Corona Vaccine: ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का ट्रायल रुका
Vaccine for Covid 19: जल्द कोरोना वैक्सीन मिलने की उम्मीदों को झटका, ट्रायल में शामिल प्रतिभागी गंभीर रूप से हुआ बीमार

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित की जा रही कोरोना वायरस वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल को रोक दिया गया है। यह कदम ट्रायल में शामिल एक व्यक्ति के अचानक से बीमार हो जाने के कारण उठाया गया है। ट्रायल से जुड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि व्यक्ति अजीब तरह से बीमार हो गया। इसलिए सावधानी के तौर पर वैक्सीन के ट्रायल को रोक दिया गया है।
इस वैक्सीन का ट्रायल भारत समेत विश्व के 60 स्थानों पर हो रहा है। हर जगह यह ट्रायल रोक दिया गया है। इसके साथ ही कोरोना वायरस के लिए जल्द से जल्द वैक्सीन बनने की उम्मीद भी कम हो गई है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा होना अच्छा है। ज्यादा समय लगने से पूरी तरह सुरक्षित वैक्सीन बनने की संभावना ज्यादा है।
वायरोलॉजिस्ट शाहिद जमील ने कहा, "फिलहाल इस बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है। इस तरह के ट्रायल में ये सारी चीजें होती हैं। अच्छी बात यह है कि हमारे पास ऐसी व्यवस्था है जो गलतियां खोज लेती है।"
उन्होंने आगे कहा कि जब भी कोई गलती सामने आती है तो आपको रुकना होता है, फिर से सोचना होता है। यही इस मामले में भी हो रहा है।
दरअसल ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की जा रही इस वैक्सीन को दौड़ में सबसे आगे और सटीक माना जा रहा है। इस वैक्सीन के पहले ही अरबों डोज बुक किए जा चुके हैं। और भी कई वैक्सीन के प्रभावी परिणामों की खबरें आई हैं, लेकिन विशेषज्ञ उनके ऊपर सवाल खड़े कर रहे हैं।
कोरोना वायरस महामारी के प्रसार को देखते हुए वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया में कई छोटी छोटी प्रक्रियाओं को नजरअंदाज किया गया है। सामान्य प्रक्रिया से वैक्सीन बनाने में 8 से 10 साल का समय लगता है। लेकिन कोरोना वायरस के लिए इसे 18 महीने में बनाने का प्रयास किया जा रहा है। दूसरी तरफ अमेरिका में तो इस साल के अंत तक ही वैक्सीन को जारी करने की बात चल रही है। रूस भी अपनी आबादी को डोज देने की तैयारी में है। जबकि विशेषज्ञ जल्दबाजी करने से बचने को कह रहे हैं।
किसी भी वैक्सीन को विकसित करने के लिए तीन चरण के ट्रायल होते हैं। पहले चरण में देखा जाता है कि क्या वैक्सीन सुरक्षित है। यह लोगों के शरीर पर कोई बुरा प्रभाव तो नहीं डाल रही। इस चरण के ट्रायल में कुछ दर्जन भर लोग शामिल होते हैं।
दूसरे चरण के ट्रायल में यह देखा जाता है कि क्या वैक्सीन वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक उतपन्न कर रही है। यह ट्रायल कुछ सौ लोगों के समूह पर होता है। तीसरा चरण बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसमें देखा जाता है कि असल जिंदगी में यह वैक्सीन कितनी प्रभावी है। इस चरण में 30 से 60 हजार लोगों पर ट्रायल किया जाता है।