नेपाली संसद भंग, विरोध के बावजूद राष्ट्रपति ने पीएम ओली की सिफारिश को दी मंज़ूरी

नेपाल के राष्ट्रपति भवन ने बयान जारी करके कहा है कि राष्ट्रपति भंडारी ने 30 अप्रैल को पहले चरण और 10 मई को दूसरे चरण का मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा की है

Updated: Dec 21, 2020, 01:08 AM IST

Photo Courtesy: The Economic times
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काठमांडू। नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की सिफारिश पर देश की संसद को भंग कर दिया है। साथ ही अप्रैल-मई में मध्यावधि आम चुनाव कराये जाने की घोषणा की है। राष्ट्रपति के इस फैसले ने सबको हैरान कर दिया है। विशेषज्ञों का मानना है नेपाल में संसद भंग करने का कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है।

नेपाली राष्ट्रपति भवन द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार राष्ट्रपति भंडारी ने 30 अप्रैल को पहले चरण और 10 मई को दूसरे चरण का मध्यावधि चुनाव कराये जाने की घोषणा की है। नोटिस के अनुसार उन्होंने नेपाल के संविधान के अनुच्छेद 76, खंड एक तथा सात, और अनुच्छेद 85 के अनुसार संसद को भंग कर दिया। 

इससे पहले नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने रविवार को अचानक कैबिनेट मीटिंग बुलाकर संसद भंग करने का फैसला लिया था। हालांकि, ओली के इस फैसले का सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी ने विरोध किया था। पार्टी के प्रवक्ता का कहना था कि यह फैसला जल्दबाजी में लिया गया है। यह लोकतांत्रिक मानदंडों के खिलाफ है और राष्ट्र को पीछे ले जाएगा।

नेपाल की राष्ट्रपति भंडारी ने यह कदम ऐसे में उठाया है जब नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के बीच आंतरिक मतभेद चरम पर हैं। पिछले कई दिनों से पार्टी दो खेमों में बंटी हुई है।  एक खेमे की कमान पीएम ओली के हाथ में है तो दूसरे खेमे का नेतृत्व पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष व पूर्व पीएम पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' कर रहे हैं। 

नेपाल के संविधान विशेषज्ञों सहित कई नेताओं का कहना है कि संसद भंग करने का फैसला असंवैधानिक है। उनके मुताबिक नेपाल के संविधान में बहुमत हासिल करने के बाद प्रधानमंत्री द्वारा संसद भंग करने का कोई प्रावधान नहीं है। जबतक संसद द्वारा सरकार गठन की संभावना है तबतक सदन को भंग नहीं करना चाहिए। ऐसे में अब इस बात की संभावनाएं हैं कि राष्ट्रपति के इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।

ओली ने क्यों की संसद भंग करने की सिफारिश

दरअसल ओली पर संवैधानिक परिषद अधिनियम से जुड़े एक ऑर्डिनेंस को वापस लेने का दबाव है। इसे उन्होंने मंगलवार को जारी किया था। उसी दिन राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने उसे मंजूरी दे दी थी। इसके बाद से अपनी पार्टी के विरोधी खेमे के नेताओं के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल और माधव नेपाल ओली पर दबाव बना रहे थे।

प्रचंड इस मुद्दे पर जानकारी लेने के लिए प्रधानमंत्री निवास भी पहुंचे थे। हालांकि तब ओली ने सिर्फ इतना कहा कि वे आज इस पर कोई कार्रवाई करेंगे। इसके बाद ओली ने सुबह 9:45 बजे कैबिनेट की बैठक बुलाई और एक घंटे से भी कम समय में संसद भंग करने का फैसला ले लिया।