दफ्तर दरबारी: दरबारियों की शाही कथा और लावारिस संपत्तियां 

MP News: भोपाल में बिल्डरों के ठिकाने पर आईटी ने छापेमारी में करोड़ो का कैश मिलना हो या परिवहन विभाग के पूर्व आरक्षक के यहां करोड़ों की संपत्ति का खुलासा या फिर लावारिस कार में 52 करोड़ का सोना और 15 करोड़ नगद मिलना। ये मामले भ्रष्टाचार की बानगी तो है ही दरबारियों के शाही जीवन की कथा भी है।

Updated: Dec 22, 2024, 07:56 AM IST

एमपी गजब है, अजब है, कह कर तंज करने वाले हैरत में है कि एमपी इस कदर करप्‍ट है। इस सप्‍ताह आयकर विभाग ने ईशान बिल्डर, त्रिशूल कंस्ट्रक्शन और क्वालिटी बिल्डर के 50 से अधिक ठिकानों पर छापेमारी की। इस छापेमारी में पता चला कि अगल-अलग कंपनियों द्वारा 300 करोड़ रुपए का निवेश किया गया था। ये कंपनी न केवल भोपाल, इंदौर, जबलपुर, कटनी बल्कि रायपुर में भी हैं। त्रिशूल कंस्ट्रक्शन कंपनी के मालिक राजेश शर्मा एक मंत्री और ताकतवर पूर्व आईएएस अधिकारियों के करीबी माने जाते हैं। 

अभी इस रेड की परतें पूरी तरह खुली भी नहीं हैं कि लोकायुक्त ने रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस के पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा के घर छापेमारा। इस रेड में टीम को करोड़ों रुपये कैश और भारी मात्रा में सोना-चांदी मिले। कुछ ही घंटों में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को एक लावारिस गाड़ी से 52 किलो सोना और 15 करोड़ रुपए कैश मिले। इस सोने की कीमत 40 करोड़ 47 लाख आंकी गई। यह लवारिस कार परिवहन विभाग के पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा के दोस्त चेतन सिंह गौर की है। गाड़ी पर हूटर लगा तथा आरटीओ का बोर्ड लगा था।

इन दोनों मामलों के आरोपियों के नाम भी आईएएस अफसरों और नेताओं के करीबियों में शुमार है। एक आरक्षक के घर से 1.15 करोड़ तथा ऑफिस से 1.70 करोड़ रुपए तथा 50 लाख रुपए के जेवर मिले हैं। चार लग्जरी गाड़ियां भी मिलीं इनमें से एक गाड़ी में 80 लाख रुपये से ज्यादा कैश मिला। यह अकूत आय सिर्फ 12 साल नौकरी में कमाया गया। 

45-50 हजार की नौकरी करने वाला एक आरक्षक एक दशक में अरबपति बन गया है तो यह उस भ्रष्‍टाचार का कमाल है जिसमें ऊपर से नीचे तक हर कोई शरीक है। कांग्रेस के आरोप में दम दिखता है कि कि एक आरक्षक अकेले अपने बूते पर यह नहीं कर सकता है। वह तो पावर सीरिज का एक पुर्जा भर है। आरोप तो यह भी है कि पूर्व आरक्षक परिवहन विभाग में अपने आकाओं के आशीर्वाद से चेक पोस्ट पर दलाली करता था। जब नाकों पर व्‍यवस्‍था बदली तो उसने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया।

कुछ बिल्‍डरों और एक मध्‍यस्‍थ पर कार्रवाई भर से हड़कंप है लेकिन अब भी शक तो है ही छोटी मछलियों पर कार्रवाई की जा रही है और बड़ों को बचाया जा रहा है। सवा सौ से ज्‍यादा आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों में भ्रष्‍टाचार के मामले दर्ज है लेकिन किसी केस में जांच की अनुमति नहीं मिली तो किसी की जांच बरसों से जारी है। 

इसी कारण आरोप लगते हैं कि मध्‍य प्रदेश में पकड़ा जाने वाला भ्रष्‍टाचार का हर आरोपी वास्‍तव में एक ऐसी शृंखला का हिस्‍सा होता है जिस गठजोड़ में अफसर से लेकर नेता तक सब शामिल हैं। वह हिस्‍सा जिसके कारण अफसर शाही जिंदगी जी रहे हैं। फिलहाल की छापेमारी की आंच कई अफसरों तक पहुंच रही है और जद में आए अफसर मामला शांत करने की जुगत में जुटे हैं। 

टॉप ब्यूरोक्रेसी की गफलत, ईर्ष्या या षडयंत्र

टॉप लेवल के ब्यूरोक्रेसी भी गफलत में रह सकती है यह किसी के लिए भी अचरज हो सकता है। लेकिन ऐसा हो रहा है। हाल ही में ऐसे दो मामले सामने आए हैं जब आदेशों ने प्रशासनिक मुखियाओं की किरकिरी करवाई है। ताजा मामला आईएएस सर्विस मीट का है। 20 दिसंबर से आरंभ हुई तीन दिन सर्विस मीट के लिए प्रदेश भर के आईएएस शामिल हुए। भोपाल में पदस्‍थ आईएएस ही नहीं मैदान में कार्य कर रहे आईएएस भी साल भर इस इवेंट का इंतजार करते हैं।

इस मीट के पहले सामान्‍य प्रशासन विभाग कार्मिक ने आदेश दिए कि कलेक्‍टर, कमिश्‍नर अपने क्षेत्र में समुचित व्‍यवस्‍था कर मीट में भाग लेने भोपाल आ सकते हैं जबकि सामान्‍य प्रशासन कार्मिक ने एक अन्‍य आदेश में कहा कि कलेक्‍टर सुशासन सप्‍ताह के तहत 19 से 24 दिसंबर के बीच गांवों में जा कर सरकार की योजनाओं का प्रचार करें। सामान्य प्रशासन विभाग के ही दो आदेशों ने कलेक्टरों में गफलत पैदा कर दी कि वे मीट में भाग लेने भोपाल आएं या सुशासन सप्ताह मनाने गांव जाएं। 

इससे पहले नवंबर में एक और गफलत हुई थी। 30 नवंबर को डीजीपी सुधीर सक्‍सेना की विदाई के ऐन पहले 29 नवंबर को स्‍पेशल डीजीपी शैलेष सिंह ने एक पत्र जारी कर कहा कि सलामी परेड अंग्रेजों की परम्परा है। पुलिस अफसरों को संबोधित इस पत्र में सलामी का हक केवल राज्‍यपाल को है। अन्‍य किसी को पुलिस द्वारा सलामी नहीं देनी चाहिए। अपने पत्र में उन्‍होंने 2007 के सरकार के एक आदेश का हवाला भी दिया था। 

ऐसे आदेश मंत्रालय में बैठे अधिकारियों और मैदानी अमले के बीच तनाव, ईर्ष्या, मतभेद को बताता है। वे आरोप सच प्रतीत होते हैं जिसमें कहा जाता है कि मैदान में बैठे अफसर अपने आगे किसी को कुछ समझते नहीं है और इस कारण मुख्‍यालय में बैठे अफसर मैदानी अफसरों को तंग करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं।  

क्‍या कांग्रेस कलेक्टर से डर जाएगी 

जनप्रतिनिधियों पर हावी होते प्रशासनिक अमले की शिकायतों के बीच यह सवाल हरदा में उपजा है कि क्‍या कांग्रेस अपनी शिकायत पर सुनवाई नहीं कर रहे कलेक्‍टर से डर जाएगी या उनके विरोध में डटी रहेगी।  

मामला कुछ यूं कि नशे, जुआ-सट्टा और अवैध कारोबार को बढ़ता देख कांग्रेस ने एक व्‍यक्ति के खिलाफ एसपी और कलेक्‍टर से शिकायत की थी। कांग्रेस नेताओं ने शिकायत में कहा था कि वह व्यक्ति कांग्रेस विधायक रामकिशोर दोगने व अन्‍य जन प्रतिनिधियों के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग कर रहा है। प्रशासन ने कार्रवाई करना तो दूर विधायक की शिकायत पर कान भी नहीं दिया। यहां तक कि उस व्‍यक्ति की कलेक्‍टर के साथ फोटो वायरल हो गई। मानो यह कांग्रेस नेताओं को चुनौती थी।

यही वजह थी कि हरदा विधायक रामकिशोर दोगने ने विधानसभा के शीतकालीन सत्र में हरदा में ड्रग्स का अवैध कारोबार, जुआ सट्टे का अवैध कारोबार और अवैध शराब के बढ़ते कारोबार को लेकर सवाल उठाया। अब कांग्रेस पर निर्भर है कि वह कलेक्‍टर द्वारा अपनी शिकायत की सुनवाई न होने पर अब क्‍या प्रतिक्रिया देते हैं। 

मकवाना की मेहरबानियां 

नए डीजीपी कैलाश मकवाना से उनके विभाग को ही नहीं, आम जनता को भी काफी उम्‍मीदें हैं। डीजीपी बनने के पहले आईपीएस कैलाश मकवाना ने भ्रष्‍टाचार के खिलाफ सख्‍त तेवर दिखलाएं थे। उनका अंदाज ऐसा‍ था कि साढ़े तीन साल में उनके सात बार तबादले हुए थे। हैदराबाद की सरदार वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में प्रशिक्षण ले रहे प्रशिक्षु आईपीएस अधिकारियों को एक मंत्र देते हुए उन्‍होंने लिखा था, हमेशा रीढ़ को सीधा रखें और जो सही हो वही करें। भ्रष्‍टाचार पर उनकी सख्‍ती को लेकर कहा गया था कि इसी कारण उन्‍हें लोकायुक्‍त डीजी पद से हटाया गया था। आईएएस पर मामला दर्ज करने के कारण उनकी सीआर भी बिगाड़ दी गई थी लेकिन अब आईपीएस कैलाश मकवाना डीजीपी हैं। 

उन्‍होंने आदेश दिया है कि प्रदेश में अब पुलिस थानों पर ही जनसुनवाई हो जाएगी। जनता को एसपी ऑफिस तक नहीं जाना पड़ेगा। इतना ही नहीं पिछले दिनों डीजीपी कक्ष में जनसुनवाई की एक तस्‍वीर वायरल हुई जिसमें डीजीपी कैलाश मकवाना ने आगंतुकों बुजुर्गों को खड़ा नहीं रखा था बल्कि सामने कुर्सी पर सम्‍मान से बैठाया था। जबकि कुछ ऐसे एसपी की तस्‍वीरें भी सामने आई थीं जहां समस्‍याएं लेकर आए पीडि़तों को बैठाना तो दूर उनके साथ मानवीय व्‍यवहार भी नहीं होता है। ऐसे में पीडि़तों के साथ संवेदनशील व्‍यवहार कर रहे डीजीपी कैलाश मकवाना शब्‍दों से ही नहीं, कार्यों से भी एक संदेश ही दे रहे हैं।