवेदी उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाराणसी गए थे। वहां BHU में उन्होंने दाखिला लिया, लेकिन फिर कभी घर वापस नहीं लौट पाए। दो साल पहले उन्हें पुलिस उठाकर ले गई थी। अब पुलिस ने बताया कि वह तो उसी समय मर चुका था, अब कैसे उसे ढूंढा जा सकता है। पुलिस के मुताबिक उन्होंने शिव का दाह-संस्कार भी करवा दिया था।

वाराणसी के लंका थाने पर 2 साल पहले BHU के छात्र शिव कुमार त्रिवेदी के साथ हुए सुलूक को लेकर उसके पिता, भाई और परिवार के सभी सदस्‍यों के मन में कई सवाल उमड़ रहे हैं। एक परिवार जिसने अपने 22 साल के होनहार बेटे को बीएचयू में पढ़ने के लिए भेजा था उन्हें यह स्वीकारना मुश्किल हो रहा है कि अब वो बेटा इस दुनिया में नहीं है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में सीबीसीआईडी ने रिपोर्ट पेश कर बीएचयू वाराणसी के लापता छात्र की मौत की जानकारी दी है। 

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पुलिस ने कोर्ट को बताया है कि छात्र मानसिक तौर पर बीमार था। उसे लंका थाने लाया गया था। उसी रात वह निकल गया था और तीसरे दिन ही एक तालाब के पास लावारिस लाश बरामद हुई थी, जिसका अंतिम संस्कार कर दिया गया था। फोटो के आधार पर पिता ने उसे पहचाना। उसके बाद डीएनए टेस्ट कराया गया। जिससे पता चला कि लावारिस लाश लापता छात्र की थी। मामले की अगली सुनवाई 14 जुलाई को होगी। जाहिर है, शिव की मौत को लेकर कानूनी प्रक्रिया लंबी चलने वाली है लेकिन उसकी मौत की जो कहानी सामने आई है वो रोंगटे खड़े कर देने वाली है। 

क्या है पूरा मामला

दो साल पहले यानी 2020 में 13 फरवरी की रात बीएचयू में BSc की पढ़ाई कर रहे छात्र शिव कुमार त्रिवेदी अपने हॉस्‍टल के कैंपस में टहलने निकले थे। वह वहां कहीं बैठ गए। उसी दौरान MSc में पढ़ने वाले एक छात्र अर्जुन सिंह को लगा कि शायद कोई नशा करके कैंपस में बैठा हुआ है। उसने डॉयल-112 पर फोन करके पुलिस को इसकी जानकारी दी। थोड़ी देर बाद पुलिस आई और शिव को वहां से उठा ले गई। 

अर्जुन सिंह का कहना है कि उस समय कॉलेज बंद था और हॉस्‍टल में बच्‍चे नहीं थे इसीलिए उन्‍हें लगा कि कोई नशा करके बैठा है। पुलिस के जाने के बाद अर्जुन भी इस वाकये को भूल गया। उधर, इस घटना के बाद शिव वापस हॉस्टल नहीं आ सके। परिवार से भी संपर्क टूट गया। पन्‍ना में रह रहे किसान पिता प्रदीप कुमार त्रिवेदी वहां से लगातार फोन करते रहे। लेकिन श‍िव ने फोन नहीं उठाया। अंत में प्रदीप बनारस आते हैं। तब पता चला क‍ि श‍िव तो कई दिन से हॉस्‍टल आया ही नहीं।

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आखिरकार उन्होंने लंका थाने में जाकर गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। लंका थाना पुलिस ने उनकी रिपोर्ट दर्ज भी कर ली। जिस थाने की पुलिस श‍िव को उठाकर ले गई, उसी थाने की पुलिस गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करती है। तब तक शिव के पिता को यह नहीं पता चल पाया था क‍ि लंका थाने की ही पुलिस श‍िव को ले आई थी। इसके बाद उन्‍होंने इश्‍तहार छपवाया और अखबारों में विज्ञापन दिया। पुलिस का भेद यहीं से खुलना शुरू हुआ। 

कॉलेज में ऐसा ही एक गुमशुदगी का पोस्‍टर देख अर्जुन सिंह सामने आया। उसने शिव के पिता से मुलाकात की और सारा किस्‍सा कह सुनाया। लेकिन जब प्रदीप लंका थाने पहुंचे तो पुलिस ने साफ इंकार कर दिया। फिर वह पिता को इस थाने से उस थाने तक दौड़ाती रही। लंका से चेतगंज थाने, चेतगंज से सीर गेट चौकी, सीर गेट चौकी से कंट्रोल रूम। प्रदीप हर जगह गए लेकिन कहीं से उन्‍हें उम्‍मीद की कोई राह दिखाई नहीं दी। अंत में प्रदीप, छात्र को लेकर एसएसपी के पास पहुंचे। अर्जुन के मोबाइल नंबर पर 112 नंबर से आया मैसेज दिखाया। एसएसपी ने 112 नंबर के ड्राइवर को बुलाया। पूछताछ के बाद ड्राइवर ने ही बताया कि उसने शिव कुमार को 13 फरवरी को रात साढ़े आठ बजे लंका पुलिस चौकी में छोड़ा था। 

शिव के पिता प्रदीप के मुताबिक एसएसपी के आदेश के बाद मुझे उनके पास भेजा जाता है श‍िव को जिन्‍हें सौंपा गया था। तत्कालीन लंका थाना इंचार्ज भारत भूषण तिवारी के सामने ड्राइवर ने कहा क‍ि मैंने इन्‍हें ही सौंपा था। भारत भूषण कहते हैं कि शिव रातभर कस्टडी में बंद था। सुबह जब हमने उसे देखा तो उसने कपड़े में बाथरूम कर दिया था। वह मानसिक रूप से बीमार था। इसलिए हमने उसे छोड़ दिया। इसके बाद वह कहां गया, हमे नहीं पता। श‍िव को लेकर BHU के कुछ छात्रों ने सोशल मीडिया पर मुह‍िम चलाई। मुह‍िम से बीएचयू के पूर्व छात्र और इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकील सौरभ त‍िवारी भी जुड़ते हैं। उन्‍होंने ही मामले को लेकर हाई कोर्ट में याच‍िका दाख‍िल की।

 हाईकोर्ट ने जैसे-जैसे सुनवाई आगे बढ़ती गई, पुलिस पर दबाव भी बढ़ गया और अंत में 21 अप्रैल 2022 को पुलिस ने माना की शिव जीवित नहीं हैं। लेकिन श‍िव तो पहले ही मर चुका था। इलाहाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान पुलिस ने बताया क‍ि 15 फरवरी 2020 को यानी जिस बनारस के रामनगर में स्थित जमुना तालाब में एक शव मिला था। सीबीसीआईडी सीआईएस शाखा लखनऊ की आईपीएस सुनिता सिंह की अगुवाई में पुलिस ने उसका डीएनए टेस्‍ट कराया जो श‍िव के पिता प्रदीप त्रिवेदी से मैच कर गया। मतलब श‍िव की मौत हो चुकी है।

दो साल से ज्‍यादा का समय बीत चुका है। अब शिव के घर वालों को बताया गया कि उनका लाड़ला वापस नहीं लौटेगा। वकील सौरभ त‍िवारी का कहना है क‍ि पुलिस के अनुसार छात्र मानसिक रूप से बीमार था। लंका थाने से जाने के बाद वह रामनगर के तालाब में जाकर डूब गया। इस पर वकील सौरभ तिवारी ने पूछा कि आखिर जब डूबकर मरना ही था तो वह गंगा नदी पार कर रामनगर तालाब तक क्‍यों गया। सौरभ तिवारी के मुताबिक पुलिस ने बताया है कि जिस वक्‍त शिव को थाने लाया गया उस वक्‍त थाने का सीसीटीवी कैमरा काम नहीं कर रहा था। जबकि आरटीआई से मांगी गई सूचना में पता चला कि सभी कैमरे चल रहे थे।

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने मामले में उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। उन्होंने ट्वीट किया, 'BHU के छात्र शिव त्रिवेदी के परिवार की दर्दनाक आपबीती सुनकर मन को भारी दुख पहुंचा। इस पूरी घटना में पुलिस प्रशासन की लापरवाही व असंवेदनशीलता साफ झलकती है और उच्चस्तरीय जांच से ही सही जानकारी व न्याय सुनिश्चित हो पाएगा। शिव त्रिवेदी के परिवार को न्याय जरूर मिलना चाहिए।'