नहीं रहीं कमला भसीन, महिला स्वतंत्रता और अधिकारों की लड़ाई लड़नेवाली मुखर आवाज़ हुई मौन

कमला भसीन अजेय थीं और वह अंत तक अजेय रहीं, उनकी कथनी और करनी में किसी तरह का विरोधाभास नहीं था: शबाना आजमी

Updated: Sep 28, 2021, 10:37 AM IST

Photo Courtesy: twitter
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कुदरत भेद बनाती है, भेदभाव नहीं। समाज कुदरत के बनाए भेद के आधार पर भेदभाव करने लगता है। यह कहना था नारीवादी सामाजिक कार्यकर्ता कमला भसीन का। 75 वर्षीय कमला भसीन ने दिल्ली में शनिवार सुबह अंतिम सांस ली। वे लिवर कैंसर से पीड़ित थीं। जून 2021 में ही उनकी बीमारी का पता चला था। नारीवादी लेखिका औऱ जिंदादिल इंसान के निधन से देश-दुनिया में शोक की लहर है।

वे महिलाओं के अधिकार, उनकी आज़ादी के लिए आवाज़ उठाने के लिए जानी जाती थीं। उनके निधन से मानों महिलाओं के हक़ की आवाज़ मौन हो गई। वे अपने गीतों से भारतीय महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध थीं। इनके जरिए उन्होंने महिला आंदोलनों को ऊंचाई प्रदान की। उनकी रचनाएं भारत के साथ पूरे साउथ एशिया में प्रसिद्ध थे, आंदोलनों के दौरान दिए उनके नारे, गीत और उनकी तर्क संगत बातों से कई महिला आंदोलन बुलंदियों पर पहुंचे थे।

कमला भसीन के गीतों और दोहों की खासियत थी के वे बेहद सरल भाषा में होते थे। वे उनमें सहज़ स्वभाव से अपना विचार पेश करती थीं, जो आम लोगों पर गहरा असर छोड़ती थी। कमला भसीन के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपना सारा जीवन अपनी शर्तों पर जिया।

 बीमारी के दौरान भी वे अपनी रचनाओं से लोगों के जीवन में ऊर्जा का संचार कर रही थीं। आखिरी दिनों में भी उन्होंने कई कविता, दोहे और गीतों की रचना की। बीमारी का पता लगने के बाद उन्हें कई बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था। अस्पताल में दर्द के बीच भी उन्होंने अपनी कलम को विराम नहीं दिया, वे उस माहौल में भी अपनी रचनाओं के दम पर ऊर्जा की तरंगों का संचार करती रहीं। उनके जानने वाले बताते हैं कि वे इलाज के दौरान अपने आसपास के मरीजों से बातें करतीं दर्द में भी हंसती औऱ साथी मरीजों के चेहरों पर भी मुस्कान लाने का काम करती।

 राजस्थान में डाक्टर परिवार में कमला भसीन का जन्म 24 अप्रैल, 1946 को हुआ था। डाक्टर पिता की बेटी कमला ने राजस्थान यूनिवर्सिटी से मास्टर्स किया था। फिर वे समाजवादी विकास विषय की तालीम लेने जर्मनी चली गई। कमला भसीन 1970 से ही भारत समेत अन्य साउथ एशियाई देशों में महिला आंदोलन की मुखर आवाज बन गई थीं। करीब 19 साल पहले 2002 में फेमिनिस्ट नेटवर्क संगत की स्थापना की थी।

इसके माध्यम से वे गरीब आदिवासी और ग्रामीण महिलाओं के लिए काम करती थीं। वे वंचित वर्ग की महिलाओं को जागरुक करने के लिए नाटकों, गीतों और नाटकों का उपयोग करती थी। वे आसान शब्दों में बड़ी-बड़ी बातें कह जाने और लोगों को समझाने के लिए जानी जाती थीं।

एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि ‘जब रेप होता है तो लोग कहते हैं कि मेरी इज्जत चली गई? मेरी इज्जत मेरी योनि में नहीं है। यह पितृसत्तात्मक विचार है कि मेरा बलात्कार मेरे समुदाय के सम्मान को अपवित्र करेगा। मैं सभी को बताना चाहती हूं कि आपने अपने समुदाय के सम्मान को एक महिला की योनि में क्यों रखा? हमने ऐसा कभी नहीं किया। सम्मान बलात्कारी खो देता है हम नहीं।’

‘मेरे लिए, बलात्कार करने वाली महिला की तुलना में बलात्कार करने वाला पुरुष कहीं अधिक अमानवीय है। जो आदमी अपने साथी की पिटाई करता है वह इंसान नहीं है। पुरुषों को यह समझना चाहिए कि वे पूरी तरह से तभी आजाद हो सकते हैं जब महिलाएं पूरी तरह से आजाद हों।’
 

महिलाओं के समाजिक, आर्थिक उत्थान उनके जीवन का लक्ष्य था। कमला भसीन ने अपनी किताबों के जरिए नारीवाद और पितृसत्ता को समझाने को लेकर कई किताबें लिखी हैं।  उनकी कई किताबों का 30 से ज्यादा भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है। उनके जाने से एक युग का अंत हो गया है। कमला भसीन के निधन पर एक्ट्रेस और सोशल वर्कर शबाना आजमी ने दुख जताया है, उन्होंने कहा है कि उनकी कमी हमेशा खलेगी, उनकी साहसी मौजूदगी हंसी और गीत, उनकी अद्भुत ताकत उनकी विरासत है। हम सब इसे संजो कर रखेंगे।