राम चरित्र (भाग1): पूजा से आगे विस्तारित छवि

राम के विभिन्न कथानक पर चर्चा करने की आज आवश्यकता इसलिए भी है क्योंकि समाज का लचीलापन लगातार कम होता जा रहा है। हम सब एक ही तरह से देखने के आदी होते जा रहे हैं। राम के चरित्र चित्रण को लेकर कई विरोधाभास भी है। इसीलिए हमें सिर्फ ऋषि वाल्मीकि या गोस्वामी तुलसीदास के नजरिए से ही राम को नहीं जानना चाहिए। हमारा प्रयास है कि हम इस श्रंखला में राम के कथानक को विविधता के साथ तमाम गुणीजनों के दृष्टिकोण से भी दिखाने की कोशिश करें।

Updated: Aug 03, 2020, 01:12 AM IST

राम को लेकर अतीत में कभी कोई विवाद नहीं रहा, न ही अब है। उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक और सुदूर पूर्व व मध्य एशिया में राम को अपनी-अपनी तरह से समझने वाले, व्याख्यायित करने वाले, स्नेह करने वाले, आदर्श मानने वाले और पूजने वाले मौजूद रहे हैं। राम अवतार हैं या कोई ऐतिहासिक चरित्र या कोई मिथिकीय चरित्र यह वर्गीकरण कमोवेश अर्थहीन सा हो जाता है, क्योंकि हम सबको अपने-अपने राम को गढ़ने और सृजित करने की स्वतंत्रता हमेशा से रही है। कहीं कोई रामसेवक नाम लिए हुए मिलता है तो कहीं सेवकराम। आगे हो या पीछे, राम तो हैं हीं। कहीं कोई रामभरोसे है तो कहीं कोई रामसजीवन। कहीं कोई रामाश्रय नाम लिए मिलेंगे तो कहीं रामानुजम। किसी भी अन्य चरित्र का ऐसा लोक व्यापीकरण सर्वथा दुर्लभ है। यहां एक बात पर और भी गौर करना होगा कि राम बेहद धीर-गंभीर, शांत, आज्ञाकारी, मर्यादा का पालन करने वाले, कभी क्रोधित (अपवाद को छोड़ दें) न होने वाले और करुणामयी हैं। उनका चरित्र, उनका स्वभाव ऐसा क्यों है? उनको लेकर सैकड़ों रामकथाएं लिखी गई हैं। एकाध को अपवाद मान लें तो, वे प्रत्येक में करुणा से सराबोर हैं। ऐसा कैसे संभव हो पाया होगा? हम राम की विस्तारित छवि को समझने का प्रयास करें, तो ऐसे तमाम तथ्य व कथानक सामने आते हैं, जो उद्घाटित करते हैं कि मूल्यों और दामों में क्या अंतर होता है। 

गौरतलब है अयोध्या में राम मंदिर का बन जाना रामकथा का उपसंहार नहीं है बल्कि यह राम को समझने का नवीनतम संदर्भ है, जिसे भारतीय सभ्यता के आलोक में नए सिरे से समझना होगा। रामकथा को राम विमर्श में बदलना आज की सबसे बड़ी जरुरत बन गई है। वाल्मीकि के करुणामयी राम का सफर बरास्ता कम्ब, माधव कंडाली, एकनाथ, कृत्तिवास, तंचान, कबीर, तुलसीदास, बौद्ध व जैन रामायण से महात्मा गांधी तक पहुंचता है, जो राम राज्य की बात करते हैं। जबकि स्वयं राम तक ने रामराज्य का जिक्र नहीं किया था। आजादी के करीब 45 वर्ष बाद बाबरी मस्जिद के ध्वंस और आज सन् 2020 में राम मंदिर के पुनः शिलान्यास की घटना ने नए सिरे से राम विमर्श को प्रेरित करना प्रारंभ करा है। राजनीति का धर्मस्य होना और धर्म का राजनीतिमय होना पर्यायवाची नहीं हैं। यह विलोम अर्थ रखते हैं। अतः अब करुणा से उपजे राम को समझना अनिवार्यता बन गई है। 

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तो बात शुरु करते हैं, वाल्मीकि और उनके राम से। गौरतलब है, वाल्मीकि ‘‘आदि कवि‘‘ कहलाते हैं। ऐसा क्यों ? यह भी रामायण के लेखन में ही छुपा है। रामायण की शुरुआत एक छन्द से होती है, जो कि वाल्मीकि द्वारा नारद को संबोधित है। इसमें वाल्मीकि पूछते हैं कि वे वर्तमान में किसी ऐसे मनुष्य का नाम बताएं जिसमें तपस (कठोर श्रम) और स्वाध्याय (गहन ध्यान) के गुण हों, और चरित्रवान होने के साथ ही साथ वह सार्वभौम के कल्याण के प्रति समर्पित हो। इस पर नारद उन्हें ‘‘राम‘‘ का नाम बताते हैं, जो कि इक्ष्वाकु वंश में जन्मे हैं।

इक्ष्वाकुवंषप्रभवो रामो नाम जनैः श्रतुः। 

नियतात्मा महावीर्यो श्रुतिमान घृतिमान वषी।। (रामायण 1-1)

वाल्मीकि को अपना चरित्र मिल जाता है। वे नारद से विदा लेकर आश्रम की ओर प्रस्थान करते हैं, जो कि तमस नदी (गंगा की सहायक नदी) के किनारे स्थित था। नदी किनारे पहुंचने पर उन्हें बेहद ठंडे और स्वच्छ जल के दर्शन होते हैं। वे अपने शिष्य भारद्वाज से कहते हैं। यह पारदर्शी जल एक अच्छे मनुष्य के ह्दय की तरह प्रतीत हो रहा है। तो तुम अपने बर्तन नीचे रख दो और मेरे वल्कल (छाल के वस्त्र) मुझे दे दो। मैं यहां स्नान करुंगा। स्नान करने के बाद वे घने जंगल में भ्रमण को निकल गए। वहां पर उन्हें क्रोंच पक्षियों के एक युगल की प्रेम में डूबी मधुर आवाजें सुनाई देती हैं। वे मुग्ध हो यह सब देख-सुन रहे थे। तभी एकाएक उनके सामने नर पक्षी की मृत देह आकर गिरती है, जिसे एक क्रूर शिकारी ने अपने तीर से भेद दिया था। आनंदित प्रेमी युगल की मादा का आनंद चीत्कार में बदल जाता है और वह मृत प्रेमी के चारों ओर चक्कर लगाने लगती है। ऋषि एकाएक द्रवित और विचलित हो जाते हैं। वे शिकारी को शाप(श्राप) देते हैं और यकायक उन्हें महसूस होता है कि उनके शाप ने श्लोक की एक पंक्ति का रूप ले लिया। यह प्रसिद्ध है कि उनके शोक की लय ने श्लोक को जन्म दिया और वे उसी छंद से राम के चरित्र को व्याख्यायित करने के लिए महाकाव्य लिखने का निश्चय करते हैं। यह श्लोक है,

माॅ निषाद! प्रतिष्ठा त्वमगनः शाष्क्ती समः।

यत्क्रोन्चमिथुनादेकमवधीः काम मोहितम्।

यह घटना साहित्य जगत की अपूर्व घटना है। वाल्मीकि अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम के साक्षी बन रहे हैं और साहित्य में कविता का प्रवेश हो रहा है। विश्व में कविता का आगमन हो रहा है, राम के चरित्र के माध्यम से। संभवतः यह विश्व की महानतम घटनाओं में से है। ऋषि वाल्मीकि अपने इस अनुभव को शब्दों में बदलने को व्यग्र हो उठते हैं और अपने शिष्यों से कहते हैं, ‘‘इस समय गहन दुःख की अनुभूति जो मेरे भीतर उमड़ रही है, वह श्लोक (कविता) ही है और कुछ भी नहीं है।‘‘ इसके तुरंत बाद में शास्त्रीय कविता की विशेषताओं को परिभाषित करने में सक्षम हो जाते हैं। वे कहते हैं (श्लोक को) बराबरी की संख्या के व्याक्यांशों में विभक्त होना चाहिए और इन्हें संगीत के माध्यम से अभिव्यक्त किए जाने की क्षमता होना चाहिए। वे विस्तार से इसे समझाते हैं। इसीलिए हम पाते हैं कि रामायण और बाद में लिखे आख्यान व काव्य जैसे महाभारत आदि इसी तरह लिखे गए हैं। लंबे विवरणों/घटनाओं को याद रख पाने के लिए श्लोक सर्वश्रेष्ठ माध्यम बन गया। इसी के परिणामस्वरूप ऋषि वाल्मीकि लव व कुश को रामायण सिखाते हैं, जो कि राजा राम के दरबार में इसे सुनाते हैं। राजा राम सहित पूरी राजसभा मंत्रमुग्ध है। कई शताब्दियों बाद वाल्मीकि को अपना गुरु मानने वाले कवि कालिदास ‘‘रघुवंशम में लिखते हैं,

तद्गीतश्रवणैकाग्रा संसदभुमुखी बभौ।

हिम निष्यन्दिनी प्रातर्निर्वातेष वनस्थली‘‘

अर्थात स्थिर भाव से गीत को सुनते हुए सभासदों का मुख आंसुओं से भीग गया था और प्रतीत हो रहा था कि वहां का वातावरण वन में स्थित ऐसा क्षेत्र है जो कि बेहद स्वच्छ, शीतल और शांत है। उन्हें यह भी प्रतीत हो रहा था कि इस (काव्य) को सुनने के लिए जैसे पवन (वायु) भी रुक गई है। एक अप्रतिम कविता की प्रशंसा में दूसरी अप्रतिम कविता और आदि कवि के सम्मान में भारत के महानतम कवियों में से एक कालिदास की आदरांजलि।

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इसलिए रामायण यदि पहला महाकाव्य है तो राम दुनिया के पहले महानायक भी हैं। उनका चरित्र जिस तरह से रचा गया है, वह आजतक किसी और के हिस्से नहीं आया। ऐसा कैसे हो पाया? कैसे हजारों हजार साल से एक चरित्र लगातार आदर्श बना रह पाता है? कभी इस बात पर भी गौर करिए कि कैसे महाकाव्य (रामायण और महाभारत) रेलवे या हवाई जहाज या इंटरनेट के आने के युगों पहले पूरे एशिया  महाद्वीप से जुड़ जाते हैं, या पूरे महाद्वीप को जोड़ लेते हैं, अपने साथ? आनंद शंकर रे अपनी पुस्तक में लिखते हैं, कि शांतिनिकेतन में उन्हें एक इंडोनेशियन प्रोफेसर मिले। उन्होंने संस्कृत के कुछ छंद सुनाए जो कि इंडोनेशिया में तो प्रचलन में थे, परन्तु हमारे यहां विलुप्त हो चुके थे। उनका नाम डाॅ. वीर सुपार्थ था, इसका अर्थ हुआ वीर अर्जुन। वहां ‘‘सु‘‘ का वही अर्थ है जो हमारे यहां है यानी अच्छा और सुंदर। डाॅ. वीर सुपार्थ मुस्लिम थे। इंडोनेशिया वापस लौटने के बाद उन्होंने आनंद शंकर रे को पत्र में लिखा कि उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई है और उन्होंने उसका नाम आर्यवृतपुत्र जयविष्णुवर्धन रखा है। एक मुस्लिम बच्चे का अनूठा नाम। इस नाम के पीछे की वजह समझाते हुए वे लिखते हैं कि जब वे पत्नी के साथ भारत में थे तो इस बालक ने माॅं के गर्भ में प्रवेश किया, इसलिये यह आर्यवृत का ही तो पुत्र हुआ। वहीं इंडोनेशिया में कई हिन्दुओं के नाम मुस्लिम जैसे (ऐसा हमारा मानना है) ध्वनित होते हैं। इसका सीधा सा अर्थ यही निकलता है कि धर्म भले ही बदल गए हों लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि हम उसके साथ अपनी संस्कृति को भी परिवर्तित कर लें। 

राम के विभिन्न कथानक पर चर्चा करने की आज आवश्यकता इसलिए भी है क्योंकि समाज का लचीलापन लगातार कम होता जा रहा है। हम सब एक ही तरह से देखने के आदी होते जा रहे हैं। सभी समुदायों, अंचलों, धर्मों और संस्कृतियों ने यदि राम को अपने हिसाब से अपनाया और व्याख्यायित किया है तो इसके पीछे का मूल है राम के चरित्र में निहित आकर्षण। इसी वजह से हम पाते हैं कि राम के चरित्र चित्रण को लेकर कई विरोधाभास भी है। इसीलिए हमें सिर्फ ऋषि वाल्मीकि या गोस्वामी तुलसीदास के नजरिए से ही राम को नहीं जानना चाहिए। हमारा प्रयास है कि हम इस श्रंखला में राम के कथानक को विविधता के साथ तमाम गुणीजनों के दृष्टिकोण से भी दिखाने की कोशिश करें। वाल्मीकि के अलावा कंबन, बौद्ध व जैन कथानक, माधव कंदाली, कालिदास, एकनाथ, तुन चट्टू, गोस्वामी तुलसीदास, मध्ययुगीन संत कबीर और महात्मा गांधी के नजरिए को सामने लाया जा सके। हमारा उद्देश्य है कि राम की पूजा को ही ध्येय न मानकर उनके चरित्र में निहित गतिशीलता, न्यायप्रियता और विविधता को देखने वाले विभिन्न दृष्टिकोण की जान कर हम भी अपना दृष्टिकोण अधिक स्पष्ट कर सकें। हम इन कथानकों पर आगे चर्चा जारी रखेंगे। (क्रमश:)