टाला जा सकता था झूलेलाल मंदिर हादसा, प्रशासनिक लापरवाही ने ली 35 श्रद्धालुओं की जान

इंदौर के मंदिर में हुए हादसे में मृतकों की संख्या बढ़कर 35 हो गई है, इसे एक्ट ऑफ गॉड कहकर संतोष नहीं किया जा सकता, यदि स्थानीय लोगों की शिकायतों पर कार्रवाई होती, तो शायद 35 लोगों की जान जाने से बच सकती थी।

Updated: Mar 31, 2023, 11:40 AM IST

इंदौर। इंदौर के बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर में रामनवमी पर हुए हादसे में अबतक 35 लोगों की मौत हो चुकी है। इस हादसे के शिकार लोगों में से अधिकांश को ये पता भी नहीं था कि वे जिस जगह दर्शन और हवन-पूजन करते हैं, उसके नीचे कुआं है। अब बड़ा सवाल ये है कि क्या मंदिर की बावड़ी में इस हादसे को टाला जा सकता था? इसका जवाब हां है। अगर इंदौर नगर निगम स्थानीय लोगों की शिकायतों पर गौर करती और कार्रवाई करती, तो शायद 35 लोगों की जान जाने से बच सकती थी।

बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर जूनी इंदौर थाना क्षेत्र के अंतर्गत स्नेह नगर में पड़ता है। यह इंदौर की सबसे पुरानी आवासीय कॉलोनियों में से एक है। मंदिर की देखरेख निजी ट्रस्ट की ओर से की जाती है। गुरुवार को सुबह करीब साढ़े 11 बजे उस समय यहां हादसा हुआ, जब श्रद्धालु रामनवमी पर एक हवन कर रहे थे। हवन मंदिर के एक चबूतरे पर किया जा रहा था, जो असलियत में बावड़ी की छत थी। यह छत 50-60 लोगों का वजन उठाने के लिए पर्याप्त मजबूत नहीं थी।

यह भी पढ़ें: झूलेलाल मंदिर हादसे में अबतक 35 की मौत, सेना ने रातभर चलाया सर्च ऑपरेशन

मौके पर पूजन कर रहे श्रद्धालु इस बात से अनभिज्ञ थे की नीचे 40 फीट गहरा कुआं है। मंदिर ट्रस्ट के लोगों ने भी किसी को ये बात नहीं बताई। पूरा माहौल राममय था। अचानक तेज आवाज के साथ धरती फट गई और कई लोग उसमें समा गए। इनमें कई बच्चे और महिलाएं भी थीं। दरअसल, वजन ज्यादा होने के कारण बावड़ी की छत अचानक छत ढह गई, जिससे श्रद्धालु 40 फीट गहरे बावड़ी में गिर गए। हादसे बावड़ी में 9 फीट तक पानी भरा था। शासन और प्रशासन अब इस हादसे को भगवान की मर्जी अथवा "एक्ट ऑफ गॉड" बताकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की जुगत में है। 

लेकिन घटना को लेकर बड़ी लापरवाही सामने आई है। 23 अप्रैल 2022 को बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर ट्रस्ट को अतिक्रमण संबंधी नोटिस जारी की गई थी। कमिश्नर इंदौर डेवलपमेंट अथॉरिटी को मंदिर के पार्क/बगीचे पर अतिक्रमण की शिकायत मिली थी। स्थानीय लोगों ने शिकायत में कहा कि पार्क पर पहले पानी की टंकी बनाकर और फिर बावड़ी पर मंदिर बनाकर अतिक्रमण किया गया था। इसी जमीन पर अतिक्रमण कर इस मौजूदा मंदिर के करीब एक और मंदिर बनाया जा रहा है।

नोटिस के जवाब में ट्रस्ट ने मंदिर में किसी तरह का कोई अवैध निर्माण नहीं होने का भरोसा भी दिलाया था। साथ ही बावड़ी खोल देने का भरोसा भी दिलाया था। लेकिन लगातार नोटिस मिलने के बाद भी ट्रस्ट ने इसपर अमल करने के बजाए उल्टे नोटिस को ही हिंदू धर्म में हस्तक्षेप करार दिया था। ट्रस्ट के सचिव ने कहा था कि ऐसे नोटिस से धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचेगी। यह भी कहा गया कि मंदिर 100 साल पुराना है। चूंकि, मामला बहुसंख्यकों के धार्मिक स्थल का था इसलिए अवैध निर्माण पर बुलडोजर कार्रवाई नहीं हुई। 

जानकारी के मुताबिक मंदिर ट्रस्ट ने लगभग 20 साल पहले यह बावड़ी को अवैध तरीके से ढक दिया था। स्थानीय लोगों के मुताबिक मंदिर प्रबंधन ने इस बावड़ी को भराव किए बगैर ही पैक कर ऊपर से गर्डर और फर्शियां डाल दी थी। उसके बाद टाइल्स लगा दी थी। निगम ने निर्माण को अवैध मानते हुए रोकने के लिए कहा, लेकिन कभी कार्रवाई नहीं की गई। बताया जा रहा है कि इसके पीछे एक बड़े भाजपा नेता का राजनीतिक दबाव था। बहरहाल, इस घटना में जिन निर्दोष लोगों ने जानें गंवाई उन्हें तो वापस नहीं लाया जा सकता, लेकिन जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई जरूर हो सकती है, ताकि भविष्य में इस तरह की लापरवाहियां न हों।

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने इस दुर्घटना की न्यायिक जांच कराने की मांग की है। सिंह ने ट्वीट किया, 'इंदौर बावड़ी हादसे में 35 लोग जान गँवा बैठे। घटनास्थल पर लोगों का दुखदर्द बाँटने गया तो कुछ तथ्य उभरकर सामने आए। 1.) सार्वजनिक प्राचीन मंदिर पर प्रभावशाली व्यक्तियों का क़ब्ज़ा। 2.) स्थानीय लोगों की शिकायत पर प्रशासन चुप रहा। 3.) पुरानी बावड़ी पर नगर निगम की इजाज़त के बग़ैर स्लैब डाला गया। 4.) स्लैब डालने की शिकायत नगर निगम को कई बार की गयी पर राजनैतिक प्रभाव के कारण सुनवाई नहीं हुई। हम इस दुर्घटना की न्यायिक जाँच की मांग करते है। साथ ही यह भी कि दुर्घटना के ज़िम्मेदारों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज हो।'