संसार शत्रु पर विजय प्राप्त करने की प्रचंड शक्ति है बुद्धि
ब्रह्म पर केवल आवरण है, वो तो सहज प्रकाश स्वरूप है, इसलिए आवरण भंग करने के लिए वृत्ति की आवश्यकता है, बुद्धि ही वह वृत्ति है जो नष्ट करती है आवरण
 
                                    बुधि शक्ति प्रचंडा
ज्ञान से ही कैवल्य की प्राप्ति होती है। ज्ञानी के हृदय की ग्रन्थि खुल जाती है और उसके पापों का नाश हो जाता है।
भिद्यते हृदयग्रंथिः, छिद्यन्ते सर्वसंशयाः.
क्षीयन्ते चास्य कर्माणि, तस्मिन् दृष्टे परावरे।।
उसके हृदय की ग्रन्थि खुल जाती है और कर्मों का क्षय हो जाता है जिसे उस परावर का दर्शन हो जाता है।परावर का अर्थ है कि परा अपि अवरा: यस्मात् स परावरः ब्रह्मा आदि देवता भी जिनसे बहुत छोटे हैं उस परब्रह्म परमात्मा को परावर कहते हैं। उसका दर्शन होने से हृदयग्रंथि खुल जाती है और संशय क्षीण हो जाते हैं। तो जन्म मरण के चक्र से व्यक्ति छूट जाता है। संसार का अन्त हो जाता है।
कुछ विद्वान ये मानते हैं कि ज्ञान बुद्धि से होता है और कुछ लोग ये मानते हैं कि महावाक्य के श्रवण से ज्ञान होता है। तो ये थोड़ा समझने का विषय है।आप जंगल में गये वहां एक जानवर देखा जो गाय की तरह है।आप पहले से ही सुन रखे थे कि गो सदृशो गवय: गवय गऊ के समान होता है।
आपके मन में पहले से ही ये संस्कार था कि गवय (नील गाय) गऊ के समान होता है। तो बिना किसी के बताए ही आप कहते हैं कि ये गवय है। इसी प्रकार जिस व्यक्ति ने श्रोत्रिय ब्रह्म निष्ठ गुरु के द्वारा शास्त्रों का श्रवण किया है उस व्यक्ति की बुद्धि शान्त और समाहित होती है तो उस समय आत्म स्वरूप का दर्शन वो सहज में ही कर लेता है। क्यूंकि उसके वेदांत श्रवण के संस्कार हैं।
यहां उदाहरण दिया गया कि जैसे जौहरी अपनी आंख से देखते ही बता देता है कि ये रत्न कौन सा है और कितने मूल्य का है। आंख से हम भी रत्न को देखते हैं और जौहरी भी देखता है। लेकिन हम नहीं बता सकते, जौहरी बता देता है। उसका कारण ये है कि रत्न शास्त्राभ्यासजन्य संस्कार सचिव मन: संयुक्त नेत्र से वो जौहरी रत्न को जानता है। ऐसे ही कोई शास्त्रीय संगीत जानने वाला गायन को सुनते ही समझ जाता है कि इसमें क्या त्रुटि है और क्या ठीक है। इस अंतर को साधारण व्यक्ति नहीं समझ सकता। क्यूंकि गान्धर्व शास्त्राभ्यास जन्य संस्कार युक्त श्रोत्र उसके पास है।इसी प्रकार वेदांत शास्त्राभ्यास जन्य संस्कार सचिव मन या बुद्धि से ही ब्रह्म तत्व का साक्षात्कार होता है।
यही ज्ञान है। बुद्धि ही प्रचंड शक्ति है।ब्रह्म का ज्ञान होने के लिए क्या आवश्यक है? इसके लिए उदाहरण है कि जैसे घड़े के नीचे नारियल छिपा के रखा है तो उसमें दो काम करने पड़ेंगे। एक तो घड़े को हटाइए और नारियल को प्रकाश में देखिए। लेकिन अगर घड़े के भीतर मणि रखी हो तो आपको केवल एक ही काम करना पड़ेगा कि घड़े को हटा दीजिए मणि को लाइट ले जाकर देखने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मणि तो स्वयं प्रकाश है। इसी प्रकार ब्रह्म में केवल आवरण है। वो तो सहज प्रकाश स्वरूप है। इसलिए आवरण भंग करने के लिए वृत्ति की आवश्यकता है। बुद्धि ही वृत्ति है जो आवरण को नष्ट करती है।
हमारे गुरुदेव भगवान इस प्रसंग में एक बहुत ही सुन्दर उदाहरण देते हुए कहते हैं कि दस मनुष्य यात्रा में जा रहे थे। रास्ते में एक नदी पड़ी, सबने नदी को पार किया। तो उसमें से एक ने कहा कि ज़रा गिनती कर लिया जाय कि हमलोग दस हैं कि नहीं। हममें से कोई रह तो नहीं गया। तो एक ने गिनना प्रारंभ किया। एक से नौ तक तो गिन लिया अब वो चिंतित होकर बोला कि हाय! हमारा दसवां कहां गया? दूसरे ने गिना तो भी नौ, तीसरे ने गिना तो भी नौ। अब वो सब रोने लगे कि हमारा दसवां खो गया। विलाप करने लगे। चिंता कर ही रहे थे कि इतने में एक महात्मा आ गए। महात्मा ने पूछा कि आप लोग क्यूं रो रहे हैं? तो वो बोले कि हमारा दसवां खो गया है इसलिए हम रो रहे हैं। लगता है कि हमारा दसवां नदी में बह गया। तो महात्मा जी ने कहा कि दसवां है। वो सबलोग बहुत प्रसन्न हुए और बोले कि महाराज! आप कह रहे हैं तो हम मान लेते हैं लेकिन हमारा दसवां कहां है हमें दिखा दीजिए। उसको देखकर ही हमें शांति मिलेगी। महात्मा जी ने कहा कि मैं बीच में खड़ा हो जाता हूं और तुम लोग हमारे आस पास खड़े हो जाओ हम तुम्हारे दसवां को दिखा देते हैं। महात्मा ने गिनना शुरू किया एक से नौ तक गिने और एक हल्की सी चपत लगाकर बोले कि दसवां तू। इसी तरह सबको गिन कर बता दिया कि दसवां तू। असल में वो सबके सब अपने आप को छोड़कर गिनती करते थे इसलिए दसवां खो जाता था। जब महात्मा जी ने कहा कि दसवां तू है। इस वाक्य से आवरण नष्ट हो गया।।
इसी प्रकार ब्रह्म साक्षात्कार के लिए केवल आवरण भंग की आवश्यकता है। लेकिन यह वाक्य जब गुरु कहता है कि तत्त्वमसि तो शिष्य को बोध हो जाता है। और यह कार्य बुद्धि के द्वारा ही संभव है। इसलिए भगवान श्रीराम कहते हैं कि संसार शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए बुद्धि ही प्रचंड शक्ति है। बुधि शक्ति प्रचंडा




 
                             
         
         
         
         
         
         
         
         
         
         
         
         
         
                                    
                                 
                                     
                                     
                                     
								 
								 
 
 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								