दफ्तर दरबारी: ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक मंंत्री भड़के, आखिर यह माजरा क्या है
अपने क्षेत्र में थाना प्रभारियों के तबादलों पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया इतना नाराज हुए कि उन्होंने मुख्य सचिव को निरंकुश कह दिया। क्या मंत्री सिसोदिया सिर्फ थाना प्रभारियों के तबादलों से ही बेचैन हुए या इसकी वजह कोई और है?

मध्यप्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री महेंद्र सिंह सिसौदिया राजनीति के इतने कच्चे खिलाड़ी भी नहीं है कि वे अधिकारियों का प्रोटोकॉल नहीं समझें। ऐसा भी नहीं है कि उन्हें यह न पता हो कि एसपी की शिकायत कलेक्टर को नहीं की जाती है और प्रदेश के प्रशासन की शिकायत मुख्यमंत्री को करनी चाहिए, केंद्रीय मंत्री को नहीं। फिर भी उन्होंने ऐसा किया तो इसके राजनीतिक कारण तलाशे जा रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि पंचायत मंत्री का थाना प्रभारी स्तर के तबादलों लेकर प्रशासनिक मुखिया इकबाल सिंह बैंस पर बरसना समझ नहीं आ रहा है। तलाशा जा रहा है कि क्या यह किसी बड़ी पदस्थापना से उपजी खीज तो नहीं है?
मामला कुछ यूं है कि शिवपुरी जिले के एसपी राजेश सिंह चंदेल ने कुछ पुलिसकर्मियों के तबादले किए हैं। बिना जानकारी के हुए इन तबादलों से जिले के प्रभारी मंत्री महेन्द्र सिंह सिसोदिया खफा हो गए। उन्होंने एसपी की शिकायत करते हुए शिवपुरी कलेक्टर को एक चिट्ठी लिख दी। इसमें उन्होंने लिखा है कि पुलिस अधीक्षक शिवपुरी ने बिना मेरे अनुमोदन के थाना प्रभारियों के तबादले कर दिए हैं। यह उनकी मनमर्जी को उजागर करने वाला काम है। मंत्री जी ने कलेक्टर को निर्देश दिए हैं कि पुलिस अधीक्षक के खिलाफ कार्रवाई कर मेरे कार्यालय को सूचित करें।
जैसे ही चिट्ठी की बात उजागर हुई अचरज तो यही हुआ कि एक एसपी की शिकायत कलेक्टर से कैसे की जा सकती है। बात इतनी ही नहीं है। मंत्री सिसोदिया ने इस पत्र की कॉपी सिर्फ दो लोगों ज्योतिरादित्य सिंधिया के निज सचिव और अपर मुख्य सचिव गृह मंत्रालय भोपाल को दी है। प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान को न प्रति भेजी गई न उन्हें अपनी नाराजगी से अवगत करवाया गया। यहां तक कि गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा और पुलिस प्रमुख डीजी सुधीर कुमार सक्सेना को भी कॉपी नहीं भेजी गई।
फिर जब मीडिया ने बात की तो महेंद्र सिंह सिसोदिया ने कहा कि प्रदेशवासियों का सौभाग्य है कि हमें शिवराज सिंह चौहान जैसा मुख्यमंत्री मिला। वे मध्य प्रदेश ही नहीं, भारत के सर्वोच्च मुख्यमंत्री हैं और सदा बने रहें, ऐसी मेरी ईश्वर से कामना है। मुख्यमंत्री इतने अच्छे हैं कि शायद उन जैसा कोई ना हो। लेकिन मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस जैसे अफसर के बारे में मेरे पास शब्द नहीं हैं। अगर मैं निरंकुशता का किसी को आधार बनाता हूं तो वो हमारे मुख्य सचिव को ही बनाऊंगा। इतना अच्छा मुख्यमंत्री होने के बावजूद हमारा प्रशासन इतना निरंकुश क्यों है, ये मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस ही बता सकते हैं। सिसोदिया बोले कि हमारी नाराजगी हर उस व्यक्ति के साथ है जो पार्टी-संगठन के साथ काम नहीं करता। जो डुप्लीकेसी से काम करता है, वही मेरा सबसे बड़ा शत्रु है।
प्रदेश के मुख्यमंत्री को अपनी शिकायत तक नहीं पहुंचाने वाले मंत्री सिसोदिया ने मुख्यसचिव को आड़े हाथों क्यों लिया, इसकी भी पड़ताल की जा रही है। पहले कारण तौर पर तो यह समझा गया कि मंत्री खासकर ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक मंत्री प्रशासन में अपनी सुनवाई न होने से नाराज है। विभाग के प्रमुख सचिव तो ठीक मैदान में कलेक्टर और एसपी भी मंत्रियों को तवज्जो नहीं दे रहे हैं। कई मंत्रियों की यह पीड़ा गाहे-बगाहे उजागर होती है. मंत्री सिसोदिया ने खुलकर कह दिया है। और सीधे प्रशासनिक मुखिया को निशाने पर ले लिया।
दूसरा कारण हाल ही में हुई एक पोस्टिंग मानी जा रही है। मुख्यमंत्री सचिवालय में पदस्थ आईपीएस ओपी श्रीवास्तव को आबकारी आयुक्त बनाया गया है। सीधे तो इस नियुक्ति पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए लेकिन सिंधिया खेमे को महसूस हो रहा है कि यह केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की अवेहलना की गई। इसकी वजह आबकारी मुख्यालय का ग्वालियर में होना है। ग्वालियर क्षेत्र में अफसरों की पोस्टिंग के समय सिंधिया की पसंद का ख्याल रखा जाता है मगर ग्वालियर के तीन बड़े पदों पर सिंधिया के पसंद के अफसर नहीं हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने डी श्रीनिवास वर्मा को ग्वालियर आईजी पदस्थ किया था। लेकिन करीब एक पखवाड़े तक चले अवरोध के बाद सिंधिया के पसंदीदा अफसर अनिल शर्मा को आईजी बनाया गया था। आईपीएस वर्मा रिलीव हो कर भी ग्वालियर में ज्वाइन नहीं कर पाए थे। फिर मौका मिला तो सीएम शिवराज सिंह चौहान ने एक पल में आईजी अनिल शर्मा को हटा दिया था। इसी तरह, भ्रष्टाचार की एक कथित शिकायत के बाद सिंधिया के पसंदीदा ट्रांसपोर्ट कमिश्नर आईपीएस मुकेश जैन को भी तुरंत हटा दिया गया था।
अब जब आबकारी आयुक्त की नियुक्ति बारी आई तो भी सिंधिया के पसंदीदा अफसर की जगह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने विश्वस्त अधिकारी को ग्वालियर भेजा। माना जा रहा है कि अपने मुखिया को इस तरह नजरअंदाज कर दिए जाने से ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया भड़क गए। उन्होंने अपनी खीज प्रशासनिक मुखिया इकबाल सिंह बैंस पर निकाली और उन्हें तानाशाह का प्रतीक कह दिया।
हालांकि, बाद में मुख्यमंत्री से चर्चा के बाद मंत्री सिसोदिया के तेवर ठंडे हो गए और उन्हें सब अच्छा दिखाई देने लगा। मगर उनके कहे का जो राजनीतिक मंतव्य उजागर होना था, वह तो हो ही गया।
आईएएस ओपी श्रीवास्तव पर सरकार की छवि सुधार का जिम्मा
मंदसौर में किसान प्रदर्शन के बाद बिगड़े हालात को संभालने के लिए भेजे गए आईएएस ओपी श्रीवास्तव को एक बार फिर सरकार की छवि चमकाने की जिम्मेदारी दी गई है। मुख्यमंत्री सचिवालय में पदस्थ आईएएस ओपी श्रीवास्तव को मध्य प्रदेश का आबकारी आयुक्त बनाया गया है। वे 31 अगस्त को रिटायर्ड हुए आबकारी आयुक्त राजीव चंद्र दुबे की जगह लेंगे।
आईएएस दुबे भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रिय अधिकारियों में शुमार होते हैं। उनके रिटायरमेंट के बहुत पहले से इस पद पर पोस्टिंग पर नजर लगी थी कि शिवराज के पसंदीदा अफसर को ग्वालियर भेजा जाएगा या मुख्यमंत्री अपनी पसंद पर ही कायम रहेंगे।
मुख्यमंत्री चौहान ने अपने अपर सचिव ओपी श्रीवास्तव को ग्वालियर भेज कर संकेत दिया है कि आबकारी मामले में सरकार को अपनी छवि की चिंता है। खासतौर से इंदौर में सामने आए आबकारी घोटाले, नई आबकारी नीति पर उमा भारती का आक्रामक रूख और विपक्ष द्वारा की जा रही आलोचना के मामले में। सरकार के कमाई के विभाग की छवि सुधार की पहल के तौर पर ओपी श्रीवास्तव के फैसलों 2007 बैच के आधिकारिक 2007 बैच के आधिकारिक 2007 बैच के आधिकारिक का इंतजार किया जा रहा है।
कलेक्टर को लिए कभी नरम, कभी सख्त शिवराज सिंह चौहान
मैदानी समस्याओं को तुरंत निराकरण की मंशा के साथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रोज सुबह जिले के कलेक्टर से बात करना शुरू की है। चुनाव प्रचार के दौरान लापरवाही पर कलेक्टर को ‘टांग दूंगा’ जैसी बात कहने वाले सीएम शिवराज सिंह का सख्त रूख बैठकों में भी दिखाई देता रहा है। मगर पिछले कुछ दिनों से सख्त रूख में नरमी देखी जा रही है।
पन्ना जिले के कलेक्टर के बाद सीएम चौहान ने उमरिया के कलेक्टर को काम न होने पर फटकारा जरूर लेकिन साथ ही उनके कुछ कामों की तारीफ भी की। कभी सख्त, कभी नरम के रूप में यह बदलाव मैदान में संतुलन साधने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है। प्रशासनिक गलियारों में मुख्यमंत्री के रूख के अनुसार अफसरों के संभावित तबादलों का अंदाजा लगाया जा रहा है।
सरकार की बाजीगरी
अपराध, खासकर महिला व बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध और स्वास्थ्य से जुड़ी कोई रिपोर्ट या आंकड़ें सामने आते हैं तो मध्य प्रदेश की स्थिति बुरी ही होती है। यही कारण है कि एनसीआरबी (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो) की ताजा रिपोर्ट ने मध्य प्रदेश की बुरी छवि फिर सामने आई। आंकड़ों में फिर बताया कि मासूम बच्चियों से दुष्कर्म के मामले में मध्य प्रदेश देश में अव्वल है। वर्ष 2021 की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में कुल चार लाख 75 हजार 918 प्रकरण दर्ज हुए हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 42 हजार अधिक हैं।
महिलाओं के साथ घटित अपराध के मामले में मध्य प्रदेश इस वर्ष 30 हजार 673 प्रकरणों के साथ छठवें स्थान पर है। जबकि, वर्ष 2020 में यह पांचवें स्थान पर था। दहेज प्रताड़ना के मामले सात हजार 929 सामने आए हैं। देश में नाबालिग से दुष्कर्म के प्रकरण मध्य प्रदेश में सर्वाधिक तीन हजार 515 हैं। दहेज के लिए हत्या के प्रकरण के मामलों में मध्य प्रदेश तीसरे स्थान पर है। जबकि, महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में विवेचना करके न्यायालय में प्रस्तुत करने की दर 84 प्रतिशत रही है, जो देश में दूसरे स्थान पर है।
स्वाभाविक है कि रिपोर्ट आने के बाद सरकार की ओर से स्पष्टीकरण आना ही था। बचाव में सरकार ने आंकड़ों की बाजीगरी की। पुलिस मुख्यालय में हुई बैठक के बाद पुलिस ने अपने आंकड़े पेश करते हुए कहा कि महिला अपराधों में कमी आई है। अचरज हुआ कि केंद्रीय इकाई एनसीआरबी के आंकड़ों को झूठलाने वाले तथ्य मध्य प्रदेश पुलिस लाई कहां से? असल में आंकड़ों की अवधि को लेकर बाजीगरी की गई थी।
एनसीआरबी ने 2021 के पूरे साल के आंकड़ें पेश किए जबकि मध्य प्रदेश पुलिस ने अपने पिछले 5 महीनों के कामकाज का हिसाब दिया। इस तरह लाज बचाने की कवायद पूर्ण हुई।