अमेरिका में बनी नई सरकार, जो बाइडेन ने ली राष्ट्रपति पद की शपथ

US Presidential Inauguration: जो बाइडेन ने अपने पहले भाषण में कहा, लोकतंत्र की जीत हुई, अमेरिका के लोकतांत्रिक इतिहास के सबसे नाटकीय सत्ता हस्तांतरण में सारी दुनिया के लिए अहम संदेश छिपा है

Updated: Jan 20, 2021, 06:26 PM IST

Photo Courtesy: Indian Express
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वॉशिंगटन डीसी। अमेरिका में आखिरकार एक नई सरकार ने सत्ता संभाल ली। जो बाइडेन अब अमेरिका के नए राष्ट्रपति हैं और भारतीय मूल की कमला हैरिस उप-राष्ट्रपति। अमेरिकी इतिहास के सबसे अनोखे, सबसे उथल-पुथल भरे और दुनिया भर में सबसे ज्यादा बेचैनी, जिज्ञासा और आखिरी दौर में घबराहट फैलाने वाले राष्ट्रपति चुनाव अंतत: अपने सही मुकाम तक पहुंच ही गए। दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र में सत्ता का हस्तांतरण इतने नाटकीय तरीके से पहले कभी नहीं हुआ होगा। लेकिन अंत भला तो सब भला। अमेरिका में नई सरकार के सत्ता संभालने के साथ ही सिर्फ अमेरिका की लोकतंत्र प्रेमी जनता ने ही नहीं, दुनिया भर में लोकतंत्र के पैरोकार लोगों ने राहत की सांस ली है। अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जब अपने पहले भाषण में कहा कि लोकतंत्र की जीत हुई है, तो उनके मन में भी ज़रूर कुछ ऐसी ही बात रही होगी। 
 

कितना अलग है यह शपथ ग्रहण समारोह

अमेरिकी राष्ट्रपति का यह शपथ ग्रहण या अमेरिकी शब्दावली में कहें तो इनॉगरेशन ऐसे ही पिछले मौक़ों की तुलना में कितना अलग है, इसका अंदाज़ा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि इस समारोह में परंपरा के विपरीत पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनका परिवार शामिल नहीं हुआ। हाँ, पिछले उप-राष्ट्रपति माइक पेंस ने अपनी पत्नी के साथ समारोह में शामिल होकर अपनी मर्यादा का निर्वाह ज़रूर किया। लेकिन दो हफ़्ते पहले अमेरिकी संसद पर हुए हमले के बाद बदले हालात में यह समारोह बेहद कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच और बेहद कम लोगों की मौजूदगी में करना पड़ा। कैपिटल बिल्डिंग के वेस्ट फ्रंट में जिस वक़्त अमेरिका के नए राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई गई, ट्रंप समर्थकों के किसी संभावित हमले से बचाव के लिए एहतियात के तौर पर 25 हज़ार से ज़्यादा नेशनल गार्ड के जवान वहां तैनात थे।

हमें ट्रंप का शुक्रगुज़ार होना चाहिए, लोकतंत्र की अहमियत का एहसास कराया

बहरहाल, पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव के दौरान और चुनाव के बाद भी अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में जो कुछ किया, उसकी अमेरिका के भीतर और बाहर काफी आलोचना हो चुकी है। लेकिन कम से कम एक बात के लिए हम सबको ट्रंप को धन्यवाद देना चाहिए। उन्होंने सारी दुनिया को एक बार फिर से लोकतंत्र की अहमियत का एहसास करा दिया। अमेरिका में सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण को सारी दुनिया फ़ॉर ग्रांडेट यानी बिना किसी प्रयास के होने वाली प्रक्रिया मानकर चलती रही है। लेकिन इस सामान्य समझी जाने वाली प्रक्रिया के कुछ समय के लिए ही सही, खतरे में पड़ने के एहसास ने जो बेचैनी पैदा की, वो इस बात का सबूत है कि दुनिया लोकतंत्र की अहमियत को बखूबी समझती है।

अमेरिकी सिस्टम में गहरी हैं लोकतंत्र की जड़ें

अमेरिकी संसद पर हुए हमले के बाद के घटनाक्रम ने यह भी साफ कर दिया कि अमेरिकी लोकतंत्र की जड़ें वहां की संवैधानिक व्यवस्था में काफी मज़बूत हैं। ट्रंप की विभाजनकारी राजनीति के बावजूद, उनके तौर-तरीकों के प्रति अमेरिका की एक बड़ी आबादी में पैदा हुए आकर्षण के बावजूद, अमेरिकी चुनाव पर संदेह पैदा करने की तमाम कोशिशों के बावजूद अगर आखिरकार लोकतांत्रिक प्रक्रिया की जीत हुई है, तो उसके लिए अमेरिकी जनता के साथ ही साथ वहां की संवैधानिक व्यवस्था, लोकतांत्रिक परंपरा में विश्वास रखने वाले सिस्टम का भी बड़ा हाथ है। और यह अमेरिकी लोकतंत्र की गहरी जड़ों का सबूत भी है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि अगर कभी कोई तानाशाही प्रवृत्ति का शख्स जनता की आंखों में धूल झोंककर, उन्हें किसी विभाजनकारी एजेंडे के तहत गुमराह करके या किसी कथित सत्ता विरोधी लहर पर सवार होकर देश की सबसे ताकतवर कुर्सी पर पहुंच भी जाए, तो वो लोकतंत्र के जरिए मिली ताकत का इस्तेमाल उसी डेमोक्रेसी को खत्म करने के लिए आसानी से नहीं कर सकता। पिछले कुछ दिनों के दौरान लोक के पक्ष में खड़ा यह तंत्र ही अमेरिकी लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत  बनकर सामने आया है। उम्मीद है दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र से बाकी दुनिया भी यह महत्वपूर्ण सबक ज़रूर सीखेगी।