दफ्तर दरबारी: एमपी पुलिस अभियान चलाती रही, दिल्ली से हो गई कार्रवाई
MP News: आमतौर पर बाहरी जांच एजेंसी या केंद्रीय एजेंसियां किसी राज्य में अपराधियों पर कार्रवाई करती है तो उस राज्य की पुलिस को खबर करती है। बीते दिनों केंद्रीय एजेंसियों ने गुजरात पुलिस की मदद से एमपी में आ कर छापे मारे लेकिन एमपी पुलिस से सहायता लेना तो दूर उसे खबर तक नहीं की। ऐसा क्यों?

एमपी पुलिस की इससे बड़ी बेक्रदी क्या होगी कि जब वह प्रदेश में नशा मुक्ति अभियान चला रही थी और इस अभियान पर पुरस्कार और तारीफें बटौर रही थी तब केंद्र के राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) ने गुजरात पुलिस को साथ लेकर भोपाल में एक छापा मारा और 92 करोड़ रुपए का 61.20 किलोग्राम तरल रूप में मेफेड्रोन बरामद और जब्त किया। एमपी पुलिस को तो तब पता चला जब कार्रवाई हो गई। जले पर नमक यह कि यह फैक्ट्री पुलिस थाने से एक किलोमीटर की दूरी पर ही थी। यानी नाक के नीचे अवैध काम भी चल रहा था और उस पर बाहरी एजेंसियों ने छापा भी डाल दिया और हमारी पुलिस को भनक तक न लगी। जांच में पता चला कि ड्रग सिंडिकेट तुर्किये से ऑपरेट हो रहा था और इसके लिए भारत में पुराना आपराधिक नेटवर्क उपयोग में लाया गया। भारत में नेटवर्क फैलाने के लिए दाऊद इब्राहिम के पुराने संपर्कों का सहारा लिया गया और मुंबई-गुजरात से कच्चे केमिकल्स मंगवाए जाते थे।
इससे पहले 6 अक्टूबर 2024 को गुजरात एटीएस और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने छापेमारी कर कटारा हिल्स इलाके के ग्राम बगरोदा में एक ड्रग फैक्ट्री का भंडाफोड़ कर लगभग 900 किलो एमडी ड्रग बरामद की थी। जब बयान जारी हो गए तब हमारी पुलिस को पता चला। एक तरफ तो अपराध के बढ़ते मामले मध्य प्रदेश को शर्मसार करते हैं दूसरी तरफ ऐसे कारखाने और ड्रग्स सप्लाई नेटवर्क हमें बदनाम कर रहा है। भोपाल में दो बड़ी कार्रवाइयां केंद्र की एजेंसियों ने की तो स्थानीय पुलिस चौराहों पर हेलमेट चैकिंग कर रही है, छोटे-मोटे तस्करों को पकड़ कर संतुष्ट हो रही है।
पुलिस की ऐसी कार्यप्रणाली से भोपाल इनदिनों ड्रग्स को लेकर देशभर में चर्चा में आ गया है। बीते 10 माह में यहां दो बड़ी फैक्ट्रियां पकड़ी गई हैं जो देश-दुनिया तक नशे का कारोबार का जरिया थी। नशे पर शिकंजे के लिए यह कार्रवाई सराहनीय है लेकिन ऐसा क्यों है कि केंद्रीय एजेंसियों ने गुजरात पुलिस की मदद से एमपी में आ कर छापे मारे लेकिन एमपी पुलिस से सहायता लेना तो दूर उसे खबर तक नहीं की? क्या बाहरी एजेंसियों को एमपी पुलिस की कार्यप्रणाली पर शक है या सूचना लीक हो जाने का डर रहता है? मुद्दा यह भी है कि जागरूकता अभियान चलाने जितना बल्कि उससे अधिक जरूरी ड्रग्स नेटवर्क की कमर तोड़ना है। मगर एमपी पुलिस यही काम नहीं कर रही है।
एसपी साहब तो अपनों को प्रताडि़त करने में हो गए बदनाम
मुरैना के पुलिस अधीक्षक अपराधियों पर नियंत्रण के लिए नहीं बल्कि अपने ही साथियों को प्रताड़ना के आरापों से घिर गए हैं। मुरैना पुलिस लाइन में पदस्थ टीआई रामबाबू यादव ने इस्तीफा दे दिया है और इसका कारण पुलिस अधीक्षक समीर सौरभ की प्रताड़ना को बताया है। टीआई ने एसपी पर प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए कहा है कि 37 साल की नौकरी में पहली बार अपमान का सामना करना पड़ा। पुलिस अधीक्षक ने पद का दुरुपयोग करते हुए मेरा अपमान किया है, जिससे मैं आहत हूं। मैंने सोचा कि आत्महत्या कर लू लेकिन इससे अच्छा है कि इस्तीफा ही दे दूं।
निरीक्षक रामबाबू यादव ने पुलिस लाइन में रहकर भी रिठौरा की लूट को पकड़ा था किया और जौरा में डेढ़ करोड़ की डकैती का लगभग खुलासा कर लिया था। इसके बाद भी पुलिस अधीक्षक उनके प्रति सख्त रहे। खबरें बताती हैं कि पुलिस अधीक्षक की कार्यशैली से अकेले रामबाबू यादव ही नहीं, कई अन्य टीआई और सब इंस्पेक्टर प्रताडि़त हैं। टीआई रामबाबू से पहले रजौधा चौकी में पदस्थ एएसआई शैलेंद्र चौहान ने 17 अगस्त 2024 को अपनी चौकी के रोजनामचा में ही पुलिस अधीक्षक द्वारा मानसिक रूप से प्रताडि़त करने की बात लिख दी थी।
तुलसीदास ने लिखा है, मुखिया मुख सो चाहिए… यानी कप्तान तो वह होता है जो अपनी टीम के हर मेंबर का बेहतर ख्याल रखता है लेकिन मुरैना एसपी साहब तो अपने मातहतों को प्रताडि़त करने के लिए कुख्यात हो गए हैं।
आह कलेक्टर, वाह कलेक्टर
मध्य प्रदेश के कलेक्टर अपने व्यवहार और राजनीतिक अंदाज के कारण तरह-तरह की उपमाएं पा रहे हैं। कलेक्टर को कोसने का मामला छिंदवाड़ा का है तो वाहवाही का अशोकनगर का। बीते दिनों छिंदवाड़ा में किसानों के मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने प्रदर्शन किया तथा एक प्रतिनिधि मंडल छिंदवाड़ा कलेक्टर को ज्ञापन देने पहुंचा। कांग्रेस का आरोप है कि कलेक्टर ने ज्ञापन नहीं लिया। नाराज कांग्रेसियों ने ज्ञापन कुत्ते के गले में टांग दिया। तस्वीर वायरल हुई। कांग्रेस के मीडिया प्रभारी मुकेश नायक ने कलेक्टर की तुलना कुत्ते से करते हुए कहा यह लोग कुत्ते से भी बुरे हैं। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कलेक्टर को डरपोक बताते हुए कहा कि छिंदवाड़ा कलेक्टर बीजेपी का गुलाम है। कांग्रेस की इस प्रतिक्रिया पर बीजेपी खफा है।
अशोकनगर कलेक्टर आदित्य सिंह ने वाहवाही बटौरी। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंच से कलेक्टर की प्रशंसा करते हुए कहा कि हमारे नाम भी एक ही हैं ये आदित्य हैं और मैं ज्योतिरादित्य हूं। बाढ़ के समय कलेक्टर आदित्य सिंह ने कलेक्टर की तरह नहीं बल्कि परिवार के सदस्य की तरह आप लोगों की सेवा की है।
जिलों में पदस्थ आईएएस अफसरों पर सत्ता के पक्ष में काम करने के आरोप तो पहले भी लगते रहे हैं, अब तो वे खुल कर सत्ता के साथ खड़े दिखाई देते हैं। ऐसा व्यवहार देख विपक्ष भी कटाक्ष करने में पीछे नहीं रहता। जबकि लक्ष्य पूरा करने पर सत्ता की ओर से अफसरों को जी भर तारीफ भी मिलती है। ये दोनों उदाहरण ऐसे ही हैं।
जूनियर को बनाया बॉस, सीनियर्स का विद्रोह, नहीं करेंगे काम
मध्यप्रदेश के प्रशासनिक जगत में दो ऐसे मामले आए हैं जबकि बॉस के रूप में जूनियर की नियुक्ति होने पर सीनियर अधिकारी अपने बॉस के खिलाफ लामबंद हो गए हैं। पहला मामला ऊर्जा विकास निगम का है। सरकार ने ज्यों ही डीपी अहिरवार को चीफ इंजीनियर (सीई) नियुक्ति किया 4 वरिष्ठ इंजीनियर तो सीई की नियुक्ति के खिलाफ हाईकोर्ट तक चले गए हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि अहिरवार उनके जूनियर वे हैं। वे चारों 1988 बैच के अधिकारी हैं जबकि अहिरवार 1991 बैच के हैं। अब वे जूनियर अधिकारी के अंडर में कैसे काम करें? आरोप है कि डीपी अहिरवार की नियुक्ति को बिना किसी विज्ञापन के हुई है जबकि उनके पास सौर ऊर्जा का कोई अनुभव भी नहीं है।
ऐसे ही महिला एवं बाल विकास विभाग में राज्य प्रशासनिक सेवा की अधिकारी लता शरणागत को अपर संचालक बनाए जाने के विरोध में अधिकारी मैदान में आ गए हैं। अधिकारियों ने मंत्री से मिल कर कहा है कि राज्य प्रशासनिक सेवा की अधिकारी लता शरणागत को महिला एवं बाल विकास विभाग में काम करने का अनुभव नहीं है। वे वर्ष 2008 बैच की अपर कलेक्टर हैं और उन्हें अपर संचालक बनाया गया है। जबकि विभाग में अनेक ऐसे वरिष्ठ अधिकारी हैं जो वर्ष 2009 से संयुक्त संचालक के पद पर कार्यरत हैं। इन अफसरों का संकट यह है कि वरिष्ठ पद पर राज्य प्रशासनिक सेवा से अफसर के आने से विभाग के कर्मचारियों की एक पदोन्नति मारी गई है।