जी भाईसाहब जी: राम का नाम छोड़ अब मोदी जाप में जुटी मध्य प्रदेश भाजपा
मुख्यमंत्री शिवराज चौहान के लगभग दो दशक के कार्यकाल की उपलब्धि भुनाने की बजाय बीजेपी हर जगह पीएम मोदी नाम का जाप करती नज़र आ रही है.. दूसरी तरफ़ ग्वालियर में सत्ता संघर्ष तेज़ हो रहा है.. ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर के बीच राजनीतिक रस्साकशी में मोहरा बन रहे हैं कार्यकर्ता

क्या मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का जलाल कम हो गया है कि विधानसभा चुनाव 2023 के लिए बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे कर रही है? मध्य प्रदेश की राजनीति में यह सवाल इन दिनों चर्चा में है। यह इसलिए कि आंतरिक सर्वे के बाद बीजेपी के संसदीय बोर्ड ने तय किया है कि आगामी विधानसभा चुनाव किसी और के नहीं पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ा जाएगा। इसके लिए राम सहित तमाम मुद्दों को पीछे छोड़कर बीजेपी मोदी जाप में जुटी है।
यूं तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ऊर्जा की नजीर दी जाती है। हमेशा चुनाव मोड में रहने वाले सीएम शिवराज सिंह चौहान ने मिशन 2023 को देखते हुए सक्रियता भी बढ़ा दी है और उनकी इस सक्रियता देख कोई नहीं कह सकता कि 2018 की तरह वे ही 2023 के भी चुनावी चेहरा होंगे। मगर पार्टी पर बारीक नजर रखनेवाले संभावना इससे उलट देख रहे हैं। डबल इंजन की सरकार का फार्मूला पीछेकर बीजेपी मोदी के फेस पर ही चुनावी नैय्या पार होने की उम्मीद पाल रही है। पीएम मोदी की मध्य प्रदेश में सक्रियता इस आकलन को पुष्ट करती है।
17 सितंबर को कूनो अभ्यारण्य में आए प्रधानमंत्री 11 अक्तूबर को फिर एमपी आ रहे हैं। एक महीने में दूसरी बार वे मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में पधारेंगे। इस दौरे की तैयारी को लेकर मंगलवार 27 सितंबर को उज्जैन में कैबिनेट बैठक भी रखी गई और लगभग एक हफ्ते से मोदी जी के आने की तैयारियों में पूरा उज्जैन व्यवस्त है। महाकाल कॉरिडोर का उद्घाटन उनके ही हाथ होना है।
इसके साथ ही तीसरे बुलावे की तैयारी भी शुरू हो गयी है। इंटरनेशनल एयरपोर्ट का भूमि पूजन करने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी को ग्वालियर बुलाने की योजना बनायी जा रही है। फिर अप्रैल- मई में ओंकारेश्वर में 'स्टैच्यू ऑफ वननेस' व वेदांत संस्थान के पहले चरण का लोकार्पण करने के लिए भी पीएम मोदी को ही बुलाया जाएगा। प्रांतीय और क्षेत्रीय संतुलन साधने के लिए विंध्य और महाकौशल क्षेत्र में विकास कार्यों के लोकार्पण के लिए मोदी की यात्रा तय है।
बीजेपी सरकार का प्लान है कि मध्य प्रदेश में होने वाले हर बड़े भूमिपूजन या लोकार्पण कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया जाए। मोदी की इन यात्राओं का कार्यक्रम कुछ इस तरह होगा कि वे नियमित रूप से थोड़े-थोड़े अंतराल पर मध्य प्रदेश में आते रहेंगे। जनता को संबोधित करते रहेंगे ताकि मैदान में सरकार को लेकर उपजी नाराजगी को मोदी के चेहरे के आगे बौना किया जा सके।
ग्वालियर में शुरू हो गई दो केंद्रीय मंत्रियों में टसल
उसकी कमीज मेरी कमीज से सफेद कैसे की तर्ज पर ग्वालियर में दो केंद्रीय नेताओं के बीच जारी वर्चस्व की लड़ाई अब सतह पर दिखाई देने लगी है। श्रेय लेने की यह होड़ जब सार्वजनिक मंच पर उभर जाए तो समझा जाना चाहिए कि बात उतनी सामान्य नहीं है जितनी दिखायी जा रही है। यह संघर्ष केवल क्षेत्र में प्रभुत्व को लेकर ही नहीं है बल्कि आगामी चुनाव में सीट के चयन में प्रभुत्व को लेकर भी है।
ग्वालियर में अंदर-अंदर जारी संघर्ष के सतह पर आने का पहला नजारा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की यात्रा के दौरान दिखायी दिया। एलिवेटेड रोड की आधारशिला कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, सांसद विवेक शेजवलकर व संध्या राय तथा क्षेत्रीय मंत्री मौजूद थे। मगर ग्वालियर-चंबल अंचल के विकास को मूल आधार देने वाले कार्यक्रम में अनुसूचित मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल सिंह आर्य, पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया, पिछड़ा वर्ग मोर्चा के अध्यक्ष नारायण सिंह कुशवाह सहित कई प्रमुख नेताओं ने कार्यक्रम से दूरी बनाए रखी।
क्षेत्र में विकास कार्यों का श्रेय केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के खाते में जाता देख सिंधिया समर्थक मंत्रियों ने आयोजन पर अपनी पकड़ बना ली। खबरें आईं कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के कार्यक्रम में सिंधिया समर्थक मंत्रियों का दबदबा होने के कारण पुराने बीजेपी नेता कार्यक्रम से दूर रहे। उर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह ने मंच पर नेताओं को दंडवत प्रणाम कर सुर्खियां बटोरी तो मंच के नीचे प्रभारी मंत्री तुलसीराम सिलावट के व्यवस्थागत निर्देश से स्थानीय नेता नाराज हो गए। बीजेपी शहर व ग्रामीण अध्यक्ष को मंत्री तुलसी सिलावट द्वारा दिए गए गेट पर मौजूद रहने के निर्देश रास नहीं आए।
इस आयोजन के दो दिन बाद ही पीएम मोदी केंद्रीय मंत्री तोमर के क्षेत्र कूनो आ गए तो केंद्रीय मंत्री सिंधिया सोशल मीडिया पर सिंधिया परिवार द्वारा वन्य जीव संरक्षण का इतिहास दोहराने लगे। उन्होंने दावा किया कि वन्य जीव संरक्षण के लिए 1905 में महाराजा माधोराव सिंधिया कूनो पालपुर के लिए 10 शेर लेकर आए थे। उन्होंने इसे जानवरों की अंतर महाद्वीपीय पुर्नस्थापन की पहली घटना बताया। यानी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर चीते को दूसरे देश से लाने को पहला मामला प्रचारित किया जा रहा था तब सिंधिया के ट्वीट से संदेश गया कि चीतों का आना वन्य प्राणियों को लाने का दूसरा प्रयास है। पहला तो सिंधिया परिवार पहले ही कर चुका है।
मंत्री तोमर के क्षेत्र में पीएम मोदी आए तो मंत्री सिंधिया कैसे पीछे रह सकते हैं? वे इंटरनेशनल एयरपोर्ट के भूमिपूजन के लिए पीएम मोदी को लाने के जतन कर रहे हैं। देखने में यह श्रेय की लड़ाई लग सकती है मगर वास्तव में यह ग्वालियर क्षेत्र में वर्चस्व कायम रखने का संघर्ष है। जाहिर है कि यह वर्चस्व मिशन 2023 ही नहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में सीट वितरण को भी प्रभावित करेगा। इसलिए टसल तो आगे भी जारी ही रहेगा।
उज्जैन की कैबिनेट युवा के बहाने राजनीतिक सेटिंग
मंगलवार को भोपाल में होने वाली शिवराज कैबिनेट की बैठक 27 सितंबर को मंत्रालय से बाहर उज्जैन में रखी गई है। इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा की तैयारियों पर बात होगी इसलिए एजेंडा छोटा रखा गया है। इस बैठक में मुख्यमंत्री अन्नदूत योजना प्रस्तुत की जा रही है। योजना के तहत प्रदेश में प्रतिमाह 1 करोड़ 11 लाख परिवारों को दिए जाने वाले 3 लाख 13 हजार टन खाद्यान्न के परिवहन का काम युवाओं को दिया जाना है। यानी ठेकेदारों से काम लेकर युवाओं के लिए रोजगार सृजन किया जाएगा। पहले पीएससी की परीक्षाओं में आयुसीमा में एक बार तीन साल की छूट और अब यह प्रयास बेरोजगारी से तंग युवाओं को खुश करने का तरीका है।
असल में प्रदेश में रोजगार न मिलने से युवाओं में नाराजगी बढ़ती जा रही है। इंदौर में बेरोजगार युवाओं के प्रदर्शन के बाद सरकार रोजगार सृजन के नए रास्ते खोज रही है। मुख्यमंत्री युवा अन्नदूत योजना बीजेपी का राजनीतिक संकट दूर करने की कोशिश भी कही जानी चाहिए।
संगठन के लिए रात दिन एक करने वाले नेता और कार्यकर्ता विभिन्न निगम-मंडलों, समितियों में राजनीतिक नियुक्तियों का इंतजार कर रहे हैं। मगर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ये नियुक्तियां कर नहीं रहे हैं। संगठन को आशंका है कि यदि नियुक्तियां की गईं तो अपनों को पद दिलवाने की कोशिशों में कार्यकर्ताओं में फैल रहा असंतोष बढ़ सकता है। यही वजह है कि निगम मंडलों में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष बना कर सिंधिया खेमे के नेताओं के साथ बीजेपी के कुछ नेताओं की नाराजगी दूर की गई मगर दूसरे नेता इंतजार ही कर रहे हैं। इनमें पूर्व मंत्री से लेकर संगठन के पदाधिकारी तक शामिल हैं।
अन्नदूत योजना में लोन आदि की व्यवस्था का प्रावधान कर संगठन से जुड़े नेताओं व कार्यकर्ताओं की आर्थिकी को साध लिया जाएगा। काम मिलेगा तो संगठन के नेता संतुष्ट भी होंगे और पार्टी की ताकत बढ़ेगी। देखना होगा कि पार्टी के इस कदम से युवाओं की नाराजगी कितनी दूर होती है।
नगरीय निकाय चुनाव में दिखेगी मंत्रियों की ताकत
27 सितंबर का दिन मध्य प्रदेश की राजनीति के लिए महत्वपूर्ण है। इस दिन 46 नगरीय निकायों में मतदान हुआ है। परिणाम 30 सितंबर को घोषित होंगे। जुलाई में हुए पंचायतों व नगरीय निकाय चुनावों के परिणामों ने बीजेपी की चिंता बढ़ा दी थी। इसलिए 46 नगरीय निकायों के चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी ने पूरा दम लगाया।
जिन 18 जिलों के 46 नगरीय निकायों में से ज्यादातर आदिवासी बहुल हैं। बीजेपी ने मंडला, उमरिया, अलीराजपुर, झाबुआ, बालाघाट, सिवनी, छिंदवाड़ा, खरगोन, खंडवा, बुरहानपुर में ताकत लगाई तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने अपने गृह जिले छिंदवाड़ा में लगातार तीन दिन डेरा डाले रखा। गढ़ाकोटा क्षेत्र में अपने विधानसभा चुनाव में भी प्रचार नहीं करने वाले आठ बार कि विधायक गोपाल भार्गव को प्रचार के लिए सड़क पर उतरना पड़ा।
प्रदेश में 1 साल बाद विधानसभा के आम चुनाव होना है उसके पहले इन चुनावों को तैयारी के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। पंचायत व नगरीय निकाय चुनाव में अपनी परिषद व अध्यक्ष बनवाने के लिए बीजेपी को बड़ी जोड़तोड़ करनी पड़ी थी। इसलिए बीजेपी नेताओं ने 46 नगरीय निकाय चुनाव में बाद के लिए कोई कसर नहीं रख छोड़ी। देखना होगा 30 को जारी होने वाले परिणाम क्या संदेश देते हैं। ये परिणाम आदिवासी राजनीति के साथ बीजेपी व कांग्रेस की रणनीति को तय करेंगे।