केंद्रीय पेंशनभोगियों को बड़ा झटका, सरकार ने पेंशन भत्ता बढ़ाने के सुझाव को लागू करने से किया किनारा
दिग्विजय सिंह के सवाल के जवाब में श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने वित्तीय व्यवहार्यता यानी सरकार की ख़स्ता वित्तीय हालत का हवाला देकर कोश्यारी समिति की सिफारिशों को लागू करने से इनकार कर दिया है..
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नई दिल्ली। पेंशन वृद्धि के लिए संघर्ष कर रहे रिटायर्ड केंद्रीय कर्मचारियों को एक और बड़ा झटका लगा है। केंद्र सरकार ने कोश्यारी समिति की सिफारिशों को लागू करने से साफ इनकार कर दिया है। दिग्विजय सिंह के एक सवाल के जवाब में श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने वित्तीय व्यवहार्यता यानी पैसे की कमी का हवाला देते हुए मुख्य सिफारिशों को लागू करने से मना कर दिया है।
दरअसल, कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने राज्यसभा में सरकार से पूछा था कि कोश्यारी समिति की रिपोर्ट में सरकार द्वारा अभी तक क्या कार्रवाई की गई है तथा इस रिपोर्ट को कब पूरी तरह लागू किया जाएगा? श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने इसके लिखित जवाब में कहा कि समिति की सिफारिशों पर सरकार द्वारा विचार किया गया और प्रशासनिक एवं वित्तीय व्यवहार्यता की सीमा तक उन्हें लागू किया गया है।
मुख्य सिफारिशों का ब्यौरा देते हुए केंद्रीय मंत्री ने बताया कि समिति ने सरकार के अंशदान को सदस्य के वेतन के 1.16 प्रतिशत से बढ़ाकर कम से कम 8.33 प्रतिशत करने की सिफारिश की थी। लेकिन सरकार ने माना है कि यह व्यवहारिक नहीं है। इस वजह से सरकार ने 1,000 रुपये प्रति माह की न्यूनतम पेंशन लागू की है और सिफारिश के मुताबिक 3000 रूपये की न्यूनतम पेंशन देने की मांग को अव्यवहारिक करार दिया है।
समिति ने मुद्रास्फीति की भरपाई के लिए पेंशन की राशि में मूल्य वृद्धि को जोड़ने यानी महंगाई के हिसाब से पेंशन वृद्धि की सिफारिश की थी। केंद्र सरकार ने इसपर जवाब दिया की मुद्रास्फीति के प्रभाव को बेअसर करके पेंशन में वृद्धि करना संभव नहीं है।
बता दें कि यूपीए सरकार के समय भाजपा सांसद प्रकाश जावड़ेकर ने याचिका प्रस्तुत करके कर्मचारी पेंशन योजना 2005 में संशोधन की माँग की थी। जिसे तत्काल स्वीकार कर लिया गया था। कर्मचारी संगठनों की माँगों पर संज्ञान लेते हुए तत्कालीन सरकार ने याचिका को परीक्षण करने और उस पर अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करने के लिये 13 नवंबर 2012 को पिटीशन कमीशन के पास भेज दिया था।
इसके बाद तत्कालीन भाजपा सांसद भगतसिंह कोश्यारी की अध्यक्षता में 10 सदस्यों की संसदीय समिति गठित की गई थी। परीक्षण के बाद याचिका को सही पाते हुए 29 अगस्त 2013 को कोश्यारी समिति ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी। जिसमें कर्मचारियों और श्रमिकों के हित में कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की गई थीं।
हैरानी की बात है कि पिछले 9 वर्षों से केन्द्र में भाजपा की सरकार है लेकिन खुद अपनी ही पार्टी के नेता की मांग पर बनी कोश्यारी कमेटी की सिफारिशों को लागू नही कर सकी है। जबकि वर्तमान में EPFO के पास फंड की भी कमी नहीं है। राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह का आरोप है कि, 'EPFO की फंड पर केंद्र सरकार की नजर है। मोदी सरकार LIC सहित अनेक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का निजीकरण करने की दिशा में कदम बढ़ा चुकी है। हो सकता है कि सरकार कर्मचारियों के इस फंड का उपयोग भी अपनी मर्जी से अपने चहेतों को अधिक समृद्ध करने के लिये करना चाहती हो।'