राज्यपाल के कार्यक्रम में आदिवासी MLA को बोलने से रोका, विधायक बोले लोकतंत्रिक परंपराओं का अपमान

डिंडोरी में महामहिम के कार्यक्रम में बवाल, स्थानीय जनप्रतिनिधि को नहीं मिला बोलने का मौका, डीएम पर लगा माइक बंद करने का आरोप, ग्रामीण समर्थकों में दिखा रोष

Updated: Oct 06, 2021, 06:43 AM IST

डिंडोरी। मध्य प्रदेश के आदिवासी जिले डिंडोरी में अजीबोगरीब पॉलिटिकल ड्रामा देखने को मिला है। यहां राज्यपाल के एक कार्यक्रम में स्थानीय विधायक को बोलने का मौका नहीं मिला। वजह ये कि वे विपक्षी दल के विधायक हैं। इस घटना को लेकर कांग्रेस विधायक ने महामहिम के समक्ष आपत्ति भी जताई, बावजूद उन्हें बोलने नहीं दिया गया। इस दौरान स्थानीय लोगों ने महामहिम के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।

दरअसल, मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगू भाई पटेल अपने दो दिवसीय डिंडोरी प्रवास के दौरान मंगलवार को बैगाचक क्षेत्र के चाड़ा गांव पहुंचे थे। प्रशासन ने चाड़ा पंचायत भवन परिसर में एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। इस दौरान राज्यसभा सांसद संपत्तियां उइके और जिला पंचायत की अध्यक्ष ज्योति धुर्वे ने लोगों को संबोधित किया।

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मामला तब बिगड़ा जब स्थानीय विधायक ओमकार सिंह मरकाम बोलने के लिए खड़े हुए। जैसे ही उन्होंने बोलना शुरू किया जिला कलेक्टर रत्नाकर झा ने उन्हें रोकने की कोशिश की। वे जब नहीं रुके तो कलेक्टर ने माइक ही बंद कर दिया। आरोप है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मरकाम कांग्रेस विधायक हैं। इस दुर्व्यवहार से मरकाम खीझ गए और महामहिम के सामने उन्होंने आपत्ति भी जताई लेकिन मंगू भाई पटेल ने भी ये नहीं कहा कि विधायक को बोलने का मौका दिया जाए।

इस दौरान वहां मौजूद स्थानीय लोगों ने हंगामा करना शुरू कर दिया। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि महामहिम यहां बतौर राज्यपाल नहीं बल्कि बीजेपी के एजेंट के रूप में आए हैं। उन्होंने राज्यपाल के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। मामला बिगड़ता देख वहां मौजूद बीजेपी कार्यकर्ता ग्रामीणों से भिड़ गए। पुलिसकर्मियों ने किसी तरह ग्रामीणों को शांत करवाया। इस पूरे घटनाक्रम का असर ये हुआ कि राज्यपाल को रात्रि विश्राम पूर्व निश्चित इस गांव से शिफ्ट करना पड़ा। आक्रोश को भांपते हुए वे डिंडोरी जिला मुख्यालय के लिए निकल गए। 

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मामले पर कांग्रेस विधायक ओमकार सिंह मरकाम ने कहा है कि डिंडोरी में महामहिम के समक्ष लोकतंत्र का अपमान हुआ है। उन्होंने कहा कि, 'जब उन्हें अपने क्षेत्र में बोलने का मौका नहीं मिलेगा तो फिर चुने हुए जनप्रतिनिधि होने का क्या औचित्य रह जाता है। राज्यपाल तो संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति हैं, उनसे यह उम्मीद की जाती है कि वे दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सबको बराबरी की नजर से देखेंगे।' 

सियासी जानकारों का मानना है कि इन दिनों राज्यपाल का आदिवासी इलाकों में दौरा और कार्यक्रम बीजेपी की रणनीति का हिस्सा है। वजह ये कि बीजेपी कांग्रेस की परंपरागत आदिवासी वोटबैंक में सेंधमारी करना चाहती है। गौरतलब है कि राज्यपाल, मंगूभाई छगनभाई पटेल गुजरात के आदिवासी नेता रहे हैं और उनकी दक्षिण गुजरात के अपने इलाके में अच्छी पकड़ रही है।