दफ्तर दरबारी: कहीं इकबाल बुलंद तो कहीं मनोबल पर ताला

MP News: बीजपी जहां मिशन 2023 के तहत जीत के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है, वहीं मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपना 'इकबाल' बुलंद रखने की जुगत में हैं... दूसरी तरफ, प्रदेश के आईएएस अफसरों की हालत ऐसी है कि वे अपनी आकांक्षाओं को तो ज़ाहिर कर नहीं सकते मगर आकाओं के लिए मौन रहना भी मना है

Updated: Apr 30, 2023, 08:28 AM IST

मुख्‍यसचिव इकबाल सिंह बैंस और मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान
मुख्‍यसचिव इकबाल सिंह बैंस और मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान

मध्‍यप्रदेश के प्रशासनिक जगत में पिछले दस सालों से ‘इकबाल’ बुलंद है और दिसंबर 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी ‘इकबाल’ बुलंद हो इसलिए मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चाहते हैं कि ‘इकबाल’ उनके साथ रहे। चर्चा है कि इसीलिए वे फिर दिल्ली से ‘इकबाल’ की वापसी करा लेंगे। 

यहां जिस इकबाल के लिए दिल्ली को मनाने की बात हो रही है वे हैं प्रदेश के मुख्‍य सचिव इकबाल सिंह बैंस। इकबाल सिंह बैंस छह माह पहले ही रिटायर्ड हो चुके हैं। तब मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया से अपने तालमेल को देखते हुए बैंस को छह माह की सेवावृद्धि दिलवाई थी। यह छह माह का अतिरिक्‍त कार्यकाल मई में पूरा हो रहा है। बैंस का कार्यकाल पूरा होने की तारीख नजदीक आते-आते जैसे ही नए प्रशासनिक मुखिया के नामों पर चर्चा आम हुई फिर से पुराने सीएस का कार्यकाल बढ़ने की अटकलें हैं। 

इस‍बार भी बैंस के विकल्‍प के रूप में एसीएस मोहम्‍मद सुलेमान, दिल्‍ली में केंद्र सरकार में महत्‍वपूर्ण दायित्‍व निभा रहे आईएएस अनुराग जैन सहित कुछ नए नाम भी चर्चा में हैं। इसबीच, मोहम्‍मद सुलेमान के डीन के साथ व्‍यवहार को लेकर जब सागर मेडिकल कॉलेज में हड़ताल की घोषणा हुई तो इसे सुलेमान के सीएस बनने की राह में रोड़ा खड़ा माना गया। उधर, अनुराग जैन केंद्र में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग सचिव का जिम्‍मा संभाल रहे हैं। लोकसभा चुनाव के पहले उनकी मध्‍यप्रदेश वापसी की संभावना कम है। ऐसे हालात में किसी अन्‍य अफसर पर भरोसा जताने की बजाए मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने पुराने विश्‍वस्‍त अफसर इकबाल सिंह बैंस को ही साथ रखने का निर्णय लेंगे। 

खबर है कि दिल्‍ली तक बात पहुंचा दी गई है और मुख्‍यमंत्री चौहान एकबार फिर पीएम नरेंद्र मोदी से मिलकर बैंस का कार्यकाल बढ़ाने का आग्र‍ह करेंगे। उनकी मांग मान ली गई तो यह तीसरा मौका होगा जब इकबाल सिंह बैंस के लिए सीएम चौहान ने दिल्‍ली में विशेष अधिकार का प्रयोग किया है। इससे पहले सीएम शिवराज सिंह चौहन ने 2014 में अपना प्रमुख सचिव बनाने के लिए इकबाल सिंह बैंस की प्रतिनियुक्ति समय के पहले खत्‍म करवाई थीं। तब उन्‍होंने तत्‍कालीन मंत्री सुषमा स्‍वराज से आग्रह किया था। इसके बाद नवंबर 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह कर सीएस इकबाल सिंह बैंस का कार्यकाल छह माह बढ़वाया था। इस सबका अर्थ यह कि मंत्रालय में अब यह माना जाने लगा है कि ऐसा ही मौसम रहा तो प्रशासन में आईएएस बैंस का ही इकबाल बुलंद रहेगा।  

न सलाह, न सुझाव, अफसरों की बस मौन स्‍वीकृति 

एक तरफ तो मुख्‍य सचिव इकबाल सिंह बैंस पर मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का भरोसा बना हुआ है। इस आपसी विश्‍वास के पीछे एक खास तरह का वर्ककल्‍चर है जिसे इकबाल सिंह बैंस ने तैयार किया है। मगर अफसरों की परेशानी यह खास वर्ककल्‍चर ही नहीं है बल्कि बहुत कुछ है। केंद्र की मोदी सरकार ने प्रशासनिक कार्यप्रणाली में बदलाव के साथ अफसरशाही पर नकेल कसने के प्रबंध शुरू किए थे। इसी के तहत केंद्र सरकार में सचिव बनने के लिए आईएएस अफसरों की केवल एसीआर (एन्युअल कांफिडेंशियल रिपोर्ट) को मुख्‍य आधार मानना बंद कर दिया गया। अफसरों को जिम्‍मेदारी देने के पहले उनके कामकाज का रिकार्ड खंगाला गया। इंटेलीजेंस से भी गोपनीय रिपोर्ट तैयार करवाई गई। भ्रष्‍टाचार के आरोपों से घिरे अफसरों को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्‍त किया गया है। अब सरकार ने अफसरों ने निवेश का ब्‍यौरा मांग लिया गया है।

इधर, मध्‍यप्रदेश में मुख्‍य सचिवों के हाल देख कर भी आईएएस बिरादरी में एक खास तरह की चुप्‍पी है। आईएएस आर. परशुराम और अंटोनी डिसा मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पसंदीदा अफसर रहे हैं लेकिन उन्‍हें भी पुनर्वास वाले संस्‍थानों से अपमान के साथ विदाई दी गई। कांग्रेस सरकार में मुख्‍य सचिव रहे एम. गोपाल रेड्डी और एसआर मोहंती आर्थिक अनियमिततओं के आरोपों में उलझे हैं। वरिष्‍ठ आईएएस के. सुरेश भी रिटायर होने के ठीक पहले कानूनी प्रक्रिया में उलझ गए थे। इतना ही नहीं, बीते कुछ सालों में जिन अफसरों ने सरकारी निर्णय और प्रक्रियाओं की आलोचना की है उन्‍हें सजा ही भोगनी पड़ी है।

अफसरों के साथ हुए इस व्‍यवहार से अनेक अफसरों ने सबक लिया है। वे अब खुल कर सरकार की नीतियों की आलोचना करना तो दूर बैठकों में भी सुझाव नहीं देते हैं, उन्‍हें मौन में ही राहत दिखाई दे रही है। जो कल तक सार्वजनिक और कमरा बैठकों में बेबाकी से हर बात कह दिया करते थे वे केवल सहमति की चुप्‍पी साधे रहते हैं। 

किसी को याद न हुआ सीएस का सबक

सिविल सर्विस डे पर आयोजित कार्यक्रम में प्रदेश के मुखिया मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि लूप लाइन जैसी कोई बात नहीं होती है। सीएम चौहान ने कहा कि कई बार सुनने में आता है कि लूप लाइन की पोस्टिंग से अधिकारी तनाव में आ जाते हैं। विभाग लूप लाइन होते तो सरकार इन्‍हें बनाती ही क्यों? अफसर चाहें तो जो काम पसंद नहीं है, उसे भी अच्छा कर सकते हैं।

दूसरी तरफ, मुख्‍य सचिव इकबाल सिंह बैंस ने कहा कि सक्‍सेसफुल होना महत्‍वूपर्ण है मगर जॉयफुल होना अनिवार्य है। सिविल सर्विस डे पर दोनों मुखियाओं की बात से अफसरों से हँसते बन रहा है न रोते। जिन अफसरों को लूप लाइन में भेज कर सरकार भूल गई है वे कह रहे हैं कि हमसे पूछिए लूप लाइन क्‍या होती है। जो सरकार का ढोल पिटने में पीछे रह गए वे सिस्‍टम से बाहर कर दिए गए हैं।

अफसरों का दर्द है कि जॉयफुल रहने की सीख देने वाले सीएस इकबाल सिंह बैंस के तैयार सिस्‍टम में जॉय की तो गुंजाइश ही नहीं है। तमाम तरह के दबाव ऐसे कि जॉयफुल होना तो ठीक अफसर ठीक से मुस्‍कुरा भी नहीं पा रहे हैं। ऐसे भी अफसर हैं जिन्‍होंने शायद ही कभी अपने सीएस के चेहरे पर मुस्‍कार देखी हो। यहां तक किब  आईएएस के मेलजोल के कार्यक्रम आईएएस सर्विस मीट से भी सीएस ने दूरी बना कर रखी थी। अब ऐसे माहौल में जॉयफुल रहने की बात केवल जुमला भर बन कर रह गई है। एक ऐसा सबक जो किसी को याद न हुआ। 

आकांक्षाओं पर मौन लेकिन आकाओं के लिए मुखर होने की मजबूरी 

मध्‍यप्रदेश के आईएएस एक खास तरह की मजबूरी से गुजर रहे हैं। वे अपनी योजनाओं, सरकार की नीतियों, प्रक्रियाओं पर तो खुल कर बात नहीं कर पा रहे हैं मगर यह चुप्‍पी केवल आलोचना तक ही सीमित है, जब ‘आकाओं’ का पक्ष लेने की बारी आती है तो उन्‍हें मुखर हो कर बात रखनी पड़ रही है। बिहार के मामले भी कुछ ऐसा ही महसूस किया जा रहा है। 

1994 में बिहार के गोपालगंज में कलेक्‍टर जी. कृष्णैया की हत्या के मामले में सजा काट रहे बाहुबली नेता आनंद मोहन सिंह की रिहाई हो गई है। यह रिहाई बिहार सरकार द्वारा किए गए नियमों में बदलाव  के कारण हुई है। इस रिहाई के कारण बिहार की नीतिश कुमार सरकार विरोधी दलों के निशाने पर आ गई है मगर बिलकिस बानो केस में दोषियों की रिहाई पर खुद बीजेपी निशाने पर है। ऐसे में बीजेपी को उसकी सरकार वाले राज्यों के आईएएस एसोसिएशन का साथ मिला है। मध्‍यप्रदेश और उत्‍तर प्रदेश के आईएएस एसोसिएशन ने पत्र लिख कर इस रिहाई का विरोध किया है।

मध्‍यप्रदेश में ही युवा आईएएस अफसरों की प्रताड़ना के मामले में मौन रहने वाले आईएएस एसोसिएशन का बिहार के मामले पर यूं प्रकट होना राजनीतिक तुष्टिकरण माना जा रहा है। यानी प्रशासनिक संकट और नीतिगत मसलों पर बोलें या न बोलें मगर आकाओं के राजनीतिक मामले में बोलना ही पड़ेगा। क्‍या मध्‍यप्रदेश में आईएएस राजनीतिक तुष्टिकरण का शिकार हो गए हैं?