लॉकडाउन खुलते ही गिरा देंगे पुरखों की विरासत!

विश्‍व धरोहर दिवस पर यह सुनना बहुत तकलीफदेह है मगर यह सच है कि सरकार की स्‍पष्‍ट नीति और मंशा के अभाव में भोपाल में ऐतिहासिक महत्‍व की इमारतें गिर रही है और लोग उन्‍हें गिराने को पर मजबूर भी हैं।

Publish: Apr 19, 2020, 06:39 AM IST

न नीति न इरादा, कैसे बचे सांझी धरोहर, सांझी संस्‍कृति

पूरी दुनिया 19 अप्रैल को विश्‍व धरोहर दिवस मना रही है। वर्ष 2020 के विश्‍व धरोहर दिवस की थीम है  ‘साझा संस्कृति,साझा विरासत' और' साझा जिम्मेदारी’ (‘Shared Culture, Shared heritage and Shared responsibility’)। नवाबकालीन शहर भोपाल अपने में कई धरोहर संजोये हुए है मगर पुरखों की विरासत को बचाए रखने के लिए न तो सरकार के पास नीति है न इरादा ही है। धरोहर को बचाए रखने में अकेले पड़े परिवार भी अब अपनी जिम्‍मेदारी छोड़ रहे हैं।

... तो क्‍या आप अपना करीब डेढ़ सौ साल पुराना घर गिरा देंगे? क्‍या वहां नई इमारत खड़ी कर दी जाएगी?

इन सवालों के जवाब में कमलेश जैमिनी ने आर्द्र स्‍वर में हां कहा। भोपालवासी जैमिनी परिवार को शहर के सबसे पुराने फोटोग्राफर परिवार के रूप में जानते हैं। कमलेश जैमिनी के पिता स्‍व. हरिकृष्‍ण जैमिनी भोपाल में फोटोग्राफी के पर्याय रहे हैं। मप्र के निर्माण से लेकर अब तक कोई ऐसा महत्‍वपूर्ण आयोजन न हुआ जिसकी झलक जैमिनी परिवार ने अपने कैमरे में कैद न की हो। उनके इस घर में पुराने भोपाल की अनेक यादें और किस्‍सों पर ठहाकों की गूंज बरकरार है। जिस तरह जैमिनी परिवार भोपाल की संस्‍कृति और परंपरा से वाकिफ है उसी तरह इनका घर भी भोपाल के नवाबकाल से लेकर आज तक के शासन तंत्र की यात्रा का गवाह रहा है। इसने भोपाल को बनते और बिगड़ते देखा है। अब इस घर का रखरखाव बोझ हो गया है। इसलिए अब यह घर मिट्टी में मिला दिया जाएगा।

जबकि जैमिनी परिवार और शासन ने तो इसे और इस जैसे 30 घरों को धरोहर घोषित कर बचाने का संकल्‍प लिया था। पूर्व मुख्‍यमंत्री बाबूलाल गौर ने अपने कार्यकाल में भोपाल के ऐतिहासिक चौक बाजार के संरक्षण की पहल करते हुए शहर के उन मकानों के संरक्षण की पहल की थी जिनमें लोग रहते हैं। मेनिट की आर्किटेक्‍ट और प्‍लानिंग विभाग की असोसिएट प्रोफेसर सविता राजे की पहल पर करीब 30 मकानों को ऐतिहासिक महत्‍व का पाते हुए उनके मालिकों को राजी किया गया था कि वे भविष्‍य में इन मकानों को गिराएंगे नहीं। तब गौर ने इन मकानों का सम्‍पत्ति कर माफ किया था। कमलेश जैमिनी कहते हैं कि सरकार ने अपना वादा पूरा नहीं किया, हम अकेले कैसे संरक्षण करें? हम हर साल प्रापर्टी टैक्‍स जमा कर रहे हैं मगर सरकार ने वे वादे भी पूरे नहीं किए जो उस समय हमारा सम्‍मान करते हुए किए गए थे। जैमिनी बताते हैं कि अहमदाबाद, भोपाल सहित कई स्‍थानों के आर्किटेक्‍ट स्‍टूडेंट उनके मकान का अध्‍ययन कर चुके हैं। उनके घर में फिल्‍म की शूटिंग भी हो चुकी है। मगर आधुनिक आवश्‍यकताओं और बढ़ते खर्च से परेशान हो कर वे उसे गिराने का फैसला कर चुके हैं। जैमिनी को तकलीफ है कि निजी तो ठीक सरकारों ने इतवारा गेट, सोमवारा गेट, चार दीवारी जैसी पुरातत्‍व महत्‍व की सार्वजनिक इमारतों को तोड़ दिया। उनका भी संरक्षण नहीं किया गया।

अकेले जैमिनी परिवार नहीं पूरे शहर की समान पीड़ा

यह दुर्भाग्‍य है कि पूरे विश्‍व में भोपाल को यहां की धरोहर के लिए कम और गैस त्रासदी के लिए अधिक जाना जाता है। मगर अब शहर की पहचान सांची, भोजपुर, भीमबैठका जैसी ख्‍यात विरासत के साथ ही यहां की खूबसूरत और ऐतिहासिक इमारतों से भी हो सकती है। मगर समय के साथ भोपाल की कई इमारतें इतिहास के पन्‍नों में गुम हो रही है। सरकार की अगुआई में व्‍यक्तिगत और सामूहिक प्रयासों से इस धरोहर को बचाया जा सकता है मगर सरकार के तरीके अभी असरकारी नहीं हुए।

अपनी धरोहरों के प्रति गैर जिम्‍मेदारी का ही उदाहरण है कि वर्ष 2003 में इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एण्ड कल्चरल हेरिटेज (इंटेक) नई दिल्ली ने एक रिपोर्ट तैयार की थी। तब शहर की 256 ऐतिहासिक इमारतें चिहिंत की गई थीं। इनका संरक्षण होना था मगर आज किसको नहीं पता कि इनमें से कितनी इमारतें संरक्षित हैं। लोगों के रहने और विवाद के कारण नगर निगम दो सौ साल पुरानी इमारत शौकत महल का संरक्षण नहीं कर पाया। इसके जर्जर हिस्‍सों को गिराया जा चुका है।

शहर की सीमा में आने वाली गैर संरक्षित ऐतिहासिक धरोहर का जिम्मा नगर निगम का होता है। इनकी तरफ तरफ ध्यान नहीं देने के कारण 15 साल में कई धरोहर खत्म हो गईं। साल 2001 के बाद नगर निगम ने हैरिटेज सेल का गठन तक नहीं किया। यहां तक कि हैरिटेज इमारतों के संरक्षण के लिए निगम के बजट में प्रावधान भी नहीं किया गया है। शौकत महल की खासियत यह है कि फ्रेंच और इंडियन स्टाइल में 200 साल पहले इसे बनवाया गया था। भोपाल की पहली महिला नवाब गौहर बेगम कुदेशिया ने अपनी बेटी सिकंदर बेगम को दहेज में देने के लिए इसे बनवाया था।

दो दशक हुए सर्वे तक नहीं हुआ

गैर संरक्षित एतिहासिक धरोहरों का जिम्मा नगर निगम का होता है। जानकारी के अनुसार निगम ने साल 2001 में इमारतों व स्थलों का सर्वे कराया गया था। साथ ही जीर्णोद्धार की रूपरेखा भी तय की गई थी। आश्चर्य की बात तो यह है कि तब से लेकर अब तक न ही मरम्मत कराई गई न ही सर्वे कराया गया। लिहाजा इमारतों और स्थलों की हातल बदत्तर होती जा रही है।

ऐतिहासिक महत्व के भवनों और दरवाजों को बचाने में शासन-प्रशासन की रुचि नहीं है। यही वजह है कि यूनेस्को ने भी शहर के 250 इमारतों-गेट, बावड़ी और इसी तरह के स्थानों की सूची बनाकर शासन-प्रशासन को 2008 में ही सुपूर्द कर दी थी, लेकिन अब तक इस पर कोई अमल नहीं हुआ। नतीजा यह कि नगर निगम ने ही जन हानि का हवाला दे कर बाग फरहत अफ्जा का ऐतिहासिक महत्व का गेट गिरा दिया। विशेषज्ञ मानते हैं कि भोपाल में कई इमारतें, बाग, गेट, बावडियां हैं, लेकिन उनके संरक्षण को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं होने से सभी बदहाल हैं। ये धरोहरें समय के साथ कमजोर हो रही है। अतिक्रमण कर इन्हें खत्म करने की साजिश भी की जा रही है। साझे प्रयासों से ही साझी विरासत बच पाएगी।

अहमदाबाद में बच सकते हैं तो भोपाल में क्‍यों नहीं?

लिविंग हेरिटेज नामक संस्‍था चलाने वाली मेनिट की आर्किटेक्‍ट और प्‍लानिंग विभाग की असोसिएट प्रोफेसर सविता राजे कहती हैं कि जबतक लीगल फ्रेमवर्क नहीं होगा तब तक शहरों में निजी धरोहरों को बचा पाना बहुत मुश्किल है। पीढ़ी बदल जाने के बाद युवा भवनों को पुराने स्‍वरूप में रखने को तैयार नहीं होते हैं। इस संकट से निपटने के लिए यूरोप की तर्ज पर अहमदाबाद, मुंबई के काला घोड़ा क्षेत्र में कानूनी व्‍यवस्‍था की है। सवाल यह है कि यह लीगल फ्रेमवर्क भोपाल में क्‍यों नहीं बन सकता है?