जी भाई साहब जी: अनाम पत्रों से कौन कर रहा है नामवालों को बदनाम करने की साजिश
Letter Bomb in MP: जाने कौन है जो एमपी में नामवालों को बदनाम करने पर तुला हुआ है? बार-बार सार्वजनिक हो रहे पत्रों का राजनीति एंगल क्या है? दूसरी तरफ, सीएम शिवराज सिंह के क्षेत्र विदिशा में शिक्षा व सिस्टम की खामी को नजरअंदाज कर मदरसे को टॉरगेट क्यों किया गया?

दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं
देखना है खींचता है मुझ पे पहला तीर कौन?
परवीन शाकिर का यह शेर मध्य प्रदेश बीजेपी के नेताओं व अफसरों की मुसीबत को बयान करता है। जाने कौन है जो 'नामवालों' को बदनाम करने पर आमादा है? बदनाम करने की यह साजिश इस खूबी से अंजाम दी जा रही है कि पता ही नहीं चलता, तीर दुश्मनों ने चलाया है या दोस्तों के खेमे से आया है। अनाम पत्रों के पीछे नामवालों की पोल खोलने का मकसद तो पता चलता है मगर तमाम संसाधनों के बाद भी साजिशकर्ता अज्ञात ही रहता है।
हुजूर विधायक रामेश्वर शर्मा की मंत्री बनने की राह मुश्किल थी मगर जब वे प्रोटेम स्पीकर बनाए गए तो संदेश गया कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह उनसे प्रसन्न है। इसके बाद रामेश्वर शर्मा ताकतवर नेता के रूप में पहचाने जाने लगे हैं। मगर अभी-अभी एक अनाम पत्र ने उन्हें बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यह अनाम पत्र भी तब अया जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विधायक रामेश्वर शार्म के क्षेत्र भोपाल के कोलार में सिक्स लेन रोड का भूमिपूजन करने जाने वाले थे।
सोशल मीडिया पर वायरल हुए इस पत्र में एक व्यापारी ने खुद को संघ का स्वयं सेवक बताते हुए विधायक पर होर्डिंग के लिए जबरन चंदा वसूली के लिए प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है। इसकी शिकायत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत समेत बीजेपी और संघ के पदाधिकारियों को की गई है। इस पत्र के आने से रामेश्वर शर्मा अलग कारणों से चर्चा में आ गए और जिस मकसद से उन्होंने मुख्यमंत्री चौहान का कार्यक्रम रखा था उसकी चमक भी फीकी पड़ गई। इस कार्यक्रम से ज्यादा चर्चा अनाम पत्र की हुई। यानि, किसी ने तो रामेश्वर शर्मा का बढ़ता कद देख कर लंगड़ी मारने की कोशिश की है।
आपको याद होगा ऐसा ही एक पत्र कुछ दिन पहले वायरल हुआ था। यह पत्र बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा के बारे में थे। उनपर भी आरोप लगाते हुए पत्र लेखक ने अपना नाम छिपा लिया था। इसके पहले मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस और कुछ आईएएस व कारोबारियों के संबंधों पर एक पत्र वायरल हुआ था। इसमें इन अफसरों पर आर्थिक अनियमितताओं का आरोप था। पत्र भेजने वाले ने स्वयं को रिटायर्ड आईएएस बताया था। ये दोनों पत्र भी तब आए थे जब विष्णु दत्त शर्मा और सीएस इकबाल सिंह बैंस के कार्यकाल को बढ़ाने की चर्चा चल रही थी। यानि, कोई तो है जो नहीं चाहता कि इन्हें कार्यकाल की वृद्धि मिले तभी अंदर की जानकारियां सार्वजनिक कर दीं।
इतने संदिग्ध आरोप हैं, सरकार के पास ऐसे मामलों के साजिशकर्ताओं को खोज लाने के तमाम साधन उपलब्ध हैं मगर बदनाम करते पत्रों को जारी करने का सिलसिला जारी है। नामवाले बदनाम हो रहे हैं, बदनाम करने वालों के चेहरे छिपे हैं। संभव है, उजागर करना भी नहीं चाहते हों। क्या पता राज खुले तो जाने कितनी बातें बेपर्दा हो जाएं।
मानगढ़ का रह गया मान, आदिवासियों का भरोसा न मिला और सियासत आ गयी आड़े
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ तीन राज्यों गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री राजस्थान के बांसवाड़ा के मानगढ़ में इकट्ठा हुए। इस पहाड़ी पर 1857 में करीब 1500 आदिवासियों को अंग्रेजों ने घेर कर मार दिया था। यह शहीद स्थल मानगढ़ आदिवासियों की आस्था का केंद्र हैं। यह पहाड़ी गुजरात व राजस्थान की सीमा में आती है। इस जगह किसी कार्यक्रम का होने के अर्थ है तीनों राज्यों की लगभग 100 विधानसभा सीटों सहित अन्य राज्यों के आदिवासी समुदाय तक संदेश पहुंचाना।
गुजरात, राजस्थान व मध्य प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव के लिए आदिवासियों को लुभाने के लिए इस श्रद्धा केंद्र पर आयोजित इस कार्यक्रम का बढ़ा महत्व था। यही कारण था कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस केंद्र को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग की है। वास्तव में जब केंद्र सरकार ने राज्यों से मानगढ़ के विकास के बारे में जानकारी मांगी थी जब ही बीजेपी की मंशा भांपते हुए गहलोत ने लीड लेते हुए राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग रख दी थी। कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी यदि मानगढ़ को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करते तो यह गहलोत की मांग पूरी होना माना जाता। पीएम मोदी इस घोषणा का लाभ कांग्रेस के खाते में जाने देना नहीं चाहते थे। इसलिए पीएम मोदी ने कह दिया कि सभी मानगढ़ धाम को भव्य बनाना चाहते हैं। इसलिए चारों राज्य मिल कर मानगढ़ के विकास की योजना तैयार करें।
यह भी पढ़ें: राम का नाम छोड़ अब मोदी जाप में जुटी मध्य प्रदेश बीजेपी
पीएम मोदी, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासियों के हित की बात जरूर की। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पेसा एक्ट लागू करने का वादा दोहराया लेकिन मानगढ़ के विकास का श्रेय लेने की राह में सियासत आड़े आ गई।
बहरहाल, मध्य प्रदेश बीजेपी ने पीएम मोदी के इस एक और कार्यक्रम से आदिवासियों को लुभाने की अपनी रणनीति को और तेज कर दिया है। झाबुआ के थांदला में हुई बीजेपी अनुसूचित जनजाति की कार्यसमिति बैठक व प्रशिक्षण आयोजित हुआ। यहां कार्यकर्ताओं से कहा गया है कि वे आदिवासियों से नियमित संवाद करें। पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं को दो माह तक घर छोड़ कर तय क्षेत्रों में जनता से बातचीत और प्रचार प्रसार करने के लिए कहा गया है। सोशल मीडिया पर भी सक्रियता बढ़ाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं।
न शिक्षा, न सिस्टम की बात, मदरसों पर निशाना
बीते दिनों एक खबर आई कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के क्षेत्र विदिशा में गोंड आदिवासी बच्चे मदरसे में पढ़ रहे हैं। राष्ट्रीय बाल आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ऐसे मामलों पर अधिक सक्रिय रहते हैं। उन्होंने तुरंत इसका संज्ञान लिया और कार्रवाई के लिए पत्र लिख दिया। सरकार ने भी जांच के आदेश दिए। विदिशा कलेक्टर उमाशंकर भार्गव ने जांच करवा कर रिपोर्ट दी तो पाया गया कि शिकायत पूरी तरह से गलत है। अलबत्ता यह जरूर कहा गया कि शिक्षकों के द्वारा ठीक से पढ़ाई नहीं कराए जाने के संबंध में विस्तृत जांच कराई जा रही है।
खबर के अनुसार आदिवासी बच्चे ने कहा है कि शिक्षिका कहती थी कि नहा कर नहीं आते हो इसलिए स्कूल नहीं आया करो। मूल मुद्दा तो यही है। आदिवासी बच्चों को स्कूल में नहीं पढ़ाने, उनके साथ भेदभाव करने जैसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील मामले पर बात करने की जगह आयोग सहित सभी लोगों ने बच्चों के मदरसे में जाने को मुद्दा बना दिया गया। जबकि गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने भी कहा कि आदिवासी बच्चे मदरसे में नहीं जा रहे हैं।
शिक्षा न मिलने, सरकारी सिस्टम के खराब होने तथा आदिवासी बच्चों के भेदभाव की बात तो किसी ने की नहीं इसे हिंदु-मुस्लिम का मुद्दा बनाने में रूचि क्यों दिखाई गई? यदि किसी बच्चे को स्कूल में पढ़ाया नहीं जा रहा है और वह पढ़ने की ललक मदरसे में चला गया तो इसमें गलत कौन हुआ? लेकिन मदरसे का नाम लेकर ऐसा दबाव बनाया गया कि जिला प्रशासन की जांच भी इसी बात पर केंद्रित रही। मूल मुद्दे पर विस्तृत जांच कह कर गंभीर मामले को टाल दिया गया।
बताते हैं कि इस पूरे मुद्दे पर सक्रियता के अपने राजनीतिक मंतव्य है, जिसे विदिशा क्षेत्र से लोकसभा और विधानसभा के प्रतिनिधित्व से जोड़ कर देखा जा रहा है।
सड़क को लेकर बीजेपी चुस्त, कांग्रेस सुस्त
खराब सड़कों का मुद्दा ज्यों-ज्यों गरमाता जा रहा है, बीजेपी में ही पक्ष और विपक्ष तैयार हो गए है। जनता में सड़क को लेकर नाराजगी देख बीजेपी कार्यकर्ताओं को ही नहीं, पार्षद, महापौर, मंत्री तक को जवाब देना भारी पड़ रहा है और वे अपनी ही सरकार के विरोध की भूमिका में आ गए हैं। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक उर्जा मंत्री प्रद्युमन सिंह ने तो पहले जनता की समस्या को अनुभव करवाने के लिए एक अफसर को गड्ढे में उतारा। फिर सड़क बनने तक खुद भी चप्पल-जूते पहनना छोड़ दिए। वे अफसरों से पंचनामा बनवा कर सड़क सुधारने का दबाव बना रहे हैं।
भोपाल में नगर निगम अध्यक्ष और महापौर ने पत्र लिख कर अधिकारियों को खराब सड़कों की सुध लेने को कहा। मगर सिस्टम फिर भी नहीं सुधरा। यहां तक कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जब देर रात पुराने भोपाल में गए तो सड़कों की हालत से इस कदर खफा हुए कि अगली सुबह अफसरों की क्लास ले डाली।
विरोध के इन स्वरों के बाद भी लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव की राय भी देख लीजिए। कोलार में आयोजित मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यक्रम में मंत्री गोपाल भार्गव ने कहा कि प्रदेश में सड़कें खराब बन रही हैं। रोड डेवलमेंट कॉर्पोरेशन इन सड़कों का मेंटेनेंस करता है, लेकिन वो अधूरा ही रहता है। हालांकि, उन्होंने दावा किया कि अगले एक महीने में प्रदेश की सड़कों को गड्ढा मुक्त कर देंगे।
सरकार के मंत्री और अफसर खराब सड़कों का दोष एक-दूसरे के सिर मढ़ रहे हैं मगर इतना सब होने के बाद भी कांग्रेस इस मुद्दे पर सरकार को घेरने में बीजेपी के नेताओं से पीछे ही नजर आती है। अगर कांग्रेस सड़क को लेकर जनता की समस्याओं को उठा भी रही है तो उसका प्रदर्शन बीजेपी नेताओं के विरोध के आगे फीका साबित हो रहा है।