खेत और गहने बेच खर्च किए 45 लाख, हाथों में हथकड़ी लेकर वापस लौटे, अमेरिका से डिपोर्ट हुए भारतीयों की कहानी

बेहतर जीवन के लिए इन लोगों ने अमेरिका में बसने का सपना देखा था, लेकिन अब जंजीरों में जकड़े हुए लौटने के बाद अंधरकारमय भविष्य उन्हें डरा रहा है।

Updated: Feb 17, 2025, 02:37 PM IST

अमेरिका में अवैध तरीके से रह रहे भारतीयों का तीसर बैच 16 फरवरी को रात 10 बजे अमृतसर एयरपोर्ट पर लैंड हुआ। अमेरिकी एयरफोर्स के C-17 A ग्लोबमास्टर विमान में 112 लोगों आए हैं। अब तक कुल 335 भारतीय डिपोर्ट हो चुके हैं। बेहतर जीवन के लिए इन लोगों ने अमेरिका में बसने का सपना देखा था, लेकिन अब जंजीरों में जकड़े हुए लौटने के बाद अंधरकारमय भविष्य उन्हें डरा रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक 18 हजार लोगों को इसी तरह वापस भारत भेजा जाएगा। 

चकाचौंध में जीने और आसमान को छूने का अरमान सजाए डंकी रूट से अमेरिका गए इन लोगों की कहानी लगभग एक सी है। उनके परिवार ने उन्हें अमेरिका भेजने के लिए अपनी खेती की जमीन बेचकर या गिरवी रखकर या फिर रिश्तेदारों से उधार लेकर भेजा था। रविवार को पंजाब के फिरोजपुर जिले में अपने गांव चांदीवाला पहुंचे 20 वर्षीय सौरव बताते हैं कि 27 जनवरी को जब वह सीमा पार कर अमेरिका में घुसने की कोशिश कर रहे थे तो उन्हें अमेरिकी अधिकारियों ने पकड़ लिया था।

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सौरव पिछले साल 17 दिसंबर को घर से अमेरिका के लिए निकला था। सौरव ने कहा कि हमें 18 दिनों तक एक हिरासत केंद्र में रखा गया। हमारे मोबाइल फोन ले लिए गए थे। परसों हमें बताया गया कि हमें दूसरे शिविर में ले जाया जाएगा। जब हमें विमान में बिठाया गया तो उन्होंने कहा कि हमें भारत ले जाया जा रहा है। सौरव ने बताया कि उनके परिवार ने उन्हें विदेश भेजने के लिए 45-46 लाख रुपये खर्च किए। दो एकड़ खेती की जमीन बेची गई और रिश्तेदारों से पैसे उधार लिए गए।

अपनी यात्रा के बारे में सौरव ने कहा कि उन्हें एम्स्टर्डम, पनामा और मैक्सिको होते हुए अमेरिकी सीमा तक ले जाया गया। यह पूछे जाने पर कि क्या अमृतसर जाते समय उन्हें बेड़ियां लगाई गई थीं, सौरव कहते हैं कि हां, हमें हथकड़ी लगाई गई थी और हमारे पैरों में जंजीरें बांधी गई थीं। इसी तरह गुरदासपुर जिले के खानोवाल घुमन गांव के निवासी हरजीत सिंह को उनके चचेरे भाई के साथ अमेरिका से डिपोर्ट कर दिया गया।

उन्होंने कहा, 'हमें 27 जनवरी को अमेरिकी सीमा पार करते समय पकड़ा गया और 18 दिनों तक हिरासत केंद्र में रखा गया। हमें 13 फरवरी को डिपोर्ट कर दिया गया और हमारे हाथों में हथकड़ी और पैरों में जंजीरें डाल दी गईं।' भारत डिपोर्ट किए गए भारतीयों में अमृतसर के घनश्यामपुर गांव का 21 वर्षीय हरप्रीत सिंह भी शामिल है। गांव पहुंचने के बाद उन्होंने अपनी दास्तान सुनाई है। हरप्रीत सिंह ने कहा कि पिताजी चोट के कारण ज्यादा काम कर नहीं सकते और परिवार के पास खेती के लिए भी जमीन नहीं है। उन्होंने कहा कि भारतीय सेना में भर्ती होने की कोशिश की थी, लेकिन हो नहीं पाया, इसलिए अमेरिका जाने के बारे में सोचा।

उन्होंने कहा, 'परिवार ने ही एजेंट से बात किया। वे इटली, स्पेन ग्वाटेमाला और अन्य देशों से होते हुए 24 जनवरी को मैक्सिको बॉर्डर की दीवार पार करके अमेरिका पहुंचे। स्पेन पहुंचने पर मुझे बताया गया की डंकी रूट से अमेरिका ले जाया जा रहा है, जबकि पहले जब बात हुई थी तो बताया गया था कि फ्लाइट से अमेरिका ले जाएंगे और कोई समस्या नहीं आएगी। हरप्रीत सिंह ने कहा, 'अमेरिकन अधिकारियों में एक पाकिस्तान मूल का था, जिसने बताया कि हमें भारत वापिस भेजा जा रहा है। जहाज में हमारे हाथ और पैर बांध दिए गए थे। जहाज में भी खाने का बहुत कम प्रबंध था।' वह कहते हैं कि अगर सरकार यहीं नौजवानों के लिए रोजगार का प्रबंध करे तो कोई विदेश क्यों जाए?