नेपाल के पीएम ओली ने सबको चौंकाया, राष्ट्रपति से की संसद भंग करने की सिफारिश

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कैबिनेट की इमरजेंसी बैठक बुलाकर फैसला किया, लेकिन उनकी पार्टी के कई बड़े नेता फ़ैसले का विरोध कर रहे हैं, नेपाल के संविधान में संसद भंग करने का प्रावधान नहीं है

Updated: Dec 21, 2020, 12:24 AM IST

Photo Courtesy : Telegraph
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काठमांडू। नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने देश का संसद भंग करने का फैसला किया है। ओली ने इमरजेंसी कैबिनेट मीटिंग बुलाकर यह फैसला लिया है। इसके बाद पीएम ओली नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी से मिलने शीतल निवास पहुंचे और संसद भंग करने की सिफारिश कर दी। अब नेपाल की संसद भंग करने पर अंतिम फैसला राष्ट्रपति भंडारी के हाथों में है। हालांकि एनडीटीवी ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि राष्ट्रपति ने इस सिफारिश को मंजूर कर लिया है। 

पीएम ओली ने रविवार सुबह जब ये आपात बैठक बुलाई थी तो काठमांडू के सियासी गलियारों में यह चर्चा होने लगी कि हाल ही में लाया गया अध्यादेश वापस करने पर ओली सरकार फैसला करेगी। लेकिन इसके विपरीत जब संसद भंग करने की खबरें आईं तो सभी चौंक गए। बताया जा रहा है कि नेपाल के संविधान में संसद भंग करने का प्रावधान ही नहीं है। ऐसे में पीएम के इस निर्णय को अदालत में भी चुनौती दी जा सकती है। हालांकि, राष्ट्रपति ने पीएम ओली के सिफारिश को मंजूरी दी है या नहीं इस बात की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हो सकी है। 

नेपाल के किसी प्रमुख मीडिया संस्था ने भी खबर लिखे जाने तक इस बात का दावा नहीं किया है। ऐसे में इस बात को लेकर असमंजस बरकरार है कि ओली की सिफारिश को भंडारी ने मंजूर किया है या नहीं। इसके पहले नेपाल के प्रमुख अखबार काठमांडू पोस्ट के मुताबिक ओली की कैबिनेट में ऊर्जा मंत्री बर्समान पुन ने कहा, 'आज की कैबिनेट की बैठक ने सदन को भंग करने के लिए राष्ट्रपति को सिफारिश भेजने का फैसला किया है।'

देश की सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के प्रवक्ता नारायणजी श्रेष्ठ ने कहा कि यह सरकार का अलोकतांत्रिक कदम है। मुझे अभी सिफारिश के बारे में पता चला है। यह फैसला जल्दबाजी में लिया गया। कैबिनेट की बैठक में सभी मंत्री भी मौजूद नहीं थे। यह फैसला देश को पीछे कर देगा। इसे लागू नहीं किया जाना चाहिए। सत्ता पक्ष के कई अन्य सदस्यों ने भी पीएम के इस फैसले का विरोध किया है। उनका कहना है कि ओली ने यह कदम ऐसे समय में उठाया है जब उनके पास बहुमत नहीं है।

दरअसल, ओली पर संवैधानिक परिषद अधिनियम से जुड़ा एक ऑर्डिनेंस को वापस लेने का दबाव है। इसे उन्होंने मंगलवार को जारी किया था। उसी दिन राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने उसे मंजूरी दे दी थी। इसके बाद से अपनी पार्टी के विरोधी खेमे के नेताओं के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल और माधव नेपाल ओली पर दबाव बना रहे थे।

प्रचंड इस मुद्दे पर जानकारी लेने के लिए प्रधानमंत्री निवास भी पहुंचे थे। हालांकि तब ओली ने सिर्फ इतना कहा कि वे आज इस पर कोई कार्रवाई करेंगे। इसके बाद ओली ने सुबह 9:45 बजे कैबिनेट की बैठक बुलाई और एक घंटे से भी कम समय में संसद भंग करने का फैसला ले लिया।