जी भाईसाहब जी: सियासत का गुजरात मॉडल, मोर्चाबंदी और मौका
गुजरात में प्रचार के लिए गए मंत्री और बीजेपी के दूसरे नेता जीत की खुशी नहीं मना पा रहे हैं। आखिर जिस गुजरात के चुनाव मॉडल से जीत मिली है वही उनके अरमान को ठंडा भी कर सकता है। अशोकनगर में ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक विधायक की कुर्सी जाने के बाद आखिर बीजेपी नेताओं ने क्यों बांटी मिठाई?

सियासत भी अजीब शै है, हंसने के वक्त आंसू निकाल देती है और आंखों में आंसू भरे हों तब हंसना पड़ता है। मध्य प्रदेश बीजेपी में भी यही आलम है। मध्य प्रदेश के कई नेता गुजरात में चुनाव प्रचार करने गए थे। जब गुजरात में ऐतिहासिक जीत मिली तो सभी के चेहरे खिल जाने चाहिए थे लेकिन जीत की खुशी पर सियासत का गुजरात मॉडल और उसका मध्य प्रदेश में लागू होने का अंदेशा भारी पड़ गया है।
सबसे पहले जान लेते हैं कि गुजरात मॉडल है क्या? वैसे तो गुजरात मॉडल को विकास का पैमाना बताया जाता है मगर सियासत का गुजरात मॉडल बनाने का नहीं हटाने का पैमाना है। असल में गुजरात में बीजेपी सरकार के खिलाफ जनता में आक्रोश देख कर संगठन ने बड़े फैसले किए। इन फैसलों के तहत साल भर पहले मुख्यमंत्री बदल दिया गया। मंत्रियों के कामकाज में फेरबदल किए। 30 से ज्यादा विधायकों के टिकट काटे गए। परंपरागत नेताओं की जगह नए चेहरों व युवाओं को मैदान में उतारा गया। माना गया कि इन बदलावों ने जनता की नाराजगी को कम किया और जनता ने 182 विधायकों वाली विधानसभा में बीजेपी के 156 विधायकों को चुन लिया।
जब पार्टी गुजरात में मिली जीत का जश्न मना रही थी तब मध्य प्रदेश में भी गुजरात की तर्ज पर बदलाव के कयास लगाए जाने लगे। ये कयास खबरनवीसों या राजनीतिक मामलों के जानकारों ने ही नहीं लगाए बल्कि बीजेपी से भी ऐसी ही मांग आई। सबसे पहले तो बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने बयान दिया। हरदा में जब उनसे गुजरात मॉडल पर सवाल हुआ तो उन्होंने कहा कि यह तो पूरे देश में लागू होना चाहिए। इससे एक कदम आगे जाते हुए बीजेपी के मैहर से विधायक नारायण त्रिपाठी ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को चिट्ठी लिख दी है। उन्होंने लिखा है कि सत्ता और संगठन दोनों में ही आमूलचूल परिवर्तन किया जाना चाहिए।
यही कारण है कि प्रचार के लिए गए मंत्री और बीजेपी के दूसरे नेता जीत की खुशी नहीं मना पा रहे हैं। आखिर जिस गुजरात के चुनाव मॉडल से जीत मिली है वही उनके अरमान को ठंडा भी कर सकता है। काम तथा पार्टी द्वारा तय फार्मूले के आधार पर टिकट कटने की आशंका से शिवराज कैबिनेट के मंत्रियों तथा वरिष्ठ विधायकों की धड़कनें बढ़ गई है। जब मांग की जा रही है कि मध्य प्रदेश में भी सियासत का गुजरात मॉडल लागू करो तो इसका अर्थ है वरिष्ठों के टिकट काटकर नए चेहरों को मैदान में उतारो।
अब तक तो मंत्रिमंडल की विस्तार की अटकलों के बीच मंत्री पद पाने की जुगत लगाई जा रही थी मगर अब तो टिकट बचाने की रणनीति पर काम करना पड़ रहा है। जब महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और नारायण त्रिपाठी सत्ता व संगठन में बदलाव की मांग करते हैं तो इसका अर्थ है कि वे स्थापित नेताओं के खिलाफ फैले आक्रोश को आवाज दे रहे थे। इन आवाजों के साथ वे आवाजें मिल गई हैं जो प्रदेश में सरकार और संगठन में नेतृत्व परिवर्तन के हिमायती है। वे जो शिवराज के हटने की उम्मीद को अंदरूनी खबरों की शक्ल में उड़ाते रहे हैं और जो ज्योतिरादित्य सिंधिया में नया मुखिया देख रहे हैं। वे जो जिनकी उम्र गुजर रही है मगर हसरत पूरी नहीं हो रही है। सभी के लिए बदलाव एक प्रक्रिया नहीं अवसर है। गुजरात के फार्मूले को लागू करने की मांग असल में जमे हुए नेताओं के हाथ से अवसर खिंचलाने की मोर्चाबंदी है।
दूसरी तरफ, जिन हाथों में सत्ता सूत्र हैं उनके लिए गुजरात मॉडल लागू करने की मांग विरोधियों को किनारे करने का मौका है। वे जो चुनाव के मद्देनजर वीडी शर्मा का कार्यकाल बढ़ते देखना चाहते हैं, वे इस सहारे राह के रोड़ों को हटाने की कोशिश में हैं। वे जो अपनी राजनीतिक विरासत को अपने पास ही बचाए रखना चाहते हैं। देखना होगा कि चुनाव करीब आते-आते कौन-कौन इस फार्मूले का शिकार होता है और कौन अपनी राजनीति चमका कर टिका रहता है।
सिंधिया समर्थक विधायक की सीट जाने से बीजेपी में खुशी!
2020 में कांग्रेस सरकार गिरा कर बीजेपी में गए नेता क्या पार्टी में घुलमिल गए हैं? यह सवाल बार-बार उठता है। इसबार अशोक नगर विधायक जसपाल सिंह जज्जी का निर्वाचन शून्य होने के बाद उठा है। असल में जज्जी ऐसे दूसरे बीजेपी विधायक है जिनका निर्वाचन एक हफ्ते में उच्च न्यायालय ने शून्य कर दिया है। पहले विधायक टीकमगढ़ के राहुल लोधी हैं।
अपने विधायक का चुनाव शून्य होने से पार्टी में उदासी होनी चाहिए। उदासी न हो तो भी कम से कम खुशियां तो नहीं मननी चाहिए लेकिन अशोकनगर में बीजेपी विधायक जसपाल सिंह जज्जी के विरूद्ध फैसला आने पर लड्डू बांटे गए। लड्डू बांटने वाले थे बीजेपी के पूर्व विधायक लड्डूराम कोरी और बीजेपी के पूर्व मीडिया प्रभारी देवेंद्र ताम्रकार। 2018 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जज्जी ने लड्डूराम कोरी को चुनाव हराया था। तब कोरी ने उन पर गलत जाति प्रमाण पत्र दे कर चुनाव लड़ने का आरोप लगाते हुए केस दर्ज करवाया था।
2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी थी उस समय विधायक जसपाल सिंह जज्जी ने भाजपा के जिला मीडिया प्रभारी देवेंद्र ताम्रकार पर अनेक मामले दर्ज करवाए थे। इसके बाद वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी नेताओं ने धरना दिया था।
जब ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित दो दर्जन नेताओं ने कांग्रेस का साथ छोड़ा तो उप चुनाव में जसपाल सिंह बीजेपी के टिकट से जीत कर सदन में पहुंचे लेकिन उनके खिलाफ बीजेपी नेताओं द्वारा लगाया गया केस खत्म नहीं किया। और अपने ही विधायक की कुर्सी जाने के निर्णय पर खुशियां जताते हुए मिठाई भी बांटी।
और फंसते चले गए राजा पटैरिया
एक बयान ने कांग्रेस के तेज तर्रार नेता राजा पटैरिया को जेल में पहुंचा दिया है। पीएम नरेंद्र मोदी पर विवादित टिप्पणी करने के लिए पूर्व मंत्री राजा पटेरिया को मंगलवार की सुबह गिरफ्तार किया गया और दोपहर में 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
सोमवार को वायरल हुए एक वीडियो में मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजा पटेरिया एक छोटे समूह को संबोधित करते हुए दिखाई दे रहे हैं। इसमें वे कथित तौर पर यह कहते हुए सुने गए कि मोदी इलेक्शन खतम कर देगा, मोदी धर्म जाति भाषा के आधार पर बांट देगा, आदिवासियों को और अपसंख्यकों का भावी जीवन खतरे में है। संविधान अगर बचाना है तो मोदी की हत्या करने के लिए तत्पर रहो, हत्या इन द सेंस हराने का काम।
वीडियो वायरल होते हुए बीजेपी के नेताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। प्रधानमंत्री का उल्लेख होने के कारण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने तीखी प्रतिक्रिया ही नहीं दी बल्कि प्रशासन को जांच व एफआईआर के आदेश भी दिए गए। बाद में राजा पटेरिया ने सफाई देते हुए कहा है कि उनके बयान का मतलब पीएम मोदी को हराने को लेकर था।
यूं तो राजनेता कई तरह के बयान देते हैं और उनसे उठ खड़े हुए विवाद जल्द खत्म भी जो जाते हैं लेकिन पीएम मोदी से जुड़ा संवेदनशील बयान राजा पटैरिया को भारी पड़ने वाला है। बीजेपी को आक्रामक देख प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने बयान की निंदा की है। पार्टी ने राजा पटैरिया को नोटिस जारी कर दिया है। संभव है उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी हो। राजनीतिक तेवरों को देखते हुए नहीं लगता कि यह मुद्दा जल्दी शांत होगा।
जबलपुर के दामाद बीजेपी के दो अध्यक्ष, हार के भी साझेदार
राजनीति में संयोग हमेशा चर्चाओं को जन्म देते हैं। दो साल पहले जब बीजेपी ने जेपी नड्डा को राष्ट्रीय अध्यक्ष और वीडी शर्मा को प्रदेश अध्यक्ष घोषित किया था तो यकायक जबलपुर का नाम चमक गया था। वह इसलिए कि संस्कारधानी नाम से मशहूर जबलपुर जेपी नड्डा और वीडी शर्मा दोनों की ही ससुराल है।
जेपी नड्डा का ससुराल जबलपुर के पचपेड़ी क्षेत्र में है। यहां की निवासी मल्लिका बनर्जी से जेपी नड्डा की मुलाकात एबीवीपी के दौरान हुई थी। 1991 में दोनों की शादी हुई थी। उनकी सास जयश्री बनर्जी जबलपुर पश्चिम से विधायक और सांसद रह चुकी हैं। खजुराहो से सांसद वीडी शर्मा भी जबलपुर के दामाद हैं। वीडी शर्मा ने रानी दुर्गावती विवि से छात्र राजनीति की शुरुआत की है। उनकी कर्मभूमि जबलपुर रही है। उनकी सास कांति रावत मिश्रा बीजेपी की पुरानी कार्यकर्ता हैं। जबकि कृषि विश्व विद्यालय में डायरेक्टर रिसर्च रहे उनके ससुर पीके मिश्रा को हाल ही में इसी विवि का कुलपति नियुक्त किया गया है।
यह सब प्रसंग इसलिए क्योंकि जबलपुर और यहां के दोनों दामाद बीजेपी अध्यक्ष चर्चा में है। इस बार चर्चा का कारण हार है। पिछले दिनों हुए नगरीय निकाय चुनाव में बीजेपी का उम्मीदवार जबलपुर महापौर चुनाव हार गया था। यानि अपने ही घर में हार मिली। अब जब हिमाचल विधानसभा चुनाव के परिणाम सामने आए तो दूसरे दामाद यानी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ भी यही हुआ। हिमाचल में बीजेपी हार गई। राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा के लिए यह हार मायूस करने वाली है।
एक तरफ गुजरात में बीजेपी को कल्पनातीत बहुमत तो हिमाचल प्रदेश में बीजेपी पिछड़ गई जहां राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सभी जगह चुनाव प्रचार में गए थे। अपने ही राज्य में बीजेपी को सत्ता में नहीं ला पाने की कसक तो होगी ही क्योंकि उन्होंने ही नारा दिया था, ‘रिवाज बदले, सरकार नहीं’। जनता ने सरकार बदल दी, रिवाज कायम रखा।
खैर, बीजेपी अध्यक्ष, ससुराल और घर में हार का यह संयोग इनदिनों राजनीति में चर्चा का विषय तो है ही। निगाहें टिकी हैं कि कार्यकाल पूरा कर रहे दोनों अध्यक्षों को एक साथ कार्यकाल वृद्धि मिलने का संयोग भी होगा या नहीं?