बदहाली की मार झेल रहा है रानी कमलापति का महल, सरकारी लापरवाही की दास्तान है गोंड रानी का क़िला

सीहोर जिले के बुधनी में स्थित है ऐतिहासिक गिन्नौरगढ़ का किला, किले की दीवारें, रास्ते हो रहे जर्जर, खराब रास्तों की वजह से नहीं जाते सैलानी, राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित करने की कवायद रही विफल

Updated: Nov 15, 2021, 11:50 AM IST

Photo courtesy: Patrika
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भोपाल। रानी कमलापति का महल भोपाल से करीब 65 किमी दूरी पर स्थित है। अपने गौरवशाली इतिहास के लिए प्रसिद्ध ऐतिहासिक गिन्नौरगढ़ का किला आज बदहाली की मार झेलने को मजबूर है।

इस गिन्नौरगढ़ किले का निर्माण करीब 800 पहले किया गया था। यह किला सीहोर ज़िले के बुधनी में स्थित है, जो अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। यहां आने जाने का मार्ग खराब हैं, आवागमन सुलभ नहीं होने की वजह से यहा पर्यटक कम ही आते हैं। लोगों के लिए यहां कोई खास सुविधा भी मुहैया नहीं करवाई गई है। यहां प्राचीन काल के खजाने की खोज के लिए कई बार खुदाई का काम किया गया, जिसकी वजह से महल को काफी नुकसान हुआ था।

ये किला समुद्र सतह से 1975 फीट ऊंचाई पर किया गया था। यहां पर प्रकृतिक सुंदरता और हरियाली देखने को मिलती है। इस किले की संरचना अद्भुत है। यह करीब 3696 फीट लंबे और 874 फीट चौड़े क्षेत्र में फैला है। इस किले की भव्यता इतने वर्षों बाद भी देखने लायक है। किले की दीवारे करीब 82 फीट ऊंची और 20 फीट चौड़ी हैं। 

इस किले के बारे में कहा जाता है कि यह एक पहाड़ी के पास है जिसे अशर्फी पहाड़ी कहा जाता है, जानकारों का कहना है कि इस किले के निर्माण के लिए अन्य स्थान से मिट्टी मंगाई गई थी। जो मजदूर मिट्टी लेकर आता था उसे एक डलिया मिट्टी की एवज में एक अशर्फी मिलती थी।

गिन्नौरगढ़ के किले का निर्माण परमार वंश के राजाओं द्वारा करवाया गया था। बाद में निजाम शाह ने किले को नया स्वरूप देकर इसे अपनी राजधानी बनाया था। गौंड शासन की स्थापना निजाम शाह द्वारा करवाई गई थी। कहा जाता है कि यह ऐतिहासिक किला 800 साल पहले अस्तित्व में आया था। जहां परमार शासको, गौंड शासकों के बाद मुगल और पठान शासकों का भी राज रहा। इस किले के आसपास करीब 25 कुएं, बावड़ियां और 4 छोटे तालाबों का निर्माण करवाया गया था हैं।  

इस किले को तत्कालीन आकर्षक स्थापत्य कला का अनोखा उदाहरण कहा जा सकता है। इस किले के नीचे सदियों पुरानी एक गुफा है। इस गुफा में शीतल जलकुंड है, जिसकी वजह से यहां गर्मियों में भी ठंडक का एहसाल होता है। किलो को तीन भागों में बांटा गया है। पहला हिस्सा किले से करीब तीन मील दूर का क्षेत्र है, जिसे बाहर की घेराबंदी के लिए उपयोग किया जाता था। दूसरा भाग दो मील दूर का इलाका जहां बस्तियां आबाद थीं। इस इलाके में पानी के आपूर्ति के लिए तालाब भी हैं। वहीं तीसरा हिस्से में किला है। जिसके मेन गेट पर रानी महल है, जिसे निजाम शाह ने अपनी पत्नियों के लिए बनवाया था। गौंड शाह की सात रानियां थीं जिसमें रानी कमलापति प्रमुख थीं।

करीब 7 साल पहले सरकार ने गिन्नौरगढ़ के किले को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित करने की पहल तो की थी, लेकिन इसमें सरकार को सफलता नहीं मिल सकी। यही वजह है कि इस ऐतिहासिक किले के रखरखाव, संरक्षण सुरक्षा का मामला ठंडे बस्ते में ही हैं। यहां के खराब रास्ते होने की वजह से जनता ऐतिहासिक महत्व के इस महल में आने से बचती है। सुरक्षा के कारणों से भी लोग यहां नहीं आना चाहते।  गिन्नौरगढ़ का किला खंडहर में तब्दील होता जा रहा है। यहां के स्थानीय लोगों ने किले में खजाने की तलाश के लिए कई बार तोडफोड़ तक की जिसकी वजह से किले की दुर्दशा हो गई है।