288 मौतों का जिम्मेदार कौन, अगर कवच होता तो नहीं होती इतनी बड़ी त्रासदी

ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रेन हादसे के बाद एक बार फिर से रेलयात्रियों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं। हादसे की खबरों के बीच भारतीय रेलवे के उस कवच की चर्चा हो रही है, जिसे लेकर केंद्र सरकार ने तमाम दावे किए थे।

Updated: Jun 03, 2023, 05:20 PM IST

बालासोर। ओडिशा के बालासोर में हुए भयावह हादसे ने पूरे देश को गमगीन कर दिया है। अब तक मिली जानकारी के मुताबिक 288 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 1000 से ज्यादा यात्री घायल हैं। इस हादसे के बाद अब सवाल उठ रहे हैं कि 288 मौतों का जिम्मेदार कौन है? क्या इस हादसे को टाला जा सकता था? देश के पूर्व रेल मंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि अगर ट्रेन में एंटी कॉलिजन सिस्टम (कवच) होता तो इतनी बड़ी त्रासदी नहीं होती।

दरअसल, रेल मंत्रालय ने पिछले साल कवच टेक्नोलॉजी की टेस्टिंग की थी। इसके बाद केंद्र की मोदी सरकार द्वारा इसका जमाकर प्रचार-प्रसार किया गया था। केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने तब दावा किया था कि इस टेक्नोलॉजी के कारण अब रेल हादसों को रोका जा सकता है। दावा था कि इस टेक्नोलॉजी के जरिए सिग्‍नल जंप करने अथवा एक पटरी पर दो ट्रेन आने की स्थिति में खुद ही ब्रेक लग जाएगा। अब सवाल ये है कि कवच होने के बावजूद यह हादसा कैसे हुआ? जब एक Train Derail होकर दूसरे Railway Track पर आ गयी, तब 'Kavach' कहाँ था??

300 के आसपास मौतें, करीब 1000 लोग घायल। इन दर्दनाक मौतों के लिए कोई तो जिम्मेदार होगा? भारतीय रेलवे के प्रवक्ता अमिताभ शर्मा ने बताया कि इस ट्रैक पर कवच प्रणाली उपलब्ध नहीं थी। हादसे के बाद कवच टेक्नोलॉजी को लेकर चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। जानकारी के मुताबिक, साल 2011-12 में मनमोहन सिंह सरकार के दौरान ट्रेन में एंटी कॉलिजन सिस्टम का परीक्षण किया गया था। तब ममता बनर्जी रेल मंत्री थीं। इसके बाद इस टेक्नोलॉजी के तहत रेलवे लाइन को अपडेट करने का काम शुरू हुआ था।

केंद्र में एनडीए शासित मोदी सरकार आने के बाद इस टेक्नोलॉजी का नाम परिवर्तित कर दिया गया। मोदी सरकार ने उस तकनीक को "कवच" नाम दिया और दोबारा परीक्षण किया। लेकिन तकनीक को अपडेट करने या उसे सभी जगहों पर स्थापित करने की दिशा में कोई विशेष काम नहीं हुआ। भारतीय रेलवे के रूट करीब 68 हजार किमी क्षेत्र को कवर करते हैं। लेकिन इस पूरे रूट के महज 1445 किमी ट्रैक पर ही एंटी कॉलिजन सिस्टम को इंस्टॉल किया गया है, जो कुल रेलवे पटरियों का महज दो फीसदी है। यानी 98 फीसदी रेलवे रूट पर एंटी कॉलिजन सिस्टम को इंस्टॉल ही नहीं किया गया है। यदि बालासोर में एंटी कॉलिजन सिस्टम होता तो 288 जिंदगियां बचाई जा सकती थी।

हालांकि, केंद्र की मौजूदा मोदी सरकार ने यात्रियों की सुरक्षा के मुद्दे को पूरी तरह दरकिनार करते हुए इस सिस्टम को इंस्टॉल करने में कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई। केंद्र सरकार द्वारा जब इसका प्रचार प्रसार किया जा रहा था, तब टेलीविजन मीडिया इस कवच को मास्टर स्ट्रोक और बड़ी क्रांति बता रही थी। देशवासियों को लगा कि आने वाले समय में ट्रेन हादसों पर जरूर लगाम लग जाएगी। 

इन्हीं उम्मीदों के बीच बालासोर में हुई त्रासदी ने लोगों के दिलों को दहला दिया है। घटना को लेकर देशवासियों में भयंकर आक्रोश भी है। लोग इस दुर्घटना की जिम्मेदारी तय करने की मांग कर रहे हैं। हालांकि, इन 288 मौतों पर भी केंद्र सरकार मौन है। कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने नैतिकता के आधार पर रेल मंत्री से इस्तीफा मांगा है। हालांकि, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव मुआवजे का ऐलान कर अपनी नैतिक जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ दिया है।