Farm Laws Challenged: एमपी के किसान नेता ने कृषि कानूनों को दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, सांसद विवेक तन्खा का मिला साथ
Vivek Tankha: तन्खा ने कहा कि जब कृषि राज्य का विषय है, संसद को इस पर कानून बनाने का अधिकार नहीं, एमपी के किसान नेता डीपी धाखड़ ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की है याचिका

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील विवेक तन्खा ने केंद्र सरकार के बनाए नए कृषि कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जाने का मसला ट्विटर के जरिए उठाया है। उन्होंने ट्विटर के जरिए जानकारी दी है कि मध्य प्रदेश के किसान नेता डीपी धाखड़ ने नए कृषि कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
देश के संविधान में कृषि राज्य का विषय, संसद ने कैसे बनाया कानून
देश के दिग्गज वकीलों में शामिल विवेक तन्खा के मुताबिक नए कृषि कानूनों को उनके प्रावधानों और प्रक्रिया दोनों के आधार पर चुनौती दी जा रही है। उनका कहना है कि भारतीय संविधान के हिसाब से कृषि राज्य के तहत आने वाला विषय है, लिहाजा इस बारे में कानून बनाना संसद के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। ऐसे में सरकार के बनाए नए कृषि कानूनों की वैधता पर संविधान की दृष्टि से गंभीर सवाल उठना लाज़मी है।
एमपी में लागू कृषि उपज मंडी क़ानून के भी खिलाफ हैं नए कृषि कानून
कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा ने नए कृषि कानूनों के तहत किए गए प्रावधानों को मध्य प्रदेश में 1980 के दशक से लागू कृषि उपज मंडी क़ानून के खिलाफ भी बताया है।
मप्र के एक किसान लीडर श्री धाखड़ ने केंद्र सरकार द्वारा संसद में पारित किसान विरोधी क़ानून को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती देते हुए याचिका दायर की है। नई व्यवस्था मप्र के १९८० के दशक से लागू कृषि उपज मंडी क़ानून के विपरीत है।
— Vivek Tankha (@VTankha) October 4, 2020
मानसून सत्र में पारित कराए गए तीन कृषि बिल
हम आपको याद दिला दें कि केंद्र सरकार ने संसद के मानसून सत्र में किसान संगठनों और विपक्ष के जोरदार विरोध की अनदेखी करते हुए तीन नए कृषि बिल लोकसभा और राज्यसभा, दोनों से पारित करवा लिए। राष्ट्रपति के दस्तखत करने के बाद अब ये बिल कानून बन चुके हैं। हालांकि विपक्ष के अलावा खुद बीजेपी के सबसे पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने भी इन कानूनों का विरोध करते हुए न सिर्फ मोदी सरकार से इस्तीफा दे दिया, बल्कि एनडीए से बाहर होने का ऐलान भी कर दिया। विपक्ष और किसान संगठन इन कानूनों के प्रावधानों का विरोध तो कर ही रहे हैं, साथ ही इन्हें केंद्र सरकार ने जिस तरह पारित कराया, उस पर भी सवाल उठ रहे हैं। यहां तक कि आरएसएस से जुड़े किसान संगठन भी इन कानूनों का विरोध करते रहे हैं।