भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को बड़ा झटका, सुप्रीम ने खारिज की 7800 करोड़ के अतिरिक्त मुआवजे की मांग

सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ितों को 7800 करोड़ के अतिरिक्त मुआवजे की मांग वाली केंद्र की क्यूरेटिव याचिका को खारिज कर दिया है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि केस दोबारा खोलने ने पीड़ितों की मुश्किलें बढ़ेंगी।

Updated: Mar 14, 2023, 02:24 PM IST

नई दिल्ली/भोपाल। भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सर्वोच्च अदालत ने गैस पीड़ितों के लिए 7800 करोड़ के अतिरिक्त मुआवजे की मांग वाली केंद्र की क्यूरेटिव याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने केंद्र की याचिका खारिज करते हुए भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के मुआवजे में घोर लापरवाही पर फटकार भी लगाई है।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस अभय एस ओक, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी की बेंच ने कहा कि केस दोबारा खोलने पर पीड़ितों की मुश्किलें ही बढ़ेंगी। कोर्ट ने कहा कि ‘यह केवल भानुमती का पिटारा खोलकर यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन के पक्ष में काम करेगा और दावेदारों को भी इससे कोई लाभ नहीं होगा।'

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दरअसल, केंद्र सरकार ने 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को अधिक मुआवजा दिलाने के लिए यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (यूसीसी) की उत्तराधिकारी फर्मों से अतिरिक्त करीब 7844 करोड़ रुपये मांगने के लिए केंद्र सरकार ने याचिका दायर की थी। सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि हम पीड़ितों को अधर में नहीं छोड़ सकते।

इसपर सर्वोच्च अदालत ने कहा कि यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन पर और ज्यादा मुआवजे का बोझ नहीं डाला जा सकता। हम इस बात से निराश हैं कि सरकार ने दो दशक तक इस पर ध्यान नहीं दिया। पीड़ितों को नुकसान की तुलना में करीब 6 गुना ज्यादा मुआवजा दिया जा चुका है। अगर ये केस दोबारा खोला जाता है तो यह यूनियन कार्बाइड के लिए ही फायदेमंद होगा, जबकि पीड़ितों की मुश्किलें और बढ़ जाएंगी। केंद्र सरकार RBI के पास पड़े 50 करोड़ रुपए का इस्तेमाल पीड़ितों की जरूरत के मुताबिक करे।

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बता दें कि भोपाल गैस कांड के बाद यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने पीड़ितों को 470 मिलियन डॉलर (715 करोड़ रुपए) का मुआवजा दिया था। लेकिन पीड़ितों ने ज्‍यादा मुआवजे की मांग करते हुए कोर्ट में अपील की। केंद्र ने गैस कांड पीड़ितों के लिए डाउ केमिकल्स से 7,844 करोड़ रुपए का अतिरिक्त मुआवजा मांगा था। इसके लिए दिसंबर 2010 में सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल की गई थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मांग को खारिज कर दिया है।