जी भाईसाहब जी: क्यों हटाए गए भाजपा में संघ के प्रतिनिधि

शुरुआत में सख्‍त सुहास भगत की कार्यप्रणाली राजनीतिक हो चली थी.. पद दिलवाने की अनुशंसाओं पर भी आपत्तियां आने लगी थीं.. आखिरकार, उन्‍हें हटा दिया गया

Updated: Jul 20, 2022, 02:06 AM IST

पांच राज्‍यों में विधानसभा चुनाव के परिणामों के बाद मध्‍यप्रदेश में नेतृत्‍व परिवर्तन के कयास लगाने वाले सच साबित हुए हैं लेकिन बदलाव सत्‍ता के स्‍तर पर नहीं संगठन स्‍तर पर हुआ है। मुख्‍यमंत्री नहीं बदले गए हैं बल्कि आरएसएस ने भाजपा के संगठन महामंत्री सुहास भगत को वापस बुला लिया है। उन्‍हें संघ के मध्य क्षेत्र का बौद्धिक प्रमुख बनाकर जबलपुर भेजा गया है। भगत की रवानगी के बाद उनकी प्रशंसा में कसीदे पढ़े जा रहे हैं तो कई नेता खुश भी हैं। वे इस उम्‍मीद में हैं कि निजाम बदला है तो उनके दिन भी फिरेंगे ही। 

सुहास भगत को 2016 में संघ से भाजपा में भेजा गया था। तब अरविंद मेनन संगठन महामंत्री थे और उनकी जगह भेजे गए सुहास भगत कम चर्चित चेहरा थे। अरविंद मेनन के पहले माखन सिंह और कप्‍तान सिंह सोलंकी संगठन महामंत्री रह चुके थे। सुहास भगत का छह साल का कार्यकाल हो चुका है और उन्‍हें हटाए जाने के पीछे का कारण 2023 की तैयारियां मानी जा रही हैं। संगठन महामंत्री भाजपा में संघ का प्रतिनिधि होता है। मुख्‍यमंत्री व भाजपा प्रदेश अध्‍यक्ष के बीच की कड़ी भी। सीएम, प्रदेश अध्‍यक्ष और संगठन महामंत्री की त्रयी ही प्रदेश संगठन को संचालित करती है। सुहास भगत के काम की प्रशंसा के बीच सवाल उठ रहे हैं कि इतना ही अच्‍छा काम था तो फिर ऐनचुनाव के पहले सुहास भगत को क्‍यों हटा दिया गया?

राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि सुहास भगत को संघ की लाइन आगे बढ़ाने के लिए संगठन में भेजा गया था। उन्‍होंने यह किया भी। नंदकुमार सिंह चौहान और राकेश सिंह के अध्‍यक्षीय कार्यकाल के दौरान सुहास भगत ने अपनी अलग रेखा खींच कर रखी थी। वे अपना काम अलग ही किया करते थे। बाद में जब संघ की पसंद पर विष्णु दत्‍त शर्मा को प्रदेश अध्‍यक्ष बना कर भेजा गया तब तक सुहास भगत भाजपा की राजनीति में ढल गए थे। उनके चाहने वालों और विरोधियों का कुनबा बढ़ता जा रहा था। शुरुआत में सख्‍त तेवरों वाले सुहास भगत की कार्यप्रणाली राजनीतिक हो चली थी। अपनों की गलितयों को वे नजर अंदाज करने लगे थे। समर्थकों को पद दिलवाने के लिए उनकी अनुशंसाओं पर भी आपत्तियां आने लगी थीं।

2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान टिकट पक्‍का करने के लिए नेताओं की भोपाल दौड़ शुरू हो चुकी है। सुहास भगत के आसपास भी ऐसे लोग मंडराने लगे थे। इन सारे समीकरणों को तोड़ते हुए भगत को संघ में वापस बुलाने का फैसला हो गया है। भगत के हटते ही उनके सहारे टिकट पाने और राजनीति चमकाने की उम्‍मीद करने वाले नेताओं के अरमानों पर भी गाज गिरी है। जबकि भगत से दूरी बना कर चल रहा खेमा खुश है। सुहास तो गए। अब जो भी संगठन महामंत्री आएगा उसकी पसंद नापसंद के आधार पर बायोडाटा को बदल लिया जाएगा।

जिस समय सुहास भगत को हटाने के निर्णय की जानकारी सामने आ रही थीं ठीक उसी समय राजधानी भोपाल में पूर्व मुख्‍यमंत्री उमा भारती का एक वीडियो वायरल हो रहा था। शराब बिक्री का विरोध करते हुए वे एक शराब दुकान पर पत्‍थर फेंकती नजर आईं। असल में, न तो यह प्रतीक आंदोलन था और न ही किसी शराब दुकान के प्रति आक्रोश था। उमा भारती का पत्‍थर शराब दुकान पर नहीं बल्कि उस राजनीति और भाजपा के उन राजनेताओं पर था‍ जिन्‍होंने उन्‍हें हाशिये पर धकेल दिया है।

भोपाल के ही मशहूर शायर दुष्‍यंत कुमार ने एक शेर में कहा है कि एक पत्‍थर तो तबियत से उछालो यारों... और उमा भारती ने एक पत्‍थर उछाल कर राजनीति के ठहरे पानी में लहरें उठाने की कोशिश की हैं। लगातार शराबबंदी को लेकर आंदोलन करने की बात कहने वाली उमा भारती ने बाद में कहा था कि जनता का सहयोग लेकर वे शराबबंदी की मुहिम चलाएंगी। वे जनता के साथ शराब दुकान के सामने खड़े होकर प्रदर्शन करने वाली थीं। उमा समर्थकों के साथ शराब दुकान तक पहुंची थी मगर पत्‍थर खुद फेंका और ऐसा कर अपनी ही मुहिम पर हमला कर बैठीं।

शराब दुकान पर पत्‍थर फेंकने को उमा भारती के आत्‍मघाती कदमों में से एक माना जा रहा है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मौन हैं। भाजपा संगठन में कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है। प्रतिक्रिया न मिलने से हड़बड़ाई पूर्व मुख्‍यमंत्री उमा भारती ने पत्‍थर उठा लिया है। एक पत्‍थर से न मध्‍य प्रदेश सरकार की आबकारी नीति बदलने वाली है और न ही शराब विक्रय ही बंद होने वाला है। अलबत्‍ता, उमा भारती को गंभीरता से लेना छोड़ चुकी पार्टी के लिए उन्‍हें नजरअंदाज करना अब और आसान होगा।

इस घटना के बाद या तो उमा भारती ने संगठन जवाब तलब करेगा। वे सफाई देंगी और पार्टी नेताओं के चक्‍कर लगाएंगी। या उन्‍हें इतना नजरअंदाज किया जाएगा कि वे अपने ही आक्रोश में खो कर रह जाएगी। दोनों ही सूरत में विरोधियों का ही भला होना है। पहले ही समर्थक दूर छिटक रहे हैं। अब और घट जाएंगे। इसतरह 2003 में चमत्‍कारी नेता के रूप में उभरी उमा भारती 2023 तक चमकविहीन हो कर रह जाएंगी।

आफत केवल उमा भारती की ही नहीं है। पार्टी के अन्‍य वरिष्‍ठ नेताओं को भी मार्गदर्शन मंडल में धकेल दिए जाने का डर सता रहा है। ऐसे ही एक नेता हैं पीडब्‍ल्‍यूडी मंत्री गोपाल भार्गव। बेबाक बोल और बिंदास राजनीतिक अंदाज के लिए पहचाने जाने वाले गोपाल भार्गव को पार्टी ने इतना अलग कर दिया है कि उन्‍हें अपनी विदाई का अहसास हो चुका है। आठ बार के विधायक गोपाल भार्गव को मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी मंत्री भूपेंद्र सिंह ने घेर रखा है। अपनी राजनीति बचाने की फिक्र में डूबे गोपाल भार्गव की चिंता बेटे और साढू को लेकर भी है। दोनों कानूनी मामलों में उलझे हैं। बेटा इस दाग से बरी न हुआ तो वे उसे अपने राजनीतिक उत्‍तराधिकारी के रूप में चुनाव कैसे लड़वा पाएंगे? दरकिनार कर दिए गए नेता गोपाल भार्गव का यह दु:ख सार्वजनिक कार्यक्रम में जग जाहिर हुआ।

सागर के गढ़ाकोटा में तीन दिवसीय रहस मेले में गोपाल भार्गव ने कह कर दर्द बयां किया कि राजनीति में कोई भरोसा नहीं रहता। जीवन का भी कोई भरोसा नहीं है। यह कहते कहते वे भावुक हो गए। मगर बात इतनी ही नहीं है। राजनीति ने टर्न तो तब लिया जब कार्यक्रम में मौजूद केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि गोपाल जी, आपके साथ ज्योतिरादित्य खड़ा है।

इस आश्‍वासन से गोपाल भार्गव के समर्थकों के चेहरे चमक गए हैं। सिंधिया के आश्‍वासन को यूं समझिए। एक तरफ नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह हैं। दूसरी तरफ किनारे कर दिए गए नेता गोपाल भार्गव है। भूपेंद्र सिंह मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी हैं और भार्गव के साथ हैं ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया। मध्‍य प्रदेश भाजपा की राजनीति इनदिनों इस नए ध्रुवीकरण के आसपास की डोल रही है। ग्‍वालियर, चंबल, बुंदेलखंड के बाद मालवा में सिंधिया के इर्दगिर्द जमावड़ा भाजपा के स्‍थापितों की नींद उड़ा रहा है।

इधर, विधानसभा का बजट सत्र जारी है। दो दिन के अवकाश के बाद सोमवार से फिर से सदन का कामकाज शुरू हुआ। तैयारी है कि होली यानि 17 मार्च के पहले तक बजट पर चर्चा करवाकर उसे पास करवा दिया जाए। यही वह मौका है जब कांग्रेस एकजुट हो कर सदन में सरकार को घेर सकती है। हालांकि, पहले ही दिन विधायक जीतू पटवारी ने राज्‍यपाल के अभिभाषण का विरोध कर सुर्खियां बटोरी लेकिन इससे कांग्रेस में बिखराव का संकेत गया। बाद की कार्यवाहियों के दौरान भी वॉकआउट को लेकर कांग्रेस एकजुट नहीं दिखाई दी है। नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ ने सत्र को 31 मार्च तक बढ़ाने की मांग की है लेकिन यह मांग मानी नहीं गई हैं। अब समय कम है। चर्चा के दौरान कांग्रेस सदन में सरकार को घेर पाए तो ठीक अन्‍यथा सड़क पर उतरने का विकल्‍प ही शेष रहेगा।